गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

आज फिर छत से तनहा दिखेगा चाँद


आज फिर छत से
तनहा दिखेगा चाँद
टीमटीमाती चांदनी
तनहा दिखेगा चाँद 


होगी दुआ उनकी काबुल
मांगेगी वो मांग का सिंदूर
करेंगी फ़रियाद उससे
जो सालों से तन्हा बेकसूर

जानता है वो तन्हाई का सितम
काली रात में दिखती परछाई सी किस्म
सोने सा पूर्णिमा को चमकता जिसका जिस्म
ए चाँद जरा जल्दी उगना भूखा-प्यासा है प्रीतम

तू बखूबी जनता है मेरे प्यार का आलम
एक सा नहीं रहता प्रीतम का बालम
कभी पूर्णिमा सा दूर से छलकता है प्यार
कभी करवाचौथ सा रहता है बेशब्र इंतज़ार

कभी बढ़ता -कभी कम होता है इज़हार
कभी रूत बदले रूठे जो मितवा
तब अकेला दिखता है तू
और खुद का खुदगर्ज़ सा संसार
लगता है अब अमावस ही छा गई
बहार आने का रहता है फिर इंतज़ार

हाँ सुनील फिर सोचता हूँ -
आज फिर छत से
तनहा दिखेगा चाँद
टीमटीमाती चांदनी
तनहा दिखेगा चाँद

#करवाचौथ_और_चाँद

कभी सुनी है तान

कभी सुनी है तान
जो कहती है नैनों की शान
कभी छीन लेते हैं आराम
कभी घायल होता है दिल
बिना तीर और कमान

कभी सुनी है तान
मंद सी मुस्कराहट की
दबे हुए लबों से
खिले हुए बालों की

कभी सुनी है तान
दबे पांव की आहट की
हवा में घोले संगीत मधुर
छनक उस पायल की

कभी सुनी है तान
बिना शब्द और साज
गूंजती है एक आवाज़
दूर होकर भी पास ही
नज़र आते हैं जनाब

कभी सुनी है तान
घूम हुए बैठे हैं इंसान
क्या सुनील ये कैसा पैगाम
नाराज़ है वो क्यों
न अब रूह ए राज का अंजाम