रविवार, 28 अगस्त 2016

ज़मीनी हक़ीक़त ..... तो कभी नहीं बदलेगी देश की दिशा और दशा ?

हर छोटा-बड़ा नेता और फिल्मो अभिनेता यही कहता कि हम देश की दिशा और दशा बदलेंगे। फ़िल्मी बातें तो काल्पनिक है लेकिन जो वास्तविक है वो समाज में सरेआम है। हर कोई भलीं भांति वाकिफ है की कौन क्या कर रहा है: लेकिन उस पर या तो हमारे ही होंठ बंद जाते है या  आंख और कान से हम अपँग हो जाते है. वर्तमान में भी कुछ है हर राजनितिक पार्टी देश को बदलने की बात कर  रही है। ये जूठ नहीं बदलाब हुआ है। इतना बदलाब हुआ है कोई  नेता कभी हाथ से मौका नहीं जाने देता विपक्ष को लपेटे में लेने से। लेकिन अब इन राजनितिक पार्टियों में एकता और अखण्डता की बात भी खत्म सी होने लगी है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश की बात करें या पंजाब की दोनों ही राज्यों में वर्ष 2017 में चुनाव होने वाले है। जिसको लेकर हर पार्टी जनता को लुभाने में जुटी हुई है। इसी बीच पार्टियों की अंदरूनी कलह बाहर खुलकर आने लगी है। चाहे वो सपा के मुलायम सिंह यादव का तंज़ हो या फिर आप के सुच्चा सिंह छोटेपुर की खुद की अढाई साल की कहानी। दोनों से साफ़ है जिस परिवार के भीतर ही क्लेश है वो बाहर किसी को क्या सही दिशा दिखाएगा - किसी की क्या दशा सुधरेगा। बचपन में पढ़ा था कि जिस परिवार में कहल हो बुद्धिमान और विद्वान उस स्थान को ही छोड़ देते है। लेकिन हम कुछेक राजनेताओं के द्वारा भ्रष्ट किए हुए देश को नहीं छोड़ सकते। पर नेताओं और इनकी बनाई हुई नीतियों से जरूर मुह मोड़ सकते है। प्राथमिक शिक्षा  लेकर माध्यमिक तक सबने पढ़ा है बुरा मत देखोबुरा मत सुनो, बुरा मत  बोलो और अब बुरा पढ़ो भी क्योंकि इन नेतओं के द्वारा कभी कभी ऐसे बयान दिए जाते है की न्यूज़ में सुनना तो दूर न्यूज़ पेपर में पढ़ना भी सही नहीं -- (किस्सा याद गयागॉव की बात है अपनी पड़ोस में आंटी से अखबार मांगने गया तो उहोने मुझे काफी धरातल से जुड़ा हुआ बयान देते हुए कहा -: हमने अखबार लेना बंद कर दिया इतना अनाफ सनाफ़ होता है ,हर चौथे पेज़ पर तो लड़की से हुए गलत काम (बलात्कार) की खबर होती है। बच्चों के सामने और घर में हर कोई कहीं ना कहीं अखबार लेकर बैठा रहता था तो ऐसे में कैसे अखबार पढ़े और आजकल तो लीडर भी कुछ भी बोल देते है ऊपर से अखबार वाले भी बड़े बड़े अक्षरों में लिखते है - दूर से ही नज़र हो जाती है ,खबर तो तेरे अंकल को बोल कर मैंने अखबार ही बंद करवा दी )  - ये बात भी सच है - नेताओं के ब्यानों और उनके विचारों की तो हम रीस ही नहीं कर सकते है। साफ़ बात ये है की हर नेता आपस में एक  चरित्र पर कालख उछालने पर लगे रहते है। खुदा कसम:_- चाहे कश्मीर का मुददा हो या शहीद का प्रतिक्रियाओं में ही जंग शुरू हो जाती है। और किस्सा ख़त्म होता है सदन का वक़्त बर्बाद करके। जिस देश में देश के कर्ताधर्ता और उसके  साथियों नहीं पता की देश किस दिशा में है और देश की दशा क्या वो देश तरकी कैसे करेगा। सत्ता और विपक्ष को तो बयानों पर प्रतिक्रिया देने से ही वक़्त नही तो काम कैसे करेंगे , कौन करेगा। आपत्ति जनक टिपण्णियों से देश की जनता का पेट भरेगा। .