इंतज़ार में फिरता रहा
कभी हुआ नहीं यूँ
अपने ही मझदार में फिरता रहा
न ही है इंतज़ार-ए- वफ़ा का
क्यों ओढे फिर रहा हूँ
अपने ही जिस्म पर कफ़न ख़फ़ा का
अब क्यों मुर्दा है ख़ाब हवा का
बहती तो है दिल-ए-धड़कन वेग से
लगाम नहीं साह-ए-शरीर पर रफ़्तार का
करवट बदलते सवाल हैं
जबाव भी मिलेगा सुनील
रूह का पर्दा तो खाल है
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