एक अरसे से हम एक बात सुनते आए है. बड़पन ही होगा शायद जो जमीं से
जुड़ते आए हैं, औकात की बात करते हैं नहीं , क्योंकि खुद खुदा ने भी जन्म दाता और गुरु के
आगे सर झुकाए है. ख्याल भी नहीं उन बातों का, जिसने राह में रोड़े अटकाए हैं। अनुभव तो सियासत के धुरधंरों को भी
बहुत है -फिर क्यों वो हारते आए हैं। जीत उनके सर जो पञ्च तत्वों से भी सीख कर, लकीर के फ़क़ीर से तक़दीर चमकाते आए है। काम तो
है सालो का उनका, अनुभव फिर क्यों सवालों में अब, जो हमारे कर्म पर तंज़ और मेहनत को भ्रम समझते
आए है।