सोमवार, 20 अगस्त 2018

लिखत का पता महखाने में जाना, इज्जत का पता पजामे से जाना

लिखत का पता महखाने में जाना
इज्जत का पता पजामे से जाना
क्यों दोष देना किसी की सोच को
खुद को भी हमने अनजाने में जाना

बढ़ा ही उल्टा है कलेश जाम का
पतलून जो पहनी उसकी शान का
फिर बदनाम होंगे तब क्या हुआ
अकेली रहती है खुदगर्जी
जैसे नाता बूंद और रेगिस्तान का

अब नशा ही जिंदगी का कर लिया
लास्टिक का पजामा भी परे कर दिया
चंद अल्फाज मिल जाते हैं आसमान में
तभी चांद ने चांदनी के लिए जहान कर दिया

उतर जाती है बड़े-बड़ों की
अगर नाडा अधर में अटक गया
फिर जो मर्जी तरकीब लगाओ
मैदान सूखा कमबख्त जिस्म भीग जाएगा

अब अलफाज उल्टा कहा नहीं जनाब
उल्टा जरुर सही सुनील जो है एक ख्वाब
तरकीब निकालने की जुर्रत न करें
समुद्र से मत पुछना लहरों का हिसाब