मंगलवार, 22 जुलाई 2014



तार तार कर जो आँचल उतार फेंका हैं
वैहैशियों ने ,
ये आँचल किसी माँ का है , बहिन
की राखी का धागा है
मगर किसी को क्या फर्क की लहू
लुहान है वो तेरी हवस के आगे
ए पुरुष , तू इस लायक नही के
नारी की कोख से जनम ले सके !

बूंद

बूंदों के साथ
बह रहा है
अमृत आकाश से
उसे अंतर में
उतार ले
मिटा दे द्वेष की गर्मी
बाहर जा
फुहार ले
मेघ ले के आये
सन्देश प्रेम का
पर्दा कोई हटा
तू भी उसे
पुकार ले

eyes

आँखों में कटती है रात
कटने दो
आधी रह जाएगी
बात नहीं तो
लम्हों से हार जायेंगे शब्द
और फिर एक चुप से
शुरू होगा दिन
आज तो मन से बादल
छंटने दो
आँखों में कटती है रात
कटने दो
हर बार नहीं
इतनी हिम्मत जुटती है
हर बार नहीं
कल की चिंता जाती
हर बार न आँखों में
हैं स्याही बनते आंसू
हर बार नहीं दिल बनता
दिल की पाती
बँट जाता है गर
दुःख तो बँटने दो
आँखों में कटती है रात
कटने दो

dreamz word que,

ख़यालात अच्छे रखना
सवालात अच्छे रखना,
किसी भी दौर से गुजरो, अपने अल्फाज़
अच्छे रखना.....

कुछ ना लिखूं

अगर आज कुछ ना लिखूं
तो समझ जाओगी
कि शब्द हर रोज़ की तरह
आज भी कम हैं
जुबां है याद से सूखी
और आँखें नम हैं
अगर आज कहूँ
कि कशमकश अब भी ज़ारी है
तो क्या इंतज़ार करोगी
एक हारे हुए सिपाही से
कब तक प्यार करोगी
जो तुम्हें पता चले
कि तुम्हारी दी हुई कलम
गिरवी है वक़्त की तिजोरी में
और अब नए लोग शामिल
हो गए हैं
अकेले लम्हों की चोरी में
तो क्या तुम मान जाओगी
क्या मेरी कविता को
इतनी भीड़ में
पहचान पाओगी
आज फिर सूरज और चाँद
बिना दिलासा दिए ही चल दिए
मेरे चाहने वाले ज़ख्मों का
बिना खुलासा किये ही चल दिए
नहीं दिलाया उन्होंने
दबे दर्द का एहसास
नहीं बढ़ायी
तुम्हारा नाम ले के मेरी प्यास
इसीलिए खाली एक पन्ना है
और जेब भर के आशा
नहीं आई अब तक मुझे
व्यवहार की भाषा
इस चुप में छुपा है वो सब
जो तुम जानती हो
तब से
जब से मुझे अपना मानती हो
तभी कहा कि
कुछ न लिखूं तो चलेगा
दिए का क्या है
मन के साथ रात भर जलेगा

words

हर बार नहीं होता
कि कविता का अर्थ निकले
कई बार शून्य तक ले जाना भी
कविता होता है
शब्दों में भाव का खो जाना भी
कविता होता है
हर बार नहीं होता
कि कविता से क्रांति हो
कई बात बातें बस बातें
ही रह जाती हैं
और आग बनने से पहले ही
समय की धारा में
बह जाती हैं
कागजों से आगे और कागज़
और उन में दबे हजारों नारे
इन नारों का नारा रह जाना भी
कविता होता है
कथ्य से ज्यादा अकथ्य
झूठ के सागर में
सच का एक
बेपतवार नाव सा अस्तित्व
इस अस्तित्व की पूजा
और झूठ का कारोबार
इस कारोबार में फँसा आदमी
उसका खुली आँख से सो जाना भी
कविता होता है
जन्म से पहले
और जन्म के बाद
मरने वाली लडकियाँ
और उनको जीवन भर
मिलने वाली झिड़कियाँ
बंद गली के आखरी मकान की
ये बंद खिड़कियाँ
इन खिडकियों के पीछे
बंद लाख सिसकियाँ
इनका युगों के बीच छुप जाना भी
कविता होता है
नौकरी की सलीब पर
चढ़ा आदमी
कहते हैं सब कि
बढ़ा आदमी
आदमी के सर पर ही
खड़ा आदमी
अँधेरे कमरे में बंद भविष्य
और भविष्य के नाम पे लड़ा आदमी
जात धर्म वर्ण में बंटा आदमी
अपनों की तलवार से कटा आदमी
खून से करता खून का हिसाब आदमी
देखिये पढ़िए
है खुली किताब आदमी
इतने रूप धर लेना भी कविता होता है
जीते जीते मर लेना भी
कविता होता है
इसी लिए
ज़रूरी नहीं की हर बार
कविता का अर्थ निकले
साँसों के बीच
साँसों का अर्थी
हो जाना भी शायद