गुरुवार, 5 नवंबर 2015

आस्था से जुड़ी मिट्टी

आस्था से जुड़ी  मिट्टी 
दीपावली आने वाली है -हमारी सांस्कृतिक व्यवसाय शुरू हो गया है। मीट्टी के दीपक बनाने का काम रात दिन चल रहा है। वर्तमान में साफ़ झलकता है की मिटटी हमारी आस्था से कितनी जुडी हुई है।  जब मिटटी से दीपक बनाने वाले कामगारों को मेहनत करते हुए देखा आपको बता दें की  -  दीपावली का अर्थ है दीपों की पंक्ति। दीपावलीको आदि  दो अल्फ़ाज़ में  सन्धिविच्छेद किया जाए (दीप +आवली )और आवली का मतलब है पंक्ति यानि दीपों की पंक्ति दीपावली ।  इस  दीपों की पंक्ति को  दीपोत्सव भी कहते हैं लेकिन आधुनिकता की दौड़ में दीपावली के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण दीपक और श्रीलक्ष्मी - श्रीगणेश की मूर्तियाँ गढऩे वाले कुम्हार अपने घरों को रोशन करने से वंचित हैं और अपनी पुस्तैनी कला एवं व्यवसाय से जैसे विमुख हो रहे हैं। कभी उत्सवों की शान समझे जाने वाले दीपों का व्यवसाय आज संकट के दौर से गुजर रहा है और दीपावली में रोशनी करने वाले मिट्टी के कारीगर आज दो जून की रोटी के लिए तरस रहे हैं.

पुस्तैनी कारोबार पर छा रहा अँधेरा 
 करवा चौथ हो या अहोई अष्टमी, दीपावली हो अथवा कोई अन्य त्योहार, ये कुम्हारों के चाक और बर्तनों के बिना पूरे नहीं होते. कुम्हार के चाक से बने खास दीपक दीपावली में चार चांद लगाते हैं लेकिन बदलती जीवन शैली और आधुनिक परिवेश में मिट्टी को आकार देने वाला कुम्हार आज उपेक्षा का दंश झेल रहा है. बाजारों में चाइनीज झालरों की धमक ने मिट्टी के दीपक की रोशनी को फीका करना शुरु कर दिया है। सदियों से मिटटी के बनाये गए दीपक को घरों में जलाकर हम दीपावली मनाते चले आ रहे है, लेकिन आज के समय बाजार मे आये चीन के दीपकों ने मिटटी के दियों की महक को छीन लिया है। जिसके चलते कुम्हार बदहाल हुए जा रहे हैं। मंहगाई और मरता हुआ व्यापार कहीं कुम्हारों को कहानी न बना दे। आधुनिकता की मार दीपावली में घर घर प्रकाश से जगमगा देने वाले दीप बनाने वाले कुम्हारों के घरो पर भी पड़ी है। जिस कारण दीप बनाने वाले स्वयं दीप जलाने से वंचित रह जाते हैं और उनके घर अंधेरा ही रहता है। इसे विडबना नहीं तो और क्या कहा जाए कि दीपावली के दिन लोग घरों में जिस लक्ष्मी गणेश की पूजा मूर्तियों और दीपक के जरिए लक्ष्मी के आगमन के लिए करते हैं। उसे गढऩे वाले कुम्हारों से ही वह कोसो दूर है। आधुनिकता के दौर में पूजा आदि के आयोजनों पर प्रसाद वितरण के लिए इस्तेमाल होने वाली मिट्टी के प्याले, कुल्हड़ एवं भोज में पानी के लिए मिट्टी के ग्लास आदि भी प्रचालन अब नहीं रहा, इसकी जगह अब प्लास्टिक ने ले ली है। पारंपरिक दीप की जगह मोमबत्ती एवं बिजली के रंज बिरंगे बल्बों ने ले ली है।

मिटटी में मिटटी  हो रहा जिस्म : सदरुद्दीन 
चंडीगढ़ निवासी कुम्हार सदरुद्दीन बताते हैं कि सुबह से रात तक जिस्म मिटटी में  मिटटी हो जाता है।  जब दीये की खरीददारी करने वाले ही कम रह गए हैं तो ज्यादा बनाने से क्या फायदा. शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्रों तक चायनीज दीये की मांग हर साल बढती ही जा रही है. दो जून की रोटी के लिए कड़ी धूप में मेहनत करने वाले कुम्हार का परिवार मिट्टी के व्यवसाय में महीनों .लगा रहता है उसके बावजूद न तो उसे वाजिब दाम मिलते हैं और न ही खरीददार. समय की मार और मंहगाई के चलते लोग अब मिट्टी के दीये उतने पसंद नहीं करते. चीन में निर्मित बिजली से जलने वाले दीये और मोमबत्ती दीपावली के त्योहार पर शगुन के रुप में टिमटिमाते नजर आते हैं.

ग्राहक को तरस रहा कुम्हार 
मिट्टी के व्यवसाय से जुड़ी  70 वर्षीय मंगी देवी  का कहना है कि अब मिट्टी के दीप का जमाना गया. कभी दीपावली पर्व से एक महीने पहले मोहल्लों में रौनक हो जाती थी और कुम्हारों में भी यह होड़ रहती थी कि कौन कितनी कमाई करेगा लेकिन अब तो खरीददार ही नजर नहीं आते.

बरसों से मिट्टी के बर्तन बेचकर पेट पालने वाले छोटेलाल का कहना है, "महंगाई की मार से मिट्टी भी अछूती नहीं रही, कच्चा माल भी महंगा हो गया है. दिन रात मेहनत के बाद हमें मजदूरी के रुप में अस्सी से 100 रुपये की कमाई हो पाती है. इससे परिवार का गुजारा नहीं हो पाता."

कहानी न बन जाए 'एक था कुम्हार'

 आने वाले समय में ऐसा दिन ना आ जाए जब कभी हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को कहानी सुनानी पड़े की, एक था कुम्हार। जिस तरह से कुम्हार के जीवन यापन करने वाले बाजार पर चीन जैसे दीपक हावी होते जा रहे हैं। उससे तो यही लगता है की शायद कुम्हार का घूमता हुआ चाक रुक जाएगा और कुम्हार सिर्फ कहानियो मे ही सुनने को मिलेंगे। हाडतोड़ मेहनत के बाद दीये बनाने बाले कुम्हार फुटपाथ पर दूकान लगाकर जहां बाजार मे एक एक ग्राहक को तरस रहा है, वहीँ चाईनीज दीपकों की बिक्री हाथों हाथ हो जाती है। दीपावली असत्य पर सत्य की जीत सहित रौशनी का भी त्यौहार है, लेकिन एक सत्य यह भी है की हमारी माटी की महक पर चाईनीज भारी पड़ गए। जिसके चलते आने वाले दिनों मे हजारों कुम्हारों के घरों मे दीपक क्या चूल्हे भी नहीं जल पायेंगे।


pm मोदी ने कहा-इस दिवाली मिट्‌टी के दीपक जलाएं
प्रधानमंत्रीनरेंद्र मोदी अपने रेडियो कार्यक्रम मन की बात में लोगों से अपील की  कि वे इस दिवाली पर मिट्टी के दीपक का उपयोग करें जिससे गरीब कुम्हारों के घरों में समृद्धि आए। उन्होंने यह अपील अलवर के पवन आचार्य द्वारा दिए गए सुझाव पर की। आचार्य ने मोदी के 12वें रेडियो कार्यक्रम में अपनी बात रखी। 

आपसे अनुरोध - 
 साँझ समुदाय की आराफ से आप सभी से अनुरोध है कि इस दीपावली पर कुम्हारों द्वारा बनाये जा रहे भारतीय परम्परा के मिटटी के दिये और उनके बनाये गए मिट्टी के खिलौने अवश्य खरीदें और हाँ, खरीदते समय किसी प्रकार का मोल-भाव न करें, नहीं तो तब आप के आगे आने वाली पीढ़ी को यह दीप, खिलौने बनाने वाले नहीं दिखेंगे। इस काम में काफी श्रम लगता है और मुनाफा कम है लेकिन इनमें भारतीय परम्परा को जि़ंदा रखने का जूनून है...इस जुनून में आप भी अपने भारतीय होने की भूमिका अवश्य निभायें। दीपावली में मिट्टी के दीप अवश्य जलाएँ...क्योंकि आप चीन से बने दीये खरीदने में कोई कोताही नहीं बरतेंगे...चीन का सामान कम से कम खरीदें जिससे आप भारत के गरीबों द्वारा बनाये गए सामान खरीदने का पैसा बचा सके।