रविवार, 27 नवंबर 2016

हस्र क्या होगा अब मेरा लहू से लिख रह हूँ नाम तेरा HASHAR KYA HOGA AB MERA

:) हस्र क्या होगा अब मेरा
लहू से लिख रह हूँ नाम तेरा
किसी पन्ने या दीवार पर नहीं
जिगर-ए-जागीर तक है नाम तेरा :)
:) हस्र क्या होगा अब मेरा
रोम-रोम से जुड़ा है ख़्याल तेरा
अंत है नहीं- सोच बेहिसाब है
न जाने कौन सा मूलांक है सवाल तेरा :)
:) हस्र क्या होगा अब मेरा
उगते सूरज से -ढलते चाँद तक है जिक्र तेरा
न जाने क्यों सुनील -
कल तक था चलती-फिरती लाश
अब क्यों होने लगा है फ़िक्र तेरा :)
हस्र क्या होगा अब मेरा
अब क्यों होने लगा है फ़िक्र तेरा

ना तेरे आने की ख़ुशी - ना तेरे जाने का ग़म NA TERE AANE KI KHUSHI NA TERE JAANE KA GAM

 ना तेरे आने की ख़ुशी -
ना तेरे जाने का ग़म -
हमें न मिला अब तक
हमारी तन्हाईयों सा हमदम-- :p
:) अपने ही ख्यालों से करता था बातें -
देखी है हमने भी टूटते दिलों की वारदातें-
जब सोचा ही नहीं तेरे बारे में -
फिर क्यों गुजारूँ महखाने में रातें -:p
:) महर ही नहीं था खुद का -
राख बनता गया देह का-
असूलों से ही परे न सही -
दुश्मन था खुद से ही खुद का -:P
:) तेरे जहन में समा न सका -
कदर तो दूर , कबर भी बना न सका -
आँखों से ही छलकता रहूँगा तेरी
मेहबूब जो तुझे बना न सका-