4 जनवरी को चुनाव आयोग के द्वारा 5 राज्यों में होने वाले चुनावों की दिनांक का ऐलान कर दिया ,अब सभी राजनितिक दाल पूरी कर्मठता से प्रचार करने में लगे हुए है। और इससे पहले तक किसी भी राजनितिक दल ने अपना कोई भी काम अधूरा नहीं छोड़ा। क्योंकि नेताओं को ये तो ज्ञात ही है कि अगर जनता को सौगात नहीं दी तो आने वाले दिनों में खामियाजा भुगतान पड़ सकता है। लेकिन भूतकाल से वर्तमान और भविष्य में भी नेताओं द्वारा एक दूसरे पर आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला जारी रहने वाला है। लेकिन इन नेताओं के द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली शब्दावली कहाँ और किस किताब में है ये कभी हमे पढने को नहीं मिली और अच्छा भी है की न ही मिले! क्योंकि जिस प्रकार से इनके द्वारा बोलने और लिखने के अधिकार का प्रयोग किया जाता है ,अगर ऐसा समाज में आम होने लगे तो अपराधों की संख्या इतनी बढ़ जाए की विश्व भर में पन्ने और कलम में स्याही ही कम पड़ जाए।पिछले काफी दिनो से पंजाब में आप कांग्रेस और अकाली दल के नेता एक दुसरे पर तंज़ कसने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे। एक शेर तो दूसरा सवा-शेर तो तीसरा बब्बर शेर की तरह खुद को बता रहा है। वही छोटे मोटे राजनितिक दल और नए नए उभर आ रहे मोर्चे भी कोई कमी नहीं छोड़ रहे वो भी मौका मिलते ही भड़ास निकाल हाथ साफ़ कर रहे है। सूत्रों के हवाले से जहाँ पंजाब कांग्रेस और आप में जहाँ गठवन्धन की बात सामने आ रही है। वहीँ हलकों में आपस में उलझ कर भड़ास निकाल रही। ताजा मामले में 4 जनवरी को बरनाला पहुंचे आप नेता संजय सिंह और भगवंत मान ने जहाँ कैप्टन अमरेंदर सिंह को शराबी करार दिया था तो कोंग्रेस ने भी जवाव में कहा की आप तो शराबियों की पार्टी है और दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल की बेरक में इनकी जगह है। लेकिन बात जब भी सियासी दलों की हो तो पीएम को लपेटे में न लें ऐसा कभी हो ही नहीं सकता जब तिहाड़ जेल की बात आप से पूछी गई तो भगवंत मान का कहना था की ये सब पीएम मोदी का करा धरा है क्योंकि वो आप से डरते है। लेकिन अकाली और भाजपा इस मामले में दो बिल्लियों और बन्दर की कहानी यहाँ दोहराते नज़र आ रहे है- जाहिर की बात है की आपस की फुट में फायदा दूसरे का ही होगा ,इसीलिए गठबंधन में फिर से सत्ता में आने के लिए किसी भी बयानबाजी से कतराते भाजपा और अकाली नज़र आते है। लेकिन जो भी है जिस तरह से सीमाए हमारे नेता लाँघ देते है उससे इन्हें थोड़ी समाजिक शिक्षा तो ग्रहण करनी चाहिए। साथ ही अपनी जुबान पर भी थोड़ा संयम रखना चाहिए ताकि राजनीती की जो छवि न ख़राब हो और राजनीती के दम पर हो रही जनता से ठगी न हो।लेकिन ऐसा कहाँ होता है - जब चुनाव का परिणाम घोषित होगा सरकार इनकी , प्रशासन इनका- अगर कुछ गलत हुआ तो व्यवस्था में कमी भी इनकी।