सफ़र तो वही फिर क्यूँ अनजान हूँ ,
पल भर के लिए थोड़ा सा नादान हूँ।
कसमस सी है दिल ए दिमाग़ में,
लगता है डूबा पड़ा हूँ शराब में।
राह ए मंज़िल वही है ,
ठिकाना भी पुराना-
क्या रूह के साक़ी से सच में है बिछड़ जाना ।
कामवक्त उसका ही अब ख़्याल है,
लौट के जो आता नहीं वो लम्हा भी कमाल है।
तेरे आने की आहट भर से,
जब रूह झूम गाएगी-
उसी पल समा तेरे चिराग़ को बुझाने क़रीब आएगी।
पर तू क्यूँ चिंता में है सुनील ,
वो हवा तुझतक नहीं पहुँच पाएगी।
रुलाएगी बहुत तेरे दुश्मनों को,
जब -जब तेरी हँसी की आहट उनतक जाएगी।
वस बुरा न हो उनका कभी,
मेरी साँस की क़ीमत ही मेरी तरक़्क़ी बन जाएगी।
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