आज बहुत अजीब और गरीब सा अनुभव दिमाग में आया,,,,, क्या सिर्फ इस्तेमाल करने की वस्तु हूँ या सबका ख्याल करने की । जब किसी को कोई परेशानी है तब सुनील याद आता है ,वरना हमारी तन्हाई की सिबा हमे कौन भाता है ? चल विचर रहा हूँ अपने ही मन में -सवाल की भी खाल का बाल की खाल निकाल लाता हूँ। कोई रंग नहीं कोई ठंग नहीं - वक्त मिले तब ध्यान देना मलंग ठंग से ही गुनगुनाता हूँ।जरुरत नहीं किसी के कंधे की खुद के आंसू खुद के अंदर ही जलाता हूँ। आँखों के नीच बेशक काले घेरे है -उल्लू नहीं जो रातों को दिन कहलाता हूँ। कोई अपने किए पर पछताए - अपने ही आप को दोषी ठहरता हूँ। हूँ नहीं इस जग का - साध शांत तो शांति बिगड़ा तो क्रांति कहलाता हूँ।