कांग्रेस पर 1984, अकालियों के सिर बेअदबी और भाजपा
राजनितिक परिवेश भी अंडमान निकोबार की स्थिति जैसे है लेकिन अंदरूनी और बाहरी स्थिति चुनाव के दौरान समुद्र में बहते लावे की तरह हो जाती है। जैसे -जैसे चुनाव नज़दीक आते है एक नया मुद्दा मिल जाता है, लेकिन न भी मिले तब भी कोई बात नहीं। लावा जब समुद्र में बहेगा फिर भाप दिखना लाज़मी है। अब 2019 के लोकसभा चुनावों को ही ले लीजिए। पेट्रोल -डीजल अब इतने महंगे हो गए कि शाम को जॉब से घर वापिस जाते वक्त, जब दोस्तों के साथ महखाने का जो भी रुख करते हैं- उनके दो पेग की कैपेसिटी शायद और बढ़ गई है। क्यूंकि टेंशन हो गई है - क्यूंकि जेब में पैसे हैं नहीं और देश का पैसा लेकर कई भगोड़े हो गए हैं। जिस कारन शराब कारोबारी विजय माल्या के चक्कर में वित्तमंत्री अरुण जेटली विपक्ष के लपेटे में हैं।
लेकिन रुख अगर समुद्र में बहते हुए लार्वे की तरह पंजाब का करें तो यहाँ पानी के मसले पर अभी चर्चा नहीं लेकिन हरियाणा में इनेलो मसला गर्म किए हुए हैं. गौर हो की बेअदबी मामलों को लेकर एस आई टी बन गई है लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू हों या आप कोई किसी से कम नहीं - सब बादलों के ऊपर खूब बरस रहे हैं।
अब ये तो गलत है भई : बादलों के ऊपर कोई, कैसे बरस सकता है।
वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ - बादल सत्ता में थे तब भी पंजाब में 1984 के मसले पर कांग्रेस को लपेटे में लेते रहते थे , अब नहीं हैं तब भी - क्या करें सरकार ये 1984 का मसला क़ानूनी तौर पर हल हो सकता हैं लेकिन राजनितिक रोटियां भी सेंकनी है और वो भी मक्की की। हर बार चुनावी बिगुल जब भी बजता था. तब धार्मिक तौर पर मुद्दा गर्माता है। लेकिन अब क्या होगा जनाब - अब अकालियों को कांग्रेस से कौन बचाएगा- नवजोत सिंह सिद्धू - बादल साहब की बाप -दादाओं और पैदाइस तक पहुंच जाते हैं. लेकिन बादल साहब कम थोड़ी - उन्होंने सिद्धू को मैंटल बताया है.
अब जहांपना जो भी हो यह कहनें में कोई दोराय नहीं कि 'कांग्रेस के सिर 1984 और अकालियों के सिर बेअदबी' :-: खूब बनेगा अब राजनीतिक महौल :-: , एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला बरकरार है। अब 2019 की चुनावी हलचल को देख एक कहानी याद आ रही है- दो बिल्लियों और एक बंदर की - क्योंकि कांग्रेस और अकाली एक दूसरे पर लांछण लगाने से कहीं भी किसी भी मंच से पीछे नहीं, उधर रुसे यार नू मना लै- वक्त औण ते कम आवेगा-- वाला सीन आम आदमी पार्टी के बीच चला हुआ है. भगवंत मान धड़ा दिल्ली हाईकमान के साथ मिलकर सुखपाल खैरा धड़े को मनाने की फिराक में है. वैसे काबिले जिक्र है कि आप अब राजनीति जान गई है - क्योंकि चुनाव प्रचार में भी जुटी हुई है और अकाली- कांग्रेस को भी आड़े हाथ लेने से नहीं छोड़ रही। अब कहानी में बाजी कौन मारता है, य़े 2019 के नतीजे ही बताएंगे। जिनके समीकरण हाल ही में पंजाब में होने वाले जिला परिषद के चुनाव तय कर देंगे।
अब आप कहोगे यार कि पंजाब में अकालियों का भाजपा के साथ गठबंधन है लेकिन जिक्र कहीं नहीं। एचुअलि हो तो सिर्फ धर्म की राजनीति रही है - पर भाजपा ने जो आग अब पैट्रोल के दामों में लगाई है। उससे समीकरण कुछ अभी कहने में सक्षम नहीं की 2019 तक अयोध्या राम मंदिर निर्माण हो पाएगा या नहीं। होगा- तब जग जाहिर हो ही जाएगा। पर साहब धर्म के आधार पर राजनीति और कोर्ट में मामला दोनों चल रहे हैं.
चाहे वो 1984 हो या अयोध्या राम मंदिर निर्माण या अब का ताजा मसला ले लो गुरु ग्रंथ साहिब जी के अंगो की बेअदबी \ अब यह तय है 2019 तक न ही ये मसले हल होंगे और न ही ब्यानबाजी रुकेगी। फिर सरकार जो भी सत्ता में आएगी मक्की की नहीं मिसी रोटी खाएगी विद वट्टर -
राजनितिक परिवेश भी अंडमान निकोबार की स्थिति जैसे है लेकिन अंदरूनी और बाहरी स्थिति चुनाव के दौरान समुद्र में बहते लावे की तरह हो जाती है। जैसे -जैसे चुनाव नज़दीक आते है एक नया मुद्दा मिल जाता है, लेकिन न भी मिले तब भी कोई बात नहीं। लावा जब समुद्र में बहेगा फिर भाप दिखना लाज़मी है। अब 2019 के लोकसभा चुनावों को ही ले लीजिए। पेट्रोल -डीजल अब इतने महंगे हो गए कि शाम को जॉब से घर वापिस जाते वक्त, जब दोस्तों के साथ महखाने का जो भी रुख करते हैं- उनके दो पेग की कैपेसिटी शायद और बढ़ गई है। क्यूंकि टेंशन हो गई है - क्यूंकि जेब में पैसे हैं नहीं और देश का पैसा लेकर कई भगोड़े हो गए हैं। जिस कारन शराब कारोबारी विजय माल्या के चक्कर में वित्तमंत्री अरुण जेटली विपक्ष के लपेटे में हैं।
लेकिन रुख अगर समुद्र में बहते हुए लार्वे की तरह पंजाब का करें तो यहाँ पानी के मसले पर अभी चर्चा नहीं लेकिन हरियाणा में इनेलो मसला गर्म किए हुए हैं. गौर हो की बेअदबी मामलों को लेकर एस आई टी बन गई है लेकिन नवजोत सिंह सिद्धू हों या आप कोई किसी से कम नहीं - सब बादलों के ऊपर खूब बरस रहे हैं।
अब ये तो गलत है भई : बादलों के ऊपर कोई, कैसे बरस सकता है।
वक्त का ये परिंदा रुका है कहाँ - बादल सत्ता में थे तब भी पंजाब में 1984 के मसले पर कांग्रेस को लपेटे में लेते रहते थे , अब नहीं हैं तब भी - क्या करें सरकार ये 1984 का मसला क़ानूनी तौर पर हल हो सकता हैं लेकिन राजनितिक रोटियां भी सेंकनी है और वो भी मक्की की। हर बार चुनावी बिगुल जब भी बजता था. तब धार्मिक तौर पर मुद्दा गर्माता है। लेकिन अब क्या होगा जनाब - अब अकालियों को कांग्रेस से कौन बचाएगा- नवजोत सिंह सिद्धू - बादल साहब की बाप -दादाओं और पैदाइस तक पहुंच जाते हैं. लेकिन बादल साहब कम थोड़ी - उन्होंने सिद्धू को मैंटल बताया है.
अब जहांपना जो भी हो यह कहनें में कोई दोराय नहीं कि 'कांग्रेस के सिर 1984 और अकालियों के सिर बेअदबी' :-: खूब बनेगा अब राजनीतिक महौल :-: , एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला बरकरार है। अब 2019 की चुनावी हलचल को देख एक कहानी याद आ रही है- दो बिल्लियों और एक बंदर की - क्योंकि कांग्रेस और अकाली एक दूसरे पर लांछण लगाने से कहीं भी किसी भी मंच से पीछे नहीं, उधर रुसे यार नू मना लै- वक्त औण ते कम आवेगा-- वाला सीन आम आदमी पार्टी के बीच चला हुआ है. भगवंत मान धड़ा दिल्ली हाईकमान के साथ मिलकर सुखपाल खैरा धड़े को मनाने की फिराक में है. वैसे काबिले जिक्र है कि आप अब राजनीति जान गई है - क्योंकि चुनाव प्रचार में भी जुटी हुई है और अकाली- कांग्रेस को भी आड़े हाथ लेने से नहीं छोड़ रही। अब कहानी में बाजी कौन मारता है, य़े 2019 के नतीजे ही बताएंगे। जिनके समीकरण हाल ही में पंजाब में होने वाले जिला परिषद के चुनाव तय कर देंगे।
अब आप कहोगे यार कि पंजाब में अकालियों का भाजपा के साथ गठबंधन है लेकिन जिक्र कहीं नहीं। एचुअलि हो तो सिर्फ धर्म की राजनीति रही है - पर भाजपा ने जो आग अब पैट्रोल के दामों में लगाई है। उससे समीकरण कुछ अभी कहने में सक्षम नहीं की 2019 तक अयोध्या राम मंदिर निर्माण हो पाएगा या नहीं। होगा- तब जग जाहिर हो ही जाएगा। पर साहब धर्म के आधार पर राजनीति और कोर्ट में मामला दोनों चल रहे हैं.
चाहे वो 1984 हो या अयोध्या राम मंदिर निर्माण या अब का ताजा मसला ले लो गुरु ग्रंथ साहिब जी के अंगो की बेअदबी \ अब यह तय है 2019 तक न ही ये मसले हल होंगे और न ही ब्यानबाजी रुकेगी। फिर सरकार जो भी सत्ता में आएगी मक्की की नहीं मिसी रोटी खाएगी विद वट्टर -