मंगलवार, 14 अगस्त 2018

जिंदादिल इंसान भी डरता है सपने में दिखी उस रुह से

वो रात काफी अजीब थी, सुन सी हो गई थी रुह जब - खुली आंखों से भी देखा उसे , जो दिखी थी बंद आंखों से , होश में आने के बाद भी भुला नहीं पाई ....

हुआ कुछ ऐसा ही था. पता तब चला जब एक दिन सहमे हुए पन का कारण पूछा.  पता नहीं था असल जिंदगी में इतने परिवक्व किरदार का इंसान भी रात के अंधेरे में चलता है. लेकिन पल भर के लिए सहम सा जाता है जब उसे उस पल की याद आती है. और फिर उसे तलाश होती है ख्यालों में उस धुंधले हुए चहरे की जो कभी उसने देखा था. जिसके बाद शायद आत तक वो सो नहीं पाया है चैन से.

जी हां, वो इंसान जिससे जब हम बात किया करते हैं काफी हंसाता है. काफी जिंदगी को रंगीन बनाता है.  बुहत अच्छा ही कह सकता हूं दोस्त है या नहीं लिखे जाने तक तय नहीं. लेकिन इंसानी रुह अच्छी है. एक अपनापन सा है. जो जिंदगी के पटल पर कम ही लोगों को समझ आता है.

कहना शायद सही रहेगा- दिल में, दिमाग में हजारों परेशानियां है उनके लेकिन जुबान से कभी जाहिर नहीं. बातों ही बातों में बात होती है यह तो आपको भी पता है और अब हमें भी समझ आ ही गया.

उस दिन सब सही था रीतिका ने जितना बताया. अंदाजन दिनचर्या भी आम सी ही थी. जो रोजना हुआ करती है. शाम को परिवार में मां-पिता के साथ थोड़ी सी गप्पें मारी. खाना खाया, घर का बाकि काम उस दिन कम किया .मां ने ही कर दिया तो खुद के हाथों में मंहदी नहीं लगी थी, हां आजकल फोन अगर हाथों में है तो महंदी लगने से कम भी नहीं. बस फिर क्या था-

रुख कर लिया अपने महल की और- मतलब अपने कमरे की तरफ, मखमल के बिस्तर से कम नहीं जहां बचपन से आराम फरमाते आएं है. क्योंकि वक्त के हिसाब से उस कमरे और चारपाई के साथ कई यादें जुड़ी हुई हैं, जो भुलाए नहीं भुलती- और कभी तो ऐसे याद आती हैं, जैसे उस वक्त में ही बैठी हूं. फिर मंद सा हंस  कर वर्तमान में-

उस दिन भी ऐसा ही चल रहा था. उंगलियां मोेबाइल की स्क्रीन और दिमाग और कहीं लीन, अब क्या किया जाए. चल रहा है तो चल रहा. खुश थी. लेकिन भविष्य  का किसे पता था . पल भर में नींद आ गई. नींद में एक लड़की दिखाई दी . दरवाजे के बाहर खड़ी है और सफेद वस्त्र  धारण किए हुए है.  पल भर में नींद खुल गई . जैसे ही नींद खुली जो चेहरा नींद में दिखा था बंद आंखों से खुली आंखो से भी वही नजर आ रहा था. न आओ देखा-न ताओ. मैं उठी ऐसे तैसे हिम्मत गठजोड़ कर और सीधे  मां-पापा के कमरे के बाहर और जोर  उनको आवाज पर आवाज .

जैसे ही दरवाजा खुला- नो एंट्री जोन में जैसे कोई गाड़ी खुसाता हैः  वैसे सीधे अंदर, जो भी था .. पूछा भी गया कि क्या हुआ, जवाब था बस - सुबह बताउंगी. वो रात और आज तक जो भी रात आती है अगर गलती से भी ध्यान उस और चला जाए . खुदा कमस नींद नहीं आती ,

अब रीतिका को सच्ची कभी कभी नींद आने पर नींद नहीं आती. आज भी कमरे की बत्ती जलाकर सोती है. लेकिन जहन में जो डर भरा पड़ा है उसे निकालना तो होगा. उम्मीद है वक्त के हिसाब से डर घायब और हौंसला भर जाए, और जब भी जुबान पर जिक्र आए बस एक मीठी सी याद और खुशी देकर जाए.