बुधवार, 18 मार्च 2015

akshar e dastan



कहीं दुनिया ही निराश है
कहीं ख़ुशी ही उदास है
मेरा तो बस एक प्रयास है
जनता हूँ अंत काल का
मिटटी में ही मिल जाऊंगा
अपने दिल की किसी को तो सुनाऊंगा
भरे नहीं
गहरे  अभी भी हरे हैं जख्म
राह जाते हुए को  भी पुकार लगाउँगा

पुकार एक अनसुनी कहानी

akshar e dastan



यूँ तो ज़िंदगी कमाल,
हर कदम पर मेरी रूह
मुझसे ही पूछती सवाल है ,…
चल पड़ा हूँ अपनी ही धुन में
 हर सवाल का यहीं जबाव है ,…
है जो मेरे होंसले बुलंद
छू ना पाये मुझे कोई गम।
लाऊँ मै समझने के लिए कौन सी भाषा
मेरी उम्मीद ही है मेरी अभिलाषा
अंधी आए ,सुनामी आए ,
या पैगंबर का पैगाम  आए। .
वस.. है जो पास मेरे 
उम्मीद .... एक आशा

akshar e dastan



साँस शरीर सभी का खाक होता है
हर गुँज़ते लफ्ज़ का स्वास होता है .
कहानी तो वक्त बना ही  देता जो
कुछ खट्टी मीठी यादें.. सजा  देता है .
हर पहर एक धुन आएगी
एक नया राग सुनाएगी ..
मदमस्त.. हो जाएगी ज़िंदगी
जब नगमो की माला में भर जाएगी ..
ऐसे ही नगमों की कहानी
मेरी रूह . .जुबानी
नग्मे,,,,,, एक अनसुनी कहानी

akshar e dastan



जान सके
मुझे अपने ही मेरे पहचान सके
मेरा ही दाम जान सके ,
यूँ तो रटते फिरते थे
मेरे ही गुनाहों का जनाज़ा
मेरी ही बातों का मतलब जान ना सके ,
किस भ्रम में डूब गए जो
आज भीड़ में नहीं
अँधेरे में नहीं
अपने ही दमन तले जान सके। .
हाँ
मेरे ही आगोष में शायद दावानल ही पलते होंगे
मेरी ही भूल थी ,,, वो हम पर मरते होंगे
यही सोचते रहे ,मुझे याद भूले से ही सही। करते होंगे। .
आज आया जो है आइना सामने
तो खुद को भी पहचान सके
अपने ही आप को      हम   जान सके