'लूज़र कहीं का' कॉन्डम से भी सस्ते फ़ोन कॉल;दुबे
चंडीगढ़(सुनील):आज कल जिस तरह कि जीवन शैली है उसी तरह के साहित्य की भी झलक अब देखने को नही बल्कि सही मायनों में पढने को मिलेगी।नई पीढ़ी के बोल-चाल और व्यवहार की बातें और किस्से पहले भी लिखे जाते थे ,आज के नवयुवक के सामने जो कष्ट है जिस भाषा का प्रयोग हम रोजाना की गतिविधियों में करते है उसी के आधार पर ,छात्र वर्ग का प्रतिनिधित्व करते हुए दोनों भाषाओं को बरावर का दर्जा देकर लेखक पंकज दुबे ने पुस्तिका"लूजर कहीं का"लिखी है। जिस पर आने वाले समय में वह फ़िल्म भी बनाएंगे।
नगरबाणी से हुई प्रेसवार्ता में पंकज दुबे ने कहा कि मैंने अपने करियर की शुरुआत बीबीसी से की उसके बाद दो शॉर्ट फ़िल्म ,2013 में बनी फ़िल्म 'घनचक्र'में मैंने स्क्रिप्ट सुपरवाइजर का व आने वाली फिल 'चौरन्गा' में काम किया है।इस पुस्तिका से पहले में दो और पुस्तिकाएं लिख चूका हूँ।लूजर कहीं का पुस्तिका मैंने विशेष तौर पर विद्यार्थियों टिप्पणी करते हुए उनकी ज़िंदगी के हिस्से को इस पुस्तिका में संजोया है। जब कोई छोटे शहर से बड़े शहर में आता है तो कैसे ,किस तरह से वे सर्वाइव करता है।जिसकी कहानी दिल्ली यूनिवर्सिटी में उतरी भारत के इलाकों से आये विद्यार्थियों के इर्द-गिर्द गुमती है।उनके सामने क्या-क्या मुश्किलें आती है कैसी अपनी पहचान बनाते है कैसी बाते करते है।दुबे ने कहा कॉन्डम से भी सस्ते आजकल फ़ोन कॉल हो गये है,ऐसी कुछ बाते है जो हमे अपने दोस्तों से भी करते है। इसी तरह के किस्सों का जिक्र पुस्तिका में किया गया है क्योंकि हर कोई लूज़र है, लूजर काम हर कोई करता है।मेरा मुख्य उदेश्य लोगों का मनोरजन करना है जो कभी किताबें नहीं पढ़ता हो वह भी लूज़र कहीं का पढ़े।क्योकि इसमे खाश बात है आजकल की आम भाषा और बातों को खाश बनाया गया है।