शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

अक्षर -ए -दस्तान्

अक्षर -ए -दस्तान् 

जोड़ कर लफ्ज़ों की,
परवाह करता हूँ शब्द धारा, 
उठाकर कलम करता हूँ व्यक्त,
ग़ालिब लेकर स्याही का सहारा। 
 
कीमत है क्या रिश्तों कि, 
    हमने कब ये जाना,
आपने जोड़ कर तोडा जो रिश्ता,
तब से हमे पागल कहता है ज़माना।

आपको जो अंत जान बैठा मै,
 ज़िंदगी का हिस्सा मान बैठा मै,
आईने के समक्ष नयन भीग जाते है, 
बेबफाई का बादल जब आते है! 

आंसूओं को बहुत समझाया, 
तन्हाई में आया करो, 
महफ़िल में जब होता हूँ,
मत मजाक बनाया करो. 

जो कहते खुदको सितारा है,
'सुनील' जगमगा कर दिखाएंगे, 
राह रखकर अलफ़ाज़ की,
अक्षर -ए -दस्तान् बनाऐंगे।
          
          सुनील कुमार'हिमाचली'

गुरु गोबिंद सिंह जी : जयंती विशेष

गुरु गोबिंद सिंह जी : जयंती विशेष
चंडीगढ़/सुनील;श्री गुरु गो‍बिंद सिंह जी सिखों के दसवें गुरू हैं। इनका जन्म पौष सुदी 7वीं सन् 1666 को पटना में माता गुजरी जी तथा पिता श्री गुरु तेगबहादुर जी के घर हुआ। उस समय गुरु तेगबहादुर जी बंगाल में थे। उन्हीं के वचनोंनुसार गुरुजी का नाम गोविंद राय रखा गया, और सन् 1699 को बैसाखी वाले दिन गुरुजी पंज प्यारों से अमृत छक कर गोविंद राय से गुरु गोविंद सिंह जी बन गए। उनके बचपन के पाँच साल पटना में ही गुजरे। 
1675 को कश्मीरी पंडितों की फरियाद सुनकर श्री गुरु तेगबहादुर जी ने दिल्ली के चाँदनी चौक में बलिदान दिया। श्री गुरु गोबिंद सिंह जी 11 नवंबर 1675 को गुरु गद्दी पर विराजमान हुए। 
धर्म एवं समाज की रक्षा हेतु ही गुरु गोबिंद सिंह जी ने 1699 ई. में खालसा पंथ की स्थापना की। पाँच प्यारे बनाकर उन्हें गुरु का दर्जा देकर स्वयं उनके शिष्य बन जाते हैं और कहते हैं-जहाँ पाँच सिख इकट्ठे होंगे, वहीं मैं निवास करूँगा। उन्होंने सभी जातियों के भेद-भाव को समाप्त करके समानता स्थापित की और उनमें आत्म-सम्मान की भावना भी पैदा की।
WD
गुरु गोबिंद सिंह जी की पत्नियाँ, माता जीतो जी, माता सुंदरी जी और माता साहिबकौर जी थीं। बाबा अजीत सिंह, बाबा जुझार सिंह आपके बड़े साहिबजादे थे जिन्होंने चमकौर के युद्ध में शहादत प्राप्त की थीं। और छोटे साहिबजादों में बाबा जोरावर सिंह और फतेह सिंह को सरहंद के नवाब ने जिंदा दीवारों में चुनवा दिया था। युद्ध की दृष्‍टि से आपने केसगढ़, फतेहगढ़, होलगढ़, अनंदगढ़ और लोहगढ़ के किले बनवाएँ। पौंटा साहिब आपकी साहित्यिक गतिविधियों का स्थान था।
दमदमा साहिब में आपने अपनी याद शक्ति और ब्रह्मबल से श्री गुरुग्रंथ साहिब का उच्चारण किया और लिखारी (लेखक) भाई मनी सिंह जी ने गुरुबाणी को लिखा। गुरुजी रोज गुरुबाणी का उच्चारण करते थे और श्रद्धालुओं को गुरुबाणी के अर्थ बताते जाते और भाई मनी सिंह जी लिखते जाते। इस प्रकार लगभग पाँच महीनों में लिखाई के साथ-साथ गुरुबाणी की जुबानी व्याख्या भी संपूर्ण हो गई। 
इसके साथ ही आप धर्म, संस्कृति और देश की आन-बान और शान के लिए पूरा परिवार कुर्बान करके नांदेड में अबचल नगर (श्री हुजूर साहिब) में गुरुग्रंथ साहिब को गुरु का दर्जा देते हुए और इसका श्रेय भी प्रभु को देते हुए कहते हैं- 'आज्ञा भई अकाल की तभी चलाइयो पंथ, सब सिक्खन को हुक्म है गुरू मान्यो ग्रंथ।' 
गुरु गोबिंद सिंह जी ने 42 वर्ष तक जुल्म के खिलाफ डटकर मुकाबला करते हुए सन् 1708 को नांदेड में ही सचखंड गमन कर दिया।

लोहड़ी एवं मकर सक्रांति

लोहड़ी एवं मकर सक्रांतिचंडीगढ़/सुनील;लोहड़ी एवं मकर सक्रांति एक-दूसरे से जुड़े रहने के कारण सांस्कृतिक उत्सव और धार्मिक पर्व का एक अद्भुत त्योहार है। लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रुप में प्रसिद्ध हो गया।मकर संक्रांति से एक दिन पूर्व उत्तर भारत विशेषतः पंजाब में लोहड़ी का त्यौहार मनाया जाता है। किसी न किसी नाम से मकर संक्रांति के दिन या उससे आस-पास भारत के विभिन्न प्रदेशों में कोई न कोई त्यौहार मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन तमिल हिंदू पोंगल का त्यौहार मनाते हैं। इस प्रकार लगभग पूर्ण भारत में यह विविध रूपों में मनाया जाता है!
  मकर संक्रांति की पूर्व संध्या को  पंजाब, हरियाणा,हिमाचल व पड़ोसी राज्यों में बड़ी धूम-धाम से 'लोहड़ी '  का त्यौहार मनाया जाता है।  पंजाबियों  के लिए लोहड़ी खास महत्व रखती है।  लोहड़ी से कुछ दिन पहले से ही  छोटे बच्चे  लोहड़ी के गीत गाकर लोहड़ी हेतु लकड़ियां, मेवे, रेवड़ियां, मूंगफली  इकट्ठा करने लग जाते हैं।  लोहड़ी की संध्या को आग जलाई जाती है। लोग अग्नि के चारो ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं व आग मे रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। आग के चारो ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं व रेवड़ी,  खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है।  प्राय:  घर मे नव वधू या और बच्चे  की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है। 
ऐतिहासिक संदर्भ -किसी समय में सुंदरी एवं मुंदरी नाम की दो अनाथ लड़कियां थीं जिनको उनका चाचा विधिवत शादी न करके एक राजा को भेंट कर देना चाहता था। उसी समय में दुल्ला भट्टी नाम का एक नामी डाकू हुआ है। उसने दोनों लड़कियों,  'सुंदरी एवं मुंदरी' को जालिमों से छुड़ा कर उन की शादियां कीं। इस मुसीबत की घडी में दुल्ला भट्टी ने लड़कियों की मदद की और लडके वालों को मना कर एक जंगल में आग जला कर सुंदरी और मुंदरी का विवाह करवाया। दुल्ले ने खुद ही उन दोनों का कन्यादान किया। कहते हैं दुल्ले ने शगुन के रूप में उनको शक्कर दी थी।जल्दी-जल्दी में शादी की धूमधाम का इंतजाम भी न हो सका सो दुल्ले ने उन लड़कियों की झोली में एक सेर शक्कर डालकर ही उनको विदा कर दिया। भावार्थ यह है कि डाकू होकर भी दुल्ला भट्टी ने निर्धन लड़कियों के लिए पिता की भूमिका निभाई। 
यह भी कहा जाता है कि संत कबीर की पत्नी लोई की याद में यह पर्व मनाया जाता है. इसीलिए इसे लोई भी कहा जाता है।
  इस उत्सव का एक अनोखा ही नजारा होता है। लोगों ने अब समितियाँ बनाकर भी लोहड़ी मनाने का नया तरीका निकाल लिया है। ढोल-नगाड़ों वालों की पहले ही बुकिंग कर ली जाती है। अनेक प्रकार के वाद्य यंत्रों के साथ जब लोहड़ी के गीत शुरू होते हैं तो स्त्री-पुरुष, बूढ़े-बच्चे सभी स्वर में स्वर, ताल में ताल मिलाकर नाचने लगते हैं। 'ओए, होए, होए, बारह वर्षी खडन गया सी, खडके लेआंदा...,' इस प्रकार के पंजाबी गाने लोहड़ी की खुशी में खूब गाए जाएँगे।शाम होते ही उत्सव शुरू हो जाता है और देर रात तक चलता ही रहता है। इस पर्व का एक यह भी महत्व है कि बड़े-बुजुर्गों के साथ उत्सव मनाते हुए नई पीढ़ी के बच्चे अपनी पुरानी मान्यताओं एवं रीति-रिवाजों का ज्ञान प्राप्त कर लेते हैं, ताकि भविष्य में भी पीढ़ी दर पीढ़ी उत्सव चलता ही रहे।

सेलों में आर्थिकता उबारने की कोशिश

                                 सेलों में आर्थिकता उबारने की कोशिश 
चंडीगढ़ /सुनील :यूँ तो भारत देश सोने की चिडया भी कहा जाता है। लेकिन पिछले आंकड़ों को देखें तो भारत की आर्थिक स्थिति काफी दयनीय रही है। मुद्रा स्फीति की दर में निंरंतर गिरावट देखने को मिली। जिसकारण उपभोक्ता खरीददारी तो करता है ,लेकिन त्योहारों के समय। गतवर्ष बाजार में मंदी छायी रही, डालर के मुकाबले रुपया बहुत ही दयनीय स्थिति में रहा और समाज के हर वर्ग को मंहगाई के सामने गुटने टेकने पड़े।  ऐसे में आजकल दुकानदारों द्वारा अधिक संख्या में सेलें लगाई जाती है।  राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय सभी कम्पनियां चाहे वह कपडे की ,क्रॉकरी या फिर और किसी सामान की, वह अपने प्रोडक्ट को सेल के जरिए अच्छी दरों पर बेचना पसंद करते है। 
      जब नगर बाणी की टीम ने कुछ सेल व्यापारियों से बात कर आँकड़े इक्क्ठे किये तो उन्हों ने बताया कि उन्हें सेल में प्रतेक वर्ग का ग्राहक मिल जाता है। जबकि दुकान में गिने -चुने ग्राहक मिल जाता है।  यहाँ पर अधिक संख्यां में २२ से ४० वर्ष के लोग आते है। इसके इलावा जब मुनाफे कि बात की तब व्यापारियों से जाना कि सेल में ज्यादा मुनाफा नही होता लेकिन सामान ज्यादा बिकता है,ग्राहकों की अधिक संख्या में आने से नुक्सान भी नही होता,वस! खर्चा पानी आसानी से निकल जाता। है। 
       सेलों से आर्थिक स्थिति में काफी संतुलन आता है।  त्योहारों के समय लोग सेलों से ज्यादा खरीदारी करते है। जिससे आर्थिकता उबारने की कोशशि मिली है। सेल वह व्यापर प्रणाली है,जहाँ से उपभोक्ताओं को उपभोग करने के लिए वस्तुएं व्यापारियों द्वारा कम दम में बेचकर उपभोग में लायी जाती है। जिसक फलस्वरूप समाज का हर वर्ग कम व आसान दरों से वस्तुओं का उपभोग क्र पता है। उत्तर भारत में दिल्ली पंजाब व हिमाचल में अधिक संख्या में सेल प्रणाली अपनाई जाती है। 
       व्यापारियों का कहना है कि यहा कम्पीटिशन विदेशी व राष्ट्रिय कम्पनियों के व्यापर में नही ब्लकि हस्तनिर्मित चीजों में बहुत ही सोच समझ क्र दाम तय किये जाते है। सेलों के माध्यम से ग्राहकों को कम दरों से अधिक सामान अर्जित करने का मौका मिला है। जिसक चलते अधिक सामान कि बिक्री से मुनाफा हुआ और आर्थिक स्थिति में तेजी आई। 

अक्षर -ए -दस्तान्

 अक्षर -ए -दस्तान् 

जोड़ कर लफ़्ज़ों की,
प्रवाह करता हूँ शब्द धारा ,
मुझे तो है शाकी वस 
कलम की नीव और 
स्याही का सहारा , 

दिल में इच्छा सी रहती है !
कल मिलने कि दोबारा ,
चढ़ते सूरज से
 डूबते चाँद तक ,
वस है तेरा ही सहारा ,

बैठा रहता हूँ शाहिल पर ,
कभी तो नाव आएगी !
टिकट कटेगी तब,
मेरी तन्हाई साथ ले जाएगी !

यूँ तो शाकी कमी सी लगती ,
घड़ी कि टिक -टिक 
हमे सहमी सी लगती !

तब जमीर भी बात 'सुनील 'की, 
राह रखकर अल्फाज़ की ,
करता जो ब्यान ,
अक्षर -ए -दस्तान्,

[सुनील कुमार  हिमाचली ]

विरासती रीति -रिवाज़ की गुम हो रही आवाज़ ;

विरासती  रीति -रिवाज़ की गुम हो रही आवाज़ ; मीनू  बख्शी 
'' सबसे सम्पन्न और सर्वाधिक  धनी पंजाबी लोक संगीत''
     चंडीगढ़सुनील;जहां हर कोई पश्चमी सभ्यता के रंग में लीन होता जा रहाहैलोकगीत दरकिनार होते जा रहे है।मंगलवार को हुई कांफ्रेंस के दौरान प्रोग्राम में थोड़ा लेट पहुंचीं बहुमुखी प्रतिभा की धनी मीनू बख्शी ने बताया कि विरासती  रीति -रिवाज़ गुम हो रहा है। आजकल सिर्फ हिप-हॉप या इंडी-पॉप ही ज्यादा पसंद युवकों की है, जिसकी वजह से विवाह-शादीयों में भी सिर्फ ऐसे ही गीत सुनने को मिलते हैं।
    ‘बैंड बाजा पंजाब’ एलबम जिसमें पंजाब के लोकगीतों को लखविंदर वडाली व परम खुराना की आवाज़ों के साथ कंपोज किया है ताकी यूथ भी इन्हें पसंद करे।नगर बाणी से हुई वार्ता में इन्होंने 
बताया की पंजाब सेजुड़े त्योहारों लोहड़ीबसंततीज और बैसाखी के लोकगीत भी एलबम मेंशामिल किए गए हैं। भविष्य में  आगे आने वाली किताब '  मौजे - -शराब'आप लिखीं हुई ग़ज़लों कि है साथ ही बताया कि अगली एल्बम कीर्त्तन परआधारित होगी। मेरी इस कामयाबी का श्रेय मेरे पति  कमलजीत बख्शी जी मेरे परिवार को जाता है।  पंजाबी विरसा  बहुत ही धनी और सबसे सम्पन्न है ,संगीत को बचना मेरा उदेश्य  पंजाबीयत को  संजोकर  रखना हम सब का जिम्मा है।

ओल्ड इज़ ऑल्वेज़ गोल्ड ;भाज

ओल्ड इज़  ऑल्वेज़ गोल्ड ;भाजपा 
चंडीगढ़/सुनील;आजकल जहां लोकसभा के चुनाबों का दौर चल रहा है,हर राजनितिक पार्टी आपना अपना पैंतरा बहुमत हासिल करने क लिए आज़मा रही है। भाजपा ने ओल्ड इज़  ऑल्वेज़ गोल्डकी रणनीति को अपने हुए। उन नेताओं को वापिस लेना शुरु कर दिया है जिन्हे पार्टी से निष्कासित कर  दिया था। भाजपा की राष्ट्र्रीय सचिव व चंडीगढ़ की प्रभारी आरती मेहरा ने बताया कि पूर्व मेयर केवल कृष्ण आदीवाल, बीके कपूर, नरेंद्र शर्मा, सतपाल गुप्ता और नौशाद अली व मेयर चुनाव हार के बाद नाराज चल रही पार्षद राजिंदर कौर भी वापस पार्टी के साथ जुड़ गईं। इन सभी नेताओं को बिना किसी शर्त पार्टी के साथ जोड़ा जा रहा है।प्रेसकॉन्फ्रेंस में उनके साथ प्रदेशाध्यक्ष संजय टंडन, वरिष्ठ नेता व पूर्व सांसद सत्यपाल जैन, पूर्व केंद्रीय मंत्री हरमोहन धवन, वरिष्ठ नेता जयराम जोशी और अन्य नेता मौजूद थे।उनका कहना है कि कोंग्रेस और बाकि पार्टियां सिर्फ सादगी कि बातें करती है। हमे बिल्ट करना है,जिसे उखाड़ना है उखड़ता जाए,चंडीगढ़ से लोकसभा चुनाव के लिए जिस किसी को भी पार्टी की ओर से टिकट मिलेगी, उसे जिताने के लिए सभी कार्यकर्ता प्रयास करेंगे।

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