गुरुवार, 22 नवंबर 2018

2019 चुनाव: धर्म के आधार पर राज की नीति


सत्ता के लिए सरकार कुछ भी करेंगे, और वोटबैंक को बढ़ाने के लिए अपनी जेब से पैसा खर्च हो या किसी और की जेब से फर्क जनता की ही पढ़ेगा. ये बात छुपी किसी से नहीं लेकिन कबूल भी कोई नहीं करता. सच में हमारे समाज की कैसी बिडंबना है, अब जो खर्चा सरकार की और से किए जाता है  वो टैक्स या किसी न किसी रुप में बसूल कर ही लिया जाता है. इसमें कोई हानि भी नहीं क्योंकि समाज के विकास के लिए हम सब भागीदार हैं, हमारा पैसा जो भी वसूला जाता है हमारे और समाज की भलाई के कामों में लगया जाता है, लेकिन ये बात भी सही है कि - बाप बड़ा भाई न भईया सबसे बढ़ा रुपईया- चलिए अब पैसे के बिना वर्तमान में कोई काम वैसे होता नहीं लेकिन ये भी झूठ है किसी को दिलासा देना हो या कोई सपना दिखाना हो तब उसके लिए पैसों की जरुरत नहीं पड़ती, आप बोली जाओ और सामने वाला अगर समझदार होगा तब वो लपेटता जाएगा.
बहरहाल यही अब भारत की रातनीति में चरम पर है वर्तमान में यही कह सकता हूं. यानि सत्ता हासिल करने के लिए सियासत दान कुछ भी कहेंगे. और हम सुनेंगे
चलो कोई बात नहीं खूबसूरत रन और बड़ी पंड दोनों को संभालना काफी मुश्किल है,  हर किसी की नजर इसपर रहती है और हर किसी को आसानी से याद भी. हां- अब यही देश के राजनीतिक गलियारे में हो रहा है. केंद्र की भाजपा सरकार का कभी मैनिफैस्टो उठा कर देखिए- पंड काफी बढ़ी थी और तभी आज शायद जनता को सब याद है, भई पब्लिक है अब सब जानती है. लेकिन ये मानती कैसे है ये हमारे सियासतदान काफी गहराई से जानते हैं. इसमें कोई दोराय नहीं कि जनसेवक जहन में यही सोचते होंगे कि सारा दिन तो जनता के बीच रहते हैं, जनता की रग-रग से बाकिफ हैं, और शायद इसलिए अब रग को पकड़ कर 2019 को लिए राजनीतिक दल पैमाना सैट कर रहे हैं.

हर पार्टी हर किस्म का मशाला डाल रही है ताकि 2019 के राजभोग में कोई कमी न रहे. राजनीति के अखाड़े में जब भी जोर की बात चलती है तब मूल कांग्रेस और भाजपा पर आकर खड़ा हो जाता है, हां भारत के कुछेक राज्यों में क्षेत्रिय पार्टियों का दबदबा है, पर वर्तमान में जिन राज्यों में कांग्रेस या भाजपा की सरकार है उनके मैनिफैस्टो की लाइने जनता के दरबार तक नहीं पहुंची. यानि जो कभी नेताओं की जुवान से सुनी थी वो सेवाएं प्रदान अभी भी हो नहीं सकी कुछेक पर काम चल रहा है, कुछेक हुई है लेकिन अजाम अभी पहुंची नहीं, और कुछेक बातों पर काम आने वाले दिनों में शुरु हो ही जाएगा,. चलिए कोई न - कभी कभी खुद का काम बीच में छोड़ कर भी उठना पड़ता है, इतना ही नहीं कभी-कभी रीज से किया काम भी राज बनकर रह जाता है. पर अब राजनीति में कुछ राज नहीं आज नहीं तो कल आंकड़ों के साथ हिसाब हर बात का हो जाता है. लेकिन धर्म के आधार पर 2019 का चुनाव अधर में लटका हुआ नजर सा आ रहा है. राम जन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण कब होगा तय नहीं, भाजपा फिर से इसी रेखा पर चल रही है. कि मंजिल शायद अब राम मंदिर निर्माण के नाम पर मिल जाए. हम नहीं कह रहे वर्तमान की राजनीति का परिवेश यही दिखा रहा है.  दुनिया के सबसे पुराने धर्म में धार्मिक विचारों के आधार पर राजनीति का खेल लेकिन अब यही खेल सिख धर्म में भी दिखने लग पड़ा है. श्री करतारपुर साहिब कोरिडोर को लेकर अब राजनीति इसपर भी चरम पर होने लगी थी, कुछ दिन पहले तक सियासी हुक्मरान नवजोत सिंह सिद्धू को खरी-खरी सुना रहे थे, लेकिन अब जब केंद्रीय कैबिनेट ने फैसला सुनाया है तो काम की तारीफ हो रही है, लेकिन कुछ दिन बाद अब इस नाम से सियासी दलों में डिबेट भी शुरु हो जाएगी. क्योंकि राजनीतिक दल अब सिद्धू के हाथ और भाजपा के साथ की बात कहेंगे, कि भई हमने इसे अंजाम दिया, पर इसी बीच अकाली दल कोरिडोर को लेकर विसात बिछाने की बात कहेगा, इसमें कोई दोराय नहीं, बात दिल्ली में दिख ही चुकी है, जब केंद्र के फैसले के बाद अकाली प्रधान और केंद्रीय मंत्री ने प्रैस कान्फ्रैंस की. हिंद के चक्कर में लेकिन इस दौरान भाषण में बादल साहब की जुवान फिर गोते खा गई, लेकिन 2019 के में गोते लगा रहे राजनीतिक दलों में से अब किसकी नैया जनता पार लगाती है यह सब धर्मों से उपर इंसानियत के धर्म पर निर्भर करता है. चलिए देखते हैं देश की राजनीति किस दिशा में चलती है और क्या नया रंग दिखाती है.