शुक्रवार, 23 जनवरी 2015

goal of boll

कहते है गेंद की तरह है ये दुनिया
अंदर है जिसके बहुत सी कहानिया ...
जब भी चाहा देख कर खोलना मैंने ये पिटारा
बहुत कुछ कहने सुनने लायक है जिसका नज़ारा ...
सहम सी जाती  हूँ पल भर के लिए
देख कालचक्र में जलते जीवन के दिए .....
तिरमिरा सी जाती है भावशून्य
सुनकर उसकी जिवंत दास्ताँ
उपलब्धियां कम नहीं जिसके जीवन की
वस सपनों तक पहुंचने से पूर्व
वक्त के हत्थों बाजुओं की कम लम्बाई
जो आज बन गई है जिंदगी में तन्हाई
कोई तो सुनेगा जिसकी  पूकार
जो खड़ा है आज मझधार
पूकार एक अनसुनी आवाज़