शनिवार, 21 जनवरी 2017

कभी हुआ नहीं यूँ

:) आज तेरे दीदार को फिरता रहा 
इंतज़ार में फिरता रहा 
कभी हुआ नहीं यूँ 
अपने ही मझदार में फिरता रहा :)
:) न ही तो इश्क तुझसे 
न ही है इंतज़ार-ए- वफ़ा का
क्यों ओढे फिर रहा हूँ
अपने ही जिस्म पर कफ़न ख़फ़ा का :)
:) कल तक तो सब ज़िंदा था
अब क्यों मुर्दा है ख़ाब हवा का
बहती तो है दिल-ए-धड़कन वेग से
लगाम नहीं साह-ए-शरीर पर रफ़्तार का :)
:) कुछ अजुल -फज़ुल से ख्याल है
करवट बदलते सवाल हैं
जबाव भी मिलेगा सुनील
रूह का पर्दा तो खाल है :)

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