एक परिवार जब दो धड़ों में बंटता है. नींद कई दिनों तक दोनों ही तरफ
नहीं आती चाहे मकान की छत एक ही क्यों न हो.कुछ ऐसा ही वर्तमान में आम आदमी पार्टी
के साथ भी हो रहा है. घर का मुखिया दिल वालों की दिल्ली में हाल-ए-दिल सही न होने
के कारण रात-दिन की नींद उडा बैठा है. वहीं दिल्ली से पंजाब का सफर भी अब हर आने-जाने
वाले नेता को दूर लगने लगा है . ‘आप’ के दिल्ली से पंजाब और पंजाब से दिल्ली रुख करने
वाले नेताओं को बोर भी करने लगा है क्योंकि चिंता में ढुबाए हुए कि अब भविष्य में
क्या होगा.
कुछ एक ‘आप’ के माई-बाप अरविंद केजरीवाल के साथ हैं भी – वो भी शायद पल भर के लिए
सोचते होंगे ही –साथ दें या पांव पीछे खींच लें. वैसे अब आम आमदी पार्टी दो
हिस्सों में बंट ही गई है, वर्तमान में केजरीवाल के माफीनामे के बाद भगवंत मान ने
इस्तीफे की बाद क्या कही- एक तरफ आप नेता और दूसरी और अरविंद केजरीवाल हैं.
शायद अरविंद केजरीवाल ने कुछ खास सोच कर पासा फैंका था लेकिन उलटा ही
न पड़ गया हो . हो सकता है कि 2019 और 2022 में होने वाले चुनावों में अरविंद केजरीवाल
गठबंधन के साथ पंजाब और बाकि राज्यों में अकाली दल और दूसरे छोटे दलों के साथ
मिलकर लड़ना चाहते हों ताकि जंग-ए-मैदान में भाजपा और कांग्रेस को चित कर पाएं, और
माफीनामे के जरिए वो इसकी शुरुआत कर रहे हों. ताकि इसका फल अगामी चुनावों में मिल
सके.
वैसे कयास यह भी लगाए जा रहे
हैं कि अरविंद केजरीवाल ने कहीं दबाव में आकर माफीनामे की कदम उठाया है. या किसी
के बहकावे में आकर ऐसा कदम उठाया है. लेकिन राजनीति के दांव-पेच अभी केजरीवाल शायद
सही से समझ नहीं पाए हैं. उन्होंने अपने भले के लिए ही शायद कदम उठाया होगा लेकिन
चाल उलटी पड़ गई. नतीजा निकला की उनकी पार्टी में ही विरोध के स्वर अब खुले तौर पर
उनके ही विरोध में उठने लगे हैं.
वैसे राजनीतिक नुमाइंदों ने यह भी कह डाला है कि दूसरे दलों से ठुकराए
हुए नेताओं के साथ अरविंद केजरीवाल ने कुनबा बनाया है. सत्ता का लोभी होने के कारण
यह उनको भी पीछे छोड़ जाएगा. केजरीवाल के
शायद अब अकल आ रही है जो माफी मांग रहा है- ये शब्द पंजाब भाजपा प्रधान ने कहे थे,
लेकिन यह तो सच है की राजनीति अकल अभी धीरे-धीरे ही मानयोग अरविंद केजरीवाल को
आएगी. उनपर कोई टिप्पणी नहीं! अभी सफर शुरु ही हुआ
है और काबिल-ए-जिक्र है कि जंगल में रह कर काफी बढ़े-बढ़े नेताओं से भिड़े हुए
हैं.
दिल्ली सीएम के जिगर में इतना दम है कि 56 इंच के सीने को भी चुनौती
देने से नहीं कतराते. फिर उनके सामने बाकि तो माफी के बराबर ही हैं, लेकिन ये अब
लगता है कि सब वक्त की हेरा-फेरी है. जो काल चक्र कुछ विपरीत चल पढ़ है.
या जैसे की विचारों में पढ़ने को मिलात है कि बुरे वक्त के बाद अच्छा
वक्ता आना होता है. कहीं यह उस अच्छे वक्त की आहट तो नहीं. लेकिन हवा काफी केजरी
के विररीत है अब कहीं ये हवा का झोंका अच्छे वक्त के दिवार खोलने से पहले अरविंद
के दरबार के दरवाजे तुफान बनकर ही न तोड़ डाले. खैर अरविंद केजरीवाल के साथ यह कुछ
नया नहीं है. केजरीवाल और बदले वक्त में विवादों का साथ साए की तरह है. जैसे साया
दूर नहीं हो सकता राजनीति में विवाद भी साए की तरह साथ ही रहते हैं.
लेकिन भविष्य को देख उन नेताओं की वीपी बढ़ रहा है जिन्हे आने वाले कल
की चिंता आज के वर्तमान की स्थिति ने रोगी कर दिया है. अब हाल क्या है जनाब क्या
ये तो बदलते वक्त के हस्तक्षेप के बाद ही तय हो पाएगा की किसका कितना शुगर,वीपी
सैट रहता है. और कौन अरविंद के साथ 2019 और 2022 तक साथ देता है. उम्मीद
पर तो दुनिया कायम है और हमारे दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल भी शायद!