एक ट्रैंड- कलय़ुग नहीं घोर कलयुग
मैने मर जाना, आज को दौर में जब व्हटसएप या टैक्स मैसेज पर ऐसी कोई बात लिखता है, तब हम या इमोजी सैंड कर देते हैं. या अगर हमारा दिली लगाव होगा, तब सामने वाले व्यक्ति को समझाएंगे. हालांकि ज्ञात होता है कि वर्तमान में हर कोई अकेलेपन का शिकार है, एक बात पहले ही लिख चुका हूं जितना ज्ञान पड़ा था. - मौत से पहले 'मन की बात' - जिसमें कुछ तथ्य जुटाए थे. क्योंकि वैसे भी अब मौत मातम नहीं एक ट्रैंड सा बनता जा रहा है. समझदार लोग मौत के मुंह में खुद जा रहे हैं. नाम है आत्महत्या , पढेलिखे लोग उसे सुसाइड - कहते, लिखते और पढ़ते हैं. क्योंकि नासमझ जिंदगी को अपने रंग से अपने ढंग से जीते हैं. जिनको जनता यही कहकी है कि इसका तो दिमाग खराब है.
अब इन समझदार लोगों की बात बताते हैं, जो हमारे एक दोस्त से मौत के शब्द लिखने पर शुरु हुई . हर दूसरे- चौथे दिन आपके कानों में भी बात पढ ही जाती होगी कि वहां उसने सुसाइड कर लिया. पिछले 3 की सालों से सुसाइड करने का एक ट्रैंड- सा आ गया है, सुसाइड करने वाला वीडियो बनाता है. इतना ही नहीं फेसबुक, इंस्टाग्राम या युट्यूव पर लाइव होकर आत्महत्या तो करता है. साथ ही पुलिस का काम भी आसान करता है. मरते-मरते पुलिस वालों का भला जरुर कर जाता है.
जब स्टडी की थी तब आसान से आसान तरीका सुसाइड करने का ढूंढा था, लेकिन यह तथ्य काफी रोचक था. अब कईयों की इच्छाएं कई किस्म की अधूरी रह जाती है. अब जब इच्छाएं अधूरी रह जाएंगी, तब इंसान की आत्म न नरक में जगह पाती है और स्वर्ग के द्वार आत्महत्या करके खुले होंगे. ये वहम दिमाग से निकाल ही दो. अब नरक में भी जगह नहीं, दूसरे ग्रह का पता नहीं. क्योंकि ऐसी शिक्षा वैसे भी हासिल नहीं की. फिर इस ग्लोब पर ही गोते खाओगे. भूत बनके
अब भूत अच्छे होते हैं ये आजतक कहानियों में कभी पड़ा नहीं. अब इसमें भी मेल या फिलेम वर्जन है. भूत, प्रेत, डायन, चूडेल, चंडाल, बाकि हर स्थान के हिसाब से वहां की लोकल लैंगवेज के नाम अलग- अलग होते हैं. अभी आत्महत्या की ही बात नहीं,. जरुरी नहीं की आप आत्म हत्या करो तभी आपको यह उपलब्धी मिलगी, न - एक और रास्ता भी ऐसी उपलब्धि मिलने का.
अगर आपकी कोई इच्छा अधूरी रह जाती है. तब भी आप यह स्थान आसानी से पा सकते हो. लिहाजा आराम की मौत मरकर. क्योंकि कईयों को प्यार नहीं मिलता. कईयों को आराम नहीं मिलता तो कईयों को फरमान नहीं मिलता. क्योंकि जब इच्छाओं की पुर्ति नहीं होगी फिर इंसान मरके भी भटकता ही रहेगा.
अब यह भी सयापा है. जितना जिए- वो भी शांति से नहीं और मरने के बाद भी शांति नहीं. फिर आत्मा को परमात्मा कहां से मिलेगा. नहीं घर से आसपास- और दोस्तों के इर्द- गिर्द भटकते रहोगे. तब आएगा कलयुग की जगह घोर कलयुग. क्योंकि इंसान की इच्छा पूरी नहीं होगी. इंसानों से कहीं ज्यादा प्रेत आत्माएं धरती पर रहेंगी. कहते हैं अभी सिर्फ रात को आती हैं अब दिन में भी आया करेंगी.
अब ऐसे कलयुग हमारे जीते जी होगा तो क्या अच्छा लगेगा. इसलिए मरो तो शान से मरो, ताकि फिर इस धरती पर आकर मान और सम्मान दोबारा न बना पड़े. जिनता बना हो उसे ही याद करके लोग जिंदा रहें. कोई इच्छा अधूरी न छोड़ो, खुद को इतना काबिल बनाओ की इच्छा भी आपकी पूरी हो. नहीं तो कल को कलयुग कैसा होगा वो आपके इंतजार में है.
मैने मर जाना, आज को दौर में जब व्हटसएप या टैक्स मैसेज पर ऐसी कोई बात लिखता है, तब हम या इमोजी सैंड कर देते हैं. या अगर हमारा दिली लगाव होगा, तब सामने वाले व्यक्ति को समझाएंगे. हालांकि ज्ञात होता है कि वर्तमान में हर कोई अकेलेपन का शिकार है, एक बात पहले ही लिख चुका हूं जितना ज्ञान पड़ा था. - मौत से पहले 'मन की बात' - जिसमें कुछ तथ्य जुटाए थे. क्योंकि वैसे भी अब मौत मातम नहीं एक ट्रैंड सा बनता जा रहा है. समझदार लोग मौत के मुंह में खुद जा रहे हैं. नाम है आत्महत्या , पढेलिखे लोग उसे सुसाइड - कहते, लिखते और पढ़ते हैं. क्योंकि नासमझ जिंदगी को अपने रंग से अपने ढंग से जीते हैं. जिनको जनता यही कहकी है कि इसका तो दिमाग खराब है.
अब इन समझदार लोगों की बात बताते हैं, जो हमारे एक दोस्त से मौत के शब्द लिखने पर शुरु हुई . हर दूसरे- चौथे दिन आपके कानों में भी बात पढ ही जाती होगी कि वहां उसने सुसाइड कर लिया. पिछले 3 की सालों से सुसाइड करने का एक ट्रैंड- सा आ गया है, सुसाइड करने वाला वीडियो बनाता है. इतना ही नहीं फेसबुक, इंस्टाग्राम या युट्यूव पर लाइव होकर आत्महत्या तो करता है. साथ ही पुलिस का काम भी आसान करता है. मरते-मरते पुलिस वालों का भला जरुर कर जाता है.
जब स्टडी की थी तब आसान से आसान तरीका सुसाइड करने का ढूंढा था, लेकिन यह तथ्य काफी रोचक था. अब कईयों की इच्छाएं कई किस्म की अधूरी रह जाती है. अब जब इच्छाएं अधूरी रह जाएंगी, तब इंसान की आत्म न नरक में जगह पाती है और स्वर्ग के द्वार आत्महत्या करके खुले होंगे. ये वहम दिमाग से निकाल ही दो. अब नरक में भी जगह नहीं, दूसरे ग्रह का पता नहीं. क्योंकि ऐसी शिक्षा वैसे भी हासिल नहीं की. फिर इस ग्लोब पर ही गोते खाओगे. भूत बनके
अब भूत अच्छे होते हैं ये आजतक कहानियों में कभी पड़ा नहीं. अब इसमें भी मेल या फिलेम वर्जन है. भूत, प्रेत, डायन, चूडेल, चंडाल, बाकि हर स्थान के हिसाब से वहां की लोकल लैंगवेज के नाम अलग- अलग होते हैं. अभी आत्महत्या की ही बात नहीं,. जरुरी नहीं की आप आत्म हत्या करो तभी आपको यह उपलब्धी मिलगी, न - एक और रास्ता भी ऐसी उपलब्धि मिलने का.
अगर आपकी कोई इच्छा अधूरी रह जाती है. तब भी आप यह स्थान आसानी से पा सकते हो. लिहाजा आराम की मौत मरकर. क्योंकि कईयों को प्यार नहीं मिलता. कईयों को आराम नहीं मिलता तो कईयों को फरमान नहीं मिलता. क्योंकि जब इच्छाओं की पुर्ति नहीं होगी फिर इंसान मरके भी भटकता ही रहेगा.
अब यह भी सयापा है. जितना जिए- वो भी शांति से नहीं और मरने के बाद भी शांति नहीं. फिर आत्मा को परमात्मा कहां से मिलेगा. नहीं घर से आसपास- और दोस्तों के इर्द- गिर्द भटकते रहोगे. तब आएगा कलयुग की जगह घोर कलयुग. क्योंकि इंसान की इच्छा पूरी नहीं होगी. इंसानों से कहीं ज्यादा प्रेत आत्माएं धरती पर रहेंगी. कहते हैं अभी सिर्फ रात को आती हैं अब दिन में भी आया करेंगी.
अब ऐसे कलयुग हमारे जीते जी होगा तो क्या अच्छा लगेगा. इसलिए मरो तो शान से मरो, ताकि फिर इस धरती पर आकर मान और सम्मान दोबारा न बना पड़े. जिनता बना हो उसे ही याद करके लोग जिंदा रहें. कोई इच्छा अधूरी न छोड़ो, खुद को इतना काबिल बनाओ की इच्छा भी आपकी पूरी हो. नहीं तो कल को कलयुग कैसा होगा वो आपके इंतजार में है.