बिहार में वर्तमान राजनीतिक परिवेश
की बात इतिहास के पन्नो में दर्ज़ हो गई है ,जहां नितीश कुमार ने बनाया है
वहीँ इस बात को झुठलाया भी नहीं जा सकता कि उन्होंने इतिहास को दोहराया भी है.
क्यूंकि जो आज नितीश ने किया है वह 1980 में
हरियाणा में दो बार मुख्यमंत्री पद पर रहे भजन लाल कर चुके है। राजनीति के चाणक्य और कई दलबदल के ‘इंजीनियर’ रहे भजनलाल अंतिम
दिनों में बनाई अपनी पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस के सदस्यों को दल बदलने से
नहीं रोक सके। अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति और
समर्पण की बदौलत वह दो दशक तक हरियाणा की राजनीति के शिखर पुरुष बने रहे। भजनलाल दो
बार हरियाणा के मुख्यमंत्री बने। पहली बार 28 जून 1979 से पांच जुलाई 1985 तक और दूसरी बार 23 जुलाई 1991 से 11 मई 1996 तक।
भजन 1968 में बंसीलाल सरकार में शामिल हुए और लम्बे समय तक उनके संकट मोचक बने
रहे। 1972 के विधानसभा चुनाव के बाद वह राज्य के
मुख्यमंत्री पद के प्रमुख दावेदार के रूप में सामने आए। इसके बाद 1975 में उन्हें मंत्रिमंडल से हटा दिया गया। हालांकि अपनी जोड़तोड़ की कला की
बदौलत वह 1979 में प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। और
बाद में 1980 में पूरे जनता पार्टी विधायक दल का
कांग्रेस आई में दलबदल करा दिया।
जो आरोप 1980 में भजन लाल पर लगे आज वही आरोप नितीश कुमार पर लग रहे है। कहा जा रहा है
कि नितीश ने जनता के साथ धोखा किया और ऐसा करके उन्होंने भजन लाल को भी पीछे छोड़
दिया। वैसे नितीश कुमार के दल बदली के कदम
से जहां भाजपा का काफी फायदा हुआ है तो कांग्रेस को वो धोखा हुआ जैसे एक बेवफा
मासूक हो , जिसका गम और घाटा न भुलाया जा सकता न
छुपाया जा सकता है। लालू अपना दर्द रावडी
से सांझा कर लेंगे लेकिन फिर पप्पू बने राहुल कहाँ और किससे हाल ए दिल बयान
करेंगे। राजनीति के समीकरण दिन ब दिन बदल
रहे है। आया राम गया राम की राजनीति भी
जारी है और घर वापसी का सिलसिला आजकल सुनाने और सुनने में आ नहीं रहा। वैसे लोकतंत्र का इतना अच्छा मज़ाक कहीं होता
दिखा नहीं जो 2017 के चुनावों में दिख रहा है। इस मोदी लहर कहूं या लोकतंत्र को तबाह करने
वाली वो नहर जो अपनी धुन में चल रही है। और न जाने कहाँ कब ये रफ़्तार पकड़ ले जिसकी
लहरें जब उठेंगी तो कहाँ और किसके कौन गीले कर ढीले करेगी।
वैसे भी अब उम्मीद नहीं है अब मुझे
इस घटिया राजनीति के पैमाने में पयादे खेलने वालों से -जिनकी एक भी चाल एकमत में
नहीं होती। यहाँ तक की देश के हित में अगर
देश का प्रधानमंत्री कोई बात कहे तो उनके प्रति भी कोई बयान के मत में नहीं
आता। राजनीति करके ही देश के नेताओं का
पेट भर जाता है। बयानबाजी करके ही उनके
हलक सुख जाते है फिर ये सीमा पर नौजवानों की क्या हौंसला आवाजाही करेंगे ,देश के और इंसानियत के दुशमनों से क्या लड़ेंगे जिनको आपसे में
ही उलझने से वक्त नहीं मिलता। चलो अब नितीश कुमार की चमक कितनी दिखती है और लालू
और कितने लाल पिले होते है। जारी है
सिलसिला दलबदली ----- अगला कौन इंतज़ार है, और जिया
भी बेकरार है।