( खोटा सिक्का ) आपने बचपन में कहावत सूनी होगी. या आज भी कभी-कहीं कहते सूना होगा, कही भी होगी. सिक्कों का पता चल जाता है कि खोटा है या नहीं, पर नोट एक का हो या 2 हजार का कभी पता नहीं चलता खोटा है या नहीं. जरा सी भी फट जाए- फिर तो गया काम से. जैसे मां-बाप बेटी का कोई कसूर नहीं निकालते पर , बहु के बारे में घर क्या - गांव भर में उसकी चर्चा होती है. जिंदगी मे मां-बाप के लिए उनकी (कुछेक ) औलाद भी नोट की तरह ही है. और कुछेक ने अपनी जिंदगी ऐसी बना ली है. रंगीन नोट- शायद आपने भी तो नहीं ---
शायद हां- अकेला नोट जेब में पड़ा हो तब खुशी होती है लेकिन अगर वो चिल्लर हो जाए फिर जिज्ञासा रहती है यार पैसे कम हैं. शायद सही है. जिसके पास सौ हैं वो भी सुखी नहीं. जिसके पास गिनने का वक्त नहीं वो भी सुखी नहीं. हमारी मम्मी अकसर यही बात कहती हैं. साथ ही यह भी कहती है कि कम मे गुजारा कर लो पर खुश रहो - ज्यादा की इच्छा दुखी कर देती है.( जिन्होंने किसी लड़की या लड़के से प्रेम किया है वो इस बात को समझ सकते हैं. )
पर अब पॉकेट में ज्यादा है या कम यह गम नहीं. हां -गम इस बात का है कि क्यों परिवार होने के बावजूद भी एक ऐसे शख्स की तलाश रहती है, जो हमारी सुने- हम बिना किसी संकोच के उससे हर बात शेयर करें. जिसे हम अकेलापन भी कहते हैं या समझते हैं. पर अकेलापन खत्म होने पर कई दफा दर्द देकर चला जाता है. अब जिंदगी रंगीन कैसे हो ------ आजकल जो इंडियन करंसी का गुलाबी रंग है. फिर नोटबंदी के बाद और रंग में नोट आ जाए यह कहना अभी संभव नहीं , लेकिन इन रंगीन नोटों के चक्कर में आज के युवा की जिंदगी रंगीन नहीं है. यह वर्तमान का परम सत्य है.
युवा देश की जवां सोच या लालसा - एजुकेशन के वक्त लव-सब, ठीक है भई करो - कौन मना करता है. लेकिन कैरियर भी बना लो. पता बात क्या है या थ्री इडियटस टाइप का कैमिकल लोचा-- सब कुछ जल्दी -जल्दी हासिल करना है. स्टैप टू स्टैप नहीं. फिर जब दो सीढियां एक साथ चढ़ोगे तब पैंट अपनी ही फटती है. चाहे जिन्स की कोई सी भी कम्पनी की हो. या वो फट जाती है. या गिरा देती है.
पहला स्टैप- एजुकेशन,,, दूसरा- कैरियर,, तीसरा- लव,,, चौथा- शादी
अब हम करते क्या हैं , दूसरे नंबर को हमेशा ही इग्नोर करते हैं. चाहे वो कोई भी फील्ड हो. अब एजुकेशन के साथ लव और फिर कैरियर ऐसा करोगे. फिर तो गलत है न भई...... (कुछेक मामलों में 67 फीसदी तक )
अच्छा जब पैसे कमाने का टाइम आया तब अकेलापन, क्योंकि पैसा .या पॉजिशन नहीं थी तब प्यार ने भी लात मार दी. और अब पैसा है तो अकेलापन खाने को दौड़ता है. क्योंकि हालात ऐसे हैं कि परिवार से भाई-बहन से कई बातें शेयर करने की हिम्मत नहीं होती. वैसे बु्द्धिमता इसी में है कि परिवार को कोई कष्ट न दें.
अब ऐसी स्थिति में क्या किया जाए.. कोई है क्या ------ जो सुन सके-- कोई भी नहीं - क्योकि विश्वास जिनपर था वो अब उस पात्र के काबिल नहीं रहे - जिन्हें बयान कर सकें. फिर शुरु होता है युवा ल़ड़की और लड़के के दिमाग में कैमिकल लोचा. अब जिंदगी में रंगीनियत खत्म सी हो गई है. जो घर से बाहर रहकर जॉब या स्टडी कर रहे हैं, वो इस अकेलेपन का शिकार हो चूके हैं.
अब इस अकेलेपन में रंगीनियत और नियत दोनों एक सिक्के के दो पहलु हैं. गौर रहे रंगीन नोट नहीं, अच्छी नियत से खुश रहकर जिंदगी जियोगे तब रंगीनियत रहेगी. तब लोग भी कहेंगे - यार उसको कोई चिंता ही नहीं. कैसा करता है सब... चाहे दिल में गम हजार हैं हजूर- लेकिन खुद की जिंदगी को खुश करने का है फितुर
इसलिए अकेलापन बांटने के लिए ऐसा साथी रखो - जिसे खोटे सिक्के की भी कदर हो. रंगीन नोट से कहीं ज्यादा, एक दौर में आपने दूरदर्शन पर रंगोली में गाना सूना ही होगा. गौरे काले का भेद नहीं - हर दिल से हमारा नाता है,,,... शो इग्नोर - किसी की शक्ल, अकल और आवाज को मत देखो जनाब - सब धोखा है, उसके चरित्र को देखो- वो आपके साथ कैसा व्यवहार रखता है, आप पर विश्वास करता है या टाइम पास- चाहे वो आपके बाकि जानकारों की नजर में कैसे है. सबसे अहम है अपकी जिंदगी में उसका क्या किरदार है- आप उसके साथ खुश हो , वो आपकी भावनाओं को समझे... अब इश्क-विश्क की बात नहीं- परहेज है... हाजमा खराब होता है- नींद नहीं आती,
इश्क करना है तो खुद से करो यार - तभी आपको सामने वाला उतनी ही गहराई से करेगा. जितनी गहराई से आप खुद से करते हो. कसम खुदा की खुद की खुशी का ही ठिकाना नहीं होगा. फिर देर किस बात की है... भई..
खुश रहो- आबाद रहो - जिंदादिल रहो... चाहे दुनिया कहती रहे- दिमाग खराब है......
बस याद रखिएगा. - गांठ बांध के--- चलो आजकल गांठ कोई नहीं बांधता - और ऐसी एप्प भी नहीं हम कोई जानते. जो आप अपने फोन में रख लें. इसलिए दिमाग की हार्डडिस्क में सेव करके ऱखिएगा... ठीक है.....
जीवन में चरित्रहीनता से बढ़ी हिनता कोई नहीं होती.. अमीरी झूकने में झूकाने में नहीं. खास कर वर्तमान समाज के परिवेश में रिश्तों को संभालने के लिए जनाब... अब मत लो अकेलेपन का खाब.. नहीं तो दिमाग होगा खराब.... ठीक है..
शायद हां- अकेला नोट जेब में पड़ा हो तब खुशी होती है लेकिन अगर वो चिल्लर हो जाए फिर जिज्ञासा रहती है यार पैसे कम हैं. शायद सही है. जिसके पास सौ हैं वो भी सुखी नहीं. जिसके पास गिनने का वक्त नहीं वो भी सुखी नहीं. हमारी मम्मी अकसर यही बात कहती हैं. साथ ही यह भी कहती है कि कम मे गुजारा कर लो पर खुश रहो - ज्यादा की इच्छा दुखी कर देती है.( जिन्होंने किसी लड़की या लड़के से प्रेम किया है वो इस बात को समझ सकते हैं. )
पर अब पॉकेट में ज्यादा है या कम यह गम नहीं. हां -गम इस बात का है कि क्यों परिवार होने के बावजूद भी एक ऐसे शख्स की तलाश रहती है, जो हमारी सुने- हम बिना किसी संकोच के उससे हर बात शेयर करें. जिसे हम अकेलापन भी कहते हैं या समझते हैं. पर अकेलापन खत्म होने पर कई दफा दर्द देकर चला जाता है. अब जिंदगी रंगीन कैसे हो ------ आजकल जो इंडियन करंसी का गुलाबी रंग है. फिर नोटबंदी के बाद और रंग में नोट आ जाए यह कहना अभी संभव नहीं , लेकिन इन रंगीन नोटों के चक्कर में आज के युवा की जिंदगी रंगीन नहीं है. यह वर्तमान का परम सत्य है.
युवा देश की जवां सोच या लालसा - एजुकेशन के वक्त लव-सब, ठीक है भई करो - कौन मना करता है. लेकिन कैरियर भी बना लो. पता बात क्या है या थ्री इडियटस टाइप का कैमिकल लोचा-- सब कुछ जल्दी -जल्दी हासिल करना है. स्टैप टू स्टैप नहीं. फिर जब दो सीढियां एक साथ चढ़ोगे तब पैंट अपनी ही फटती है. चाहे जिन्स की कोई सी भी कम्पनी की हो. या वो फट जाती है. या गिरा देती है.
पहला स्टैप- एजुकेशन,,, दूसरा- कैरियर,, तीसरा- लव,,, चौथा- शादी
अब हम करते क्या हैं , दूसरे नंबर को हमेशा ही इग्नोर करते हैं. चाहे वो कोई भी फील्ड हो. अब एजुकेशन के साथ लव और फिर कैरियर ऐसा करोगे. फिर तो गलत है न भई...... (कुछेक मामलों में 67 फीसदी तक )
अच्छा जब पैसे कमाने का टाइम आया तब अकेलापन, क्योंकि पैसा .या पॉजिशन नहीं थी तब प्यार ने भी लात मार दी. और अब पैसा है तो अकेलापन खाने को दौड़ता है. क्योंकि हालात ऐसे हैं कि परिवार से भाई-बहन से कई बातें शेयर करने की हिम्मत नहीं होती. वैसे बु्द्धिमता इसी में है कि परिवार को कोई कष्ट न दें.
अब ऐसी स्थिति में क्या किया जाए.. कोई है क्या ------ जो सुन सके-- कोई भी नहीं - क्योकि विश्वास जिनपर था वो अब उस पात्र के काबिल नहीं रहे - जिन्हें बयान कर सकें. फिर शुरु होता है युवा ल़ड़की और लड़के के दिमाग में कैमिकल लोचा. अब जिंदगी में रंगीनियत खत्म सी हो गई है. जो घर से बाहर रहकर जॉब या स्टडी कर रहे हैं, वो इस अकेलेपन का शिकार हो चूके हैं.
अब इस अकेलेपन में रंगीनियत और नियत दोनों एक सिक्के के दो पहलु हैं. गौर रहे रंगीन नोट नहीं, अच्छी नियत से खुश रहकर जिंदगी जियोगे तब रंगीनियत रहेगी. तब लोग भी कहेंगे - यार उसको कोई चिंता ही नहीं. कैसा करता है सब... चाहे दिल में गम हजार हैं हजूर- लेकिन खुद की जिंदगी को खुश करने का है फितुर
इसलिए अकेलापन बांटने के लिए ऐसा साथी रखो - जिसे खोटे सिक्के की भी कदर हो. रंगीन नोट से कहीं ज्यादा, एक दौर में आपने दूरदर्शन पर रंगोली में गाना सूना ही होगा. गौरे काले का भेद नहीं - हर दिल से हमारा नाता है,,,... शो इग्नोर - किसी की शक्ल, अकल और आवाज को मत देखो जनाब - सब धोखा है, उसके चरित्र को देखो- वो आपके साथ कैसा व्यवहार रखता है, आप पर विश्वास करता है या टाइम पास- चाहे वो आपके बाकि जानकारों की नजर में कैसे है. सबसे अहम है अपकी जिंदगी में उसका क्या किरदार है- आप उसके साथ खुश हो , वो आपकी भावनाओं को समझे... अब इश्क-विश्क की बात नहीं- परहेज है... हाजमा खराब होता है- नींद नहीं आती,
इश्क करना है तो खुद से करो यार - तभी आपको सामने वाला उतनी ही गहराई से करेगा. जितनी गहराई से आप खुद से करते हो. कसम खुदा की खुद की खुशी का ही ठिकाना नहीं होगा. फिर देर किस बात की है... भई..
खुश रहो- आबाद रहो - जिंदादिल रहो... चाहे दुनिया कहती रहे- दिमाग खराब है......
बस याद रखिएगा. - गांठ बांध के--- चलो आजकल गांठ कोई नहीं बांधता - और ऐसी एप्प भी नहीं हम कोई जानते. जो आप अपने फोन में रख लें. इसलिए दिमाग की हार्डडिस्क में सेव करके ऱखिएगा... ठीक है.....
जीवन में चरित्रहीनता से बढ़ी हिनता कोई नहीं होती.. अमीरी झूकने में झूकाने में नहीं. खास कर वर्तमान समाज के परिवेश में रिश्तों को संभालने के लिए जनाब... अब मत लो अकेलेपन का खाब.. नहीं तो दिमाग होगा खराब.... ठीक है..