रविवार, 19 अगस्त 2018

कभी मशरुफियत से बैठेंगे, मशरुफ होके गलबात करेंगे

कभी मशरुफियत से बैठेंगे
मशरुफ होके गलबात करेंगे
आप अपनी कहें
हमारे जज्बात फिर गले तक रहेंगे
कभी मशरुफियत से बैठेंगे
मशरुफ होके गलबात करेंगे

यूं होती है बेशक बहुत बातें
कुछ अजीब सी पंक्तियां
दिल में कुछ, दिमाग में कुछ
और सुनाओ...
वाली चेटिंग पर बातें
जी भर कर बात करने का मन
बेमन भी बात करने वाला तन
वक्त निकाल के मिलेंगे सही
कभी मशरुफियत से बैठेंगे
मशरुफ होके गलबात करेंगे
मशरुफ है हरकोई जिंदगी में
फिर भी अकेलेपन की बात कहेंगे
किसे कहें अपना - चलो कह दिया
अरसे बाद दोगलेपन वाला साथ कहेंगे
आइने के सामने खड़े होकर देखा अपनापन
पटल पर दिखा अपना ही अक्ष, दूर एक तन
रुह के रथ पर सवार एक मनमौजी सा मन
कहता दिखा फिर सुनील खुदही से
कभी मशरुफियत से बैठेंगे
मशरुफ होके गलबात करेंगे