शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013


 
मैने फूलो कि तलाश 
 
मैने फूलो कि तलाश मे, शूलो को स्वीकार कर लिया |
मानव के सुख हेतु दुखो का, अपने ऊपर भार धर लिया ||
कविता लिखने के पहले ही,
 काव्य-कर्म पहचान लिया है |
अनुभव के ज्ञानार्जन द्वारा,
मर्म, धर्म का जान लिया है ||
ढाई अक्ष्रर के ज्ञाता का, मुक्त ह्र्दय मे प्यार भर लिया |
मानव के दुखो का, अपने ऊपर भार धार लिया ||
जीवन का उद्देश निवेदित्,
करने हेतु काव्य लिखता हूँ |
स्नेह्-सिक्त तन-मन है मेरा,
लेकिन कुछ क्रोधी दिखता हूँ ||
न्याय-नीती पोषक शब्दो का, अभ्यंतर ने सार वर लिया |
मनव के सुख हेतु दुखो का, अपने ऊपर भार धार लिया ||
युग के लिये अपेक्षित जो है,
वही प्रयत्न सदा करता हूँ |
आज सुकर्मो द्वर कल की ,
अनदेखी विपदा हरता हूँ ||
दुषित करता जो विवेक को, वह अशलील विकार हर लिया |
मानव के सुख हेतु दुखो का, अपने ऊपर भार धर लिया ||      

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