मैने फूलो कि तलाश |
मैने फूलो कि तलाश मे, शूलो को स्वीकार कर लिया |
मानव के सुख हेतु दुखो का, अपने ऊपर भार धर लिया || कविता लिखने के पहले ही, काव्य-कर्म पहचान लिया है | अनुभव के ज्ञानार्जन द्वारा, मर्म, धर्म का जान लिया है || ढाई अक्ष्रर के ज्ञाता का, मुक्त ह्र्दय मे प्यार भर लिया | मानव के दुखो का, अपने ऊपर भार धार लिया || जीवन का उद्देश निवेदित्, करने हेतु काव्य लिखता हूँ | स्नेह्-सिक्त तन-मन है मेरा, लेकिन कुछ क्रोधी दिखता हूँ || न्याय-नीती पोषक शब्दो का, अभ्यंतर ने सार वर लिया | मनव के सुख हेतु दुखो का, अपने ऊपर भार धार लिया || युग के लिये अपेक्षित जो है, वही प्रयत्न सदा करता हूँ | आज सुकर्मो द्वर कल की , अनदेखी विपदा हरता हूँ || दुषित करता जो विवेक को, वह अशलील विकार हर लिया | मानव के सुख हेतु दुखो का, अपने ऊपर भार धर लिया || |
शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013
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