शुक्रवार, 17 मार्च 2017

दिल और दिमाग के प्यार हज़ारों देखे

दिल और दिमाग के प्यार हज़ारों देखे
लेकिन महसूस हुआ तो रूह राज का
खफा लाख सही ज़िन्दगी हमसे
मोहताज़ हो गया हूँ आप का
कदर नहीं है हमे शायद 
प्यार है भी लेकिन कबूल नहीं
यही है एहसास आज का
नशा नहीं तेरे हुस्न का कोई
मुरीद हो गया हूँ तेरी एक बात का
फर्क किसी को पड़ेगा नहीं
दो पल बहेगा आंसू जजबात का
मेरी आंख से नहीं छलका
शायद नसीब ही नहीं पानी देह ए राख का
माफ़ करना गुस्ताखी होगी कोई
गिला लाख सही साकी उदासी नहीं कोई

ब्यान नहीं कर सकता हूँ ...

ब्यान नहीं कर सकता हूँ 
भावनाएं क्या है ?
जान ही नहीं भर सकता हूँ ||
भावनाएं क्या है ?
एहसास ही बन सकता हूँ 
बार- बार व्यक्त नहीं कर सकता हूँ ||
दिल में क्या है
दिमाग से जंग कर सकता हूँ ||
मोहताज़ नहीं हूँ जिंदगी का
सांसों से भी जंग कर सकता हूँ ||
भीगी नहीं है पलके अभी तक
गला भी गले तक ही भर सकता हूँ ||
आह भी निकलती नहीं है अब
दिल की दरारों में मिर्ची भर सकता हूँ ||
बहुत देखे हैं चहरे चाहने वाले
आइना भी खुद ही खुदी का बन सकता हूँ ||
बजूद क्या है जनता हूँ,
कौन क्या है पहचानता हूँ,
अभी हुआ नहीं है दिमाग ख़राब
सोच- विचार कर ही हल निकालता हूँ ||

क्यूँ लेता हूँ फैंसला

क्यूँ लेता हूँ फैंसला 
जो टूटता नहीं है हौंसला 
क्यूँ खुद ही खुदी का दुश्मन हूँ 
जो लम्हा भर नहीं सोचता 
क्यूँ लेता हूँ फैंसला 
सवाल ही सवाल है
वस मौत का मूल ही जबाव हैं
क्यूँ लेता हूँ फैंसला
जल्दबाजी भीं नहीं
जालसाजी भीं नहीं
अंत नहीं शुरुआत है
जो यूँ लेता हूँ फैंसला
सोचा नहीं उस बात का
भविष्य मेरे हाथ का
वर्तमान में जो लिया है
फैंसला मेरे साथ का
जो यूँ लेता हूँ फैंसला
फिर ना सोचूंगा सुनील
क्यूँ लेता हूँ फैंसला
फैंसला मेरे विश्वास का

अगर तुम कहो की ये आंसू न हमारे है,

अगर तुम कहो की ये आंसू न हमारे है, 
जो भी है ये वक्त के इशारे हैं,
सोच तुम्हारी घूमे दुनिया सारी -
फिर कहाँ कौन किसके सहारे किनारे हैं ।। 
अगर तुम कहो की ये आंसू न हमारे है ,
जो भी है ये वक्त के इशारे हैं ,
मंज़िल करीब ना दूर रूह से सही
रुकना नहीं सिलसिला इरादों में हमारे है।।

जो भी गया- हसा के गया

जो भी गया- हसा के गया 
हरे जख्मो में नमक लगा के गया॥ 
मरहम है अब यादों का 
दिल की गहराइयों में जो समाते गया॥ 
रंगीन ज़िन्दगी में किसी ने -
अच्छा- किसी ने अपना कहा हमे॥
मिली नहीं वो रूह-
जिसे सच्चा कहा हमने,
जो भी गया- हसा के गया
हरे जख्मो में नमक लगा के गया॥
खुश हूँ यादें तो है -
मेरे अंदर जो दफ़न -इरादे तो हैं॥
उलझन नहीं कोई -इतिहास गवाह है,
उल्फत में अक्सर ऐसा ही होता है-
मानते हो तुम मंज़िल जिसे अपनी
हमसफर उनका कोई और होता है॥
ये तमाशा आज सरे बाजार हो गया-
जिस्म इश्क से नहीं, रूह से सरोकार हो गया ॥
जो भी गया- हसा के गया
हरे जख्मो में नमक लगा के गया॥
दर्द-ए- उल्फ़त 'सुनील' की खातिर एक ही है,
ख़ाक का पुतला इस जहान में इंसान हो गया॥

याद वो भीं नहीं

इतना याद वो भीं नहीं, 
जिन्हें याद किया जाए। 
तुम्हे याद करके भी- 
क्यों भूलने की फरियाद की जाए॥ 
आंख ओझल-
फिर भी खाब लिया जाए।
परत एक तरफ नमकीन पानी की,
छलकी आंख से तस्वीर भी साफ़ नज़र आए॥
तय करना अब मुश्किल है,
क्या फ़रयाद में फ़रमाए-
जवाब निकले तो तब,
जब कोई सवाल समझ आए॥

मेरे जीते जी ही मुझे कफन दे जाना

मेरे जीते जी ही मुझे कफन दे जाना , मरने के बाद कौन खबर देगा मेरी !! आज हूँ जिन्दा तो ख्याल ही है मेरा - वो भी तब जब वर्तमान मे आहट है मेरी !! कोई ना मुझे याद करना, याद रखना अंत तक बात मेरी !! गुस्ताखी जो कर दी आपने कभी, आह ! निकल ना सकेगी गले से- आंख नम हो जायेगी , ये औकत है मेरी !! मेरे जीते जी कफन दे जाना , मेरे मरने के बाद कौन खबर देगा मेरी !!

ख़ूबसुरत गुनाह करता हूँ

ख़ूबसुरत गुनाह करता हूँ।
उसको पाने की चाह करता हूँ ।।
उसका चेहरा नज़र ही आता है ।
जिस भी जानिब निग़ाह करता हूँ ।।
वो हक़ीक़त में मिल नहीं पाता ।
ख़्वाब में रस्मो-राह करता हूँ ।।
जख्म न लगे तुझे ,
न छेड़ मेरे शीशे की तरह टूटे हुए दिल को।
सुना है -
धार तेज़ हो जाती है शीशे के टूटने के बाद।।