शनिवार, 1 सितंबर 2018

अज्ञानी से क्यूं पूछते हो, यहां सब ज्ञानी हैं

यहां सब ज्ञानी हैं
किसी की दादी या नानी नहीं
सब गुगल की कारसतानी है
यहां सब ज्ञानी हैं

अज्ञानी से क्यूं पूछते हो
ज्ञान की बातें
कैसे जलता है दिया मजार का
क्या हाल है दिल-ए-एतबार का

कई आए- बैठे और चले गए
हाल जाना जेब के भार का
चंद सिक्कों के खातिर
खूबसूरती से बिकता है सब

फिर आंखों ने जो तरासा
वो हीरा है या शीशा
जो चमके बिखेरे हुए है
पूर्णिमा के चांद सा

कई मझे हुए खिलाडी मिले जिंदगी में
अनुभव को भी मात दे जाने वाले जाम सा
लड़खड़ाते दिखे कदम भी उनके
जो थामे बैठे थे मयखाने में रंग गुलाब का

अब हमसे न पूछो ज्ञान की बातें
अनुभव नहीं हमें रावण और बाण सा
अगर हो गई हमसे कोई गुस्ताखी
मिलेगा नहीं फिर रुह को आराम सा

यहां सब ज्ञानी हैं
किसी की दादी या नानी नहीं
सब गुगल की कारसतानी है
यहां सब ज्ञानी हैं