रविवार, 12 जनवरी 2014

siromanni akali

sunil; भले ही  शिरोमणि अकाली दल के जनरल सरदार सुखदेव सिंह ढींडसा कि तरफ से आगामी लोक सभा चुनाव  में अपनी जीत को सुनिश्चित  करने के लिए अपने परिवार के साथ मिल कर चुनाव क्षेत्र में चुनाव से पहले ही  दिन रात एक कर दिया परन्तु इस बार भी   यह बाज़ी ढींडसा के पाले में नज़र नही आ रही करीब 6  महीने पहले शुरू हुए चुनाव सभाओ में यह चर्चा सुनाई  दे  रही थी कि लोगो की  सेवा का यह कार्ज़ राज सभा का मेंबर बनने व् पंजाब ,में अकाली सरकार बनने के तुरन्त बाद क्यों शुरू नहीं हुआ ?लोगो में इस बात का गुस्सा भी देखने को दिखाई दिया कि लोक सभा चुनाव की  हार के  बाद अपने क्षेत्र को बदलने की  भावना के साथ देख कर नज़र अंदाज़ क्यों किया जाता रहा है दूसरी तरफ जनता को बड़ी बड़ी राहते देने   का वादा करने वाले चुनाव में जीते कांग्रेस पार्टी के प्रत्याशी विजेंदर सिंगला भी चाहे लोगो कि उम्मीदो पर पुरे नहीं उतरे परन्तु उन्होंने भी ढींडसा से एक साल पहले दुबारा अपनी डूबती बेड़ी पार लगाने के लिए हाथ पैर मारने शुरू कर दिए थे  एक दौड़ में दोनों एक दूसरे से बढ़ते जरुर देखे गये लो घाबदा कोठी का हस्पताल केंद्र की वजह व् दुरी तरफ के अकाली दल की  तरफ से जगह दिए जाने से सफल हुआ प्राथमिक जरूरते आज भी लोगो के सिर चढ़ कर बोल रही है सिद्धांतो को जानने वाले भी राजसी निति बनाने वालो की उलझाने वाली योजनायो के कारण समझोतो के राह पड चुके है हर किसी को आगामी समय अच्छा व्यतीत करने के लिए जोड़ घटा करके समय व्यतीत करना पड़ रहा है पहली लोक सभा चुनाव के समय  पर गुरमीत सिंह काला मान का जेल जाना ,संत टेक सिंह धनोला को बाबा  सिंह ट्रस्ट से नजदीक करके पर्चा दर्ज़ होना व् सुरिंदर पाला बालाको जेल की सिलाखो तक पहुचाने के किस्से , कई सवालो  को जन्म देते देखे गए इस तरह के हालातो में न्याय पालिका व् राजसी पकड़ के उलझे हुए भेद भी जग जाहर होने से नहीं रोके जा सके मज़बूरी कि दल दल में फसे लोग फिर से राहत   के लिए काम निकलने पर लगे हुए है परन्तु उनको अभी भी प्राथमिक जरूरते पूरी करने के लिए कोई तीसरा बदल नज़र नहीं आ रहा लोगो पर अक्सर यह दोष लगाया जाता है कि लोग राहत तो चाहते है पर टैक्स अदा करने से कन्नी काट लेते है यहाँ एक सवाल उठता है जिस्ने टैक्स दिखाए  नहीं जाते पर जनता से लिए जाते है क्या उनके बदले में लोगो को सहुलतें दी जाती है अगर टैक्स के  अनुपात अनुसार सहूलतें  नही दी जा रही फिर इस प्रकिर्या के लिए कोन  जिम्मेवार है व् इस तरह के जिम्मेवार  व्यक्तियो के ऊपर कोई कारवाई क्यों  नहीं की  जाती भारत कि राजधानी दिल्ली के अन्दर आम आदमी हाथ में आई वज़ारत न  लोगो में एक हलचल सी छेड़ दी है कि देश कि राजधानी  के अंदर लोग पुराने राजनितिक नेतायो को हरा कर राहत प्राप्त कर सकते है तो पंजाब में क्यों नहीं यह बात जंगल कि आग कि तरह फैलती हुए दिखाई दे रही है व् जिस तरह से यह आवाज़ बुलंद होने जा रही है उसको देखते हुए इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता  की आगामी चुनाव के नतीजे कुछ और रंग दरसायंगे