तार तार कर जो आँचल उतार फेंका हैं वैहैशियों ने , ये आँचल किसी माँ का है , बहिन की राखी का धागा है मगर किसी को क्या फर्क की लहू लुहान है वो तेरी हवस के आगे ए पुरुष , तू इस लायक नही के नारी की कोख से जनम ले सके !
बूंदों के साथ बह रहा है अमृत आकाश से उसे अंतर में उतार ले मिटा दे द्वेष की गर्मी बाहर जा फुहार ले मेघ ले के आये सन्देश प्रेम का पर्दा कोई हटा तू भी उसे पुकार ले
आँखों में कटती है रात कटने दो आधी रह जाएगी बात नहीं तो लम्हों से हार जायेंगे शब्द और फिर एक चुप से शुरू होगा दिन आज तो मन से बादल छंटने दो आँखों में कटती है रात कटने दो
हर बार नहीं इतनी हिम्मत जुटती है हर बार नहीं कल की चिंता जाती हर बार न आँखों में हैं स्याही बनते आंसू हर बार नहीं दिल बनता दिल की पाती बँट जाता है गर दुःख तो बँटने दो आँखों में कटती है रात कटने दो
अगर आज कुछ ना लिखूं तो समझ जाओगी कि शब्द हर रोज़ की तरह आज भी कम हैं जुबां है याद से सूखी और आँखें नम हैं अगर आज कहूँ कि कशमकश अब भी ज़ारी है तो क्या इंतज़ार करोगी एक हारे हुए सिपाही से कब तक प्यार करोगी जो तुम्हें पता चले कि तुम्हारी दी हुई कलम गिरवी है वक़्त की तिजोरी में और अब नए लोग शामिल हो गए हैं अकेले लम्हों की चोरी में तो क्या तुम मान जाओगी क्या मेरी कविता को इतनी भीड़ में पहचान पाओगी आज फिर सूरज और चाँद बिना दिलासा दिए ही चल दिए मेरे चाहने वाले ज़ख्मों का बिना खुलासा किये ही चल दिए नहीं दिलाया उन्होंने दबे दर्द का एहसास नहीं बढ़ायी तुम्हारा नाम ले के मेरी प्यास इसीलिए खाली एक पन्ना है और जेब भर के आशा नहीं आई अब तक मुझे व्यवहार की भाषा इस चुप में छुपा है वो सब जो तुम जानती हो तब से जब से मुझे अपना मानती हो तभी कहा कि कुछ न लिखूं तो चलेगा दिए का क्या है मन के साथ रात भर जलेगा
हर बार नहीं होता कि कविता का अर्थ निकले कई बार शून्य तक ले जाना भी कविता होता है शब्दों में भाव का खो जाना भी कविता होता है हर बार नहीं होता कि कविता से क्रांति हो कई बात बातें बस बातें ही रह जाती हैं और आग बनने से पहले ही समय की धारा में बह जाती हैं कागजों से आगे और कागज़ और उन में दबे हजारों नारे इन नारों का नारा रह जाना भी कविता होता है कथ्य से ज्यादा अकथ्य झूठ के सागर में सच का एक बेपतवार नाव सा अस्तित्व इस अस्तित्व की पूजा और झूठ का कारोबार इस कारोबार में फँसा आदमी उसका खुली आँख से सो जाना भी कविता होता है जन्म से पहले और जन्म के बाद मरने वाली लडकियाँ और उनको जीवन भर मिलने वाली झिड़कियाँ बंद गली के आखरी मकान की ये बंद खिड़कियाँ इन खिडकियों के पीछे बंद लाख सिसकियाँ इनका युगों के बीच छुप जाना भी कविता होता है नौकरी की सलीब पर चढ़ा आदमी कहते हैं सब कि बढ़ा आदमी आदमी के सर पर ही खड़ा आदमी अँधेरे कमरे में बंद भविष्य और भविष्य के नाम पे लड़ा आदमी जात धर्म वर्ण में बंटा आदमी अपनों की तलवार से कटा आदमी खून से करता खून का हिसाब आदमी देखिये पढ़िए है खुली किताब आदमी इतने रूप धर लेना भी कविता होता है जीते जीते मर लेना भी कविता होता है इसी लिए ज़रूरी नहीं की हर बार कविता का अर्थ निकले साँसों के बीच साँसों का अर्थी हो जाना भी शायद