शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

चांद झोल न कर, प्यार में मखौल न कर

किसी को इच्छा है चांद छूने की 
किसी को चांद पाने की
किसी के लिए कोई चांद
किसी को इंतजार दिदार हो जाने की

गर्दिश- ए- चांद ठहरा कहां
दिल-ए-दिमाग अब पहरा कहां
चांद सी चमक किसे नहीं चाहिए
सूरज की दमक सा चेहरा वहां


उमड़-घुमड़ कर आते विचार
कब लगेगी नइया पार
लहरों में गोते खाता इज़हार
डूब ही जाएगा गहरा ये प्यार

पटल पर देखा है पानी के
दिखती है छवि चांद साथ चांदनी के
सूरत के बाद सीरत ही दिखी
अब क्या बदलने पन्ने ज़िंदगानी के

चल अब मोल न कर
वजन का क्या झोल न कर
तरुप का पत्ता नहीं हूं
चंद सांसे हैं बाकि मखौल न कर

जो कहा, सुना है
चांदनी के बीच एक तारा चुना है
कल जो भरी आंखों से दिखेगा जमीं से
अब यही सुनील किनारा चुना है