शुक्रवार, 14 सितंबर 2018

रेप और राजनीति - इतनी फूहड़ता कहीं नहीं देखी

रेप और राजनीति - इतनी फूहड़ता कहीं नहीं देखी

बलात्कार क्या होता हैः गूगल पर सर्च करोगे, बड़ी आसानी से कई हिस्सों में बलात्कार के मतलब मिल जाएंगे, कई संधि विच्छेद भी. लेकिन दिमाग में पहले घंटी बही करेगा जो आज तक आपने सूना है. जैसी परिभाषा दिखाई गई है, 16 दिसम्बर भारतीय इतिहास का काला दिन, जब हमने भी जाना था कि बलात्कार क्या है, लेकिन शायद उससे पहले एक मां भी अपनी बेटी से सेक्स एजुकेशन को शेयर करने से डरती या शर्माती होगी. इसलिए बीते दिनों पीएमो से अपील की है कि सेक्स एजुकेशन स्कूल से ही पढ़ाई जानी चाहिए. लेकिन दिल्ली में हुए बलात्कार के बाद इसपर चर्चा आम होने लगी. उन दिनो जब दिल्ली में रुह को झकझोर देने वाला अपराध हुआ था. उस दौरान हर घर में इसी बात की चर्चा थी. हमाऱे घर में भी -लेकिन राजनीतिक महौल और जिस किस्म की बयानबाजी जारी थी,नानी ने उस बयानबाजी को सुनते हुए कहा था- इतनी फूहड़ता कहीं नहीं देखी.

आज बलात्कार रेवाड़ी में हुआ. किसी इज्जत फिर तार-तार हुई है. पर राजनीतिक तौर पर फूहड़ता का दौर जारी है. बलात्कार की घटना का कोई पहला वाक्य नहीं है, दो-चार दिन बाद कोई नया वाक्य सामने आ जाएगा. राजनीतिक फूहडता का काम जारी है.

 चिंता न कीजिए टीवी पर टीआरपी और सोशल मीडिया के साथ-साथ शब्दों के सिपाही - तलबार बाजी कर रहे हैं. ताकि आपका आकर्षण और भी गहरा हो सके. आपकी आंखे उन शब्दों पर ऐसे टीक जाएं जैसे कोई पीड़िता अपने जिस्म को पोस्टमार्टम के वक्त कड़ा कर लेती है. मोबाइल, टीवी रीमोट , और अखबार पर भी हमारी नजरें और ऊंगलियां ऐसे ही कड़े शब्दों को देखर रुक जाती हैं. क्लिक करके जानिए पूरी कहानी.. लला-भभा - अ ब स द जो भी इस्तेमाल में लाते हैं. (ऐसी शब्दावली का हम विरोध करते हैं ) साथ ही टू फिंगर टेस्ट  का भी ,

 कुछेक बच्चियां या लड़कियां होगीं जिन्हें शायद पता नहीं की टू फिंगर टेस्ट क्या है. हमें अभी ज्ञान नहीं की मेडिकल के दौरान पीड़िता का टेस्ट इस तरीके से किया जा है या नहीं, लेकिन ऐसी स्थिति में या इस टेस्ट के जरिए जिनता हम समझते हैं - एक बार फिर रुह को झकझोर दिया जाता है. और पीड़िता शायद अंदर ही अंदर उस दौरान भी घूट रही होती है. क्योंकि इस तरह से मेडिकल के दौरान  जो स्थिति होती है- अगर महसूस करते हो तो उस दर्द को भी कीजिए-

बलात्कार के बाद पीड़ित लड़की  सरकारी अस्पताल में सफेद रंग की चादर पर लेटी  हुई थी . नर्स ने आकर पहले उसकी सलवार खोली और फिर कमीज को नाभि से ऊपर खिसकाया. इसके बाद दो पुरुष डॉक्टर आए. उन्होंने लड़की की जांघों के पास हाथ लगाकर जांच शुरू की तो उसने एकदम से अपने शरीर को कड़ा कर लिया. एकाएक दस्ताने पहने हुए हाथों की दो उंगलियां उसके वजाइना (योनि) के अंदर पहुंच गईं. वह दर्द से कराह उठी. डॉक्टर कांच की स्लाइडों पर उंगलियां साफ करके उसे अकेला छोड़कर वहां से चलते बने.

अब जिसका हम विरोध करते हैं-  जांच से पहले न तो पीड़िता की अनुमति ली और न ही उसे बताया कि उन्होंने क्या और क्यों किया. टू फिंगर टेस्ट गैर कानूनी है और अवैज्ञानिक भी. लेकिन कुंठित डॉक्टर देशभर में इसे जारी रखे हुए हैं. यह टू फिंगर टेस्ट (टीएफटी) था. साहस से सफेद चादर  से वो लड़की उठती है  तो हमारा भी फर्ज बनता है कि उसके प्रति अपनी भावनाओं में बदलाव न लाएं. बल्कि सहानुभूति दिए बिना उसका साथ दें- न की दूरी बनाएं,

 हम जो भी कहें वो समझ तो नहीं आएगा, क्योंकि इन मामलों में आप हमसे कहीं ज्यादा समझदार हो,  हां ये भी है-  हमने उन आंखो को पास से गुजरते हुए देखा है,जो इस दर्द से गुजर चुकी रूह है. वैसे भी अब पग-पग पर बलात्कार होता है. विश्वासघात को भी हम बलात्कार की संज्ञा से कम नहीं रखते. प्यार करो - चार दिन बातें करो, दोस्ती रखो- मतलब निकालो, जिम्मेदार हालात भी नहीं, विश्वास तोड़ कर,घात लगाकर, बलात्कार कर दो वस !  इसलिए एक कविता में हमने पहले ही विश्वास तोड़ने वालों को भी बलात्कारी करार दिया है. मौका परस्तों से भी सावधान क्योंकि कुछेक राजनीतिक नुमाइंदो की तरह मौके पर ही दस्तक देकर चर्चा में आकर हम जैसों का बेवकूफ बनाते हैं. कितनी फूहड़ता हो गई है ना सच्ची....