शनिवार, 21 जनवरी 2017

हमे खुद पर विश्वास है ,

हमे खुद पर विश्वास है , 
चाहे वो हमारा एट्टीट्यूड या झूठी आस है,
सम्मान के साथ रिश्ते का एहसास है ,
बात भी वही करते जिसपर विश्वास है , 
शांत हूँ आज भी खोए हुए रिश्ते नहीं पास है। 
हमे खुद पर विश्वास है ,


आंखे मूंद कर चल दूँ साथ हरपल
पल भर में न टूटे वही अपना ख्यालात है। 
रुह ए तन्हाई आज भी हवालात है 
ज़िक्र नहीं, कभी किसी का फ़िक्र नहीं 
फूलों की नहीं जड़ों की जानते औकात हैं.
हमे खुद पर विश्वास है ,


आधार वही जो हमारे पास है 
मानो तो ख़ुदा - नहीं तो शैतान भी नहीं 
श्मशान ही आखिरी वास है। 
फिर सुनील इंसान भी कौन ख़ास है 
हमे खुद पर विश्वास है ,

आसमान की दूरी ज़मी से जितनी है।।

तेरे न होने की कमी भी कितनी है.
आसमान की दूरी ज़मी से जितनी है।।
ख्याल तो है हरपल उस ओर -
फिर क्यों नहीं जुडती दिल की ड़ोर।।
अब मरुथल सा लगता है -
मेरी सोच का दरिया जो बहता था तेरी ओर।।
कायल नहीं तेरी अदाएगी का -
वस फ़िदा हूँ तेरी सादगी पर।।
तेरे न होने की कमी भी कितनी है.
आसमान की दूरी ज़मी से जितनी है।।
ख्याल भी तेरा अज़ब है.
तुझे समझना मुश्किल नहीं-
इतने हम भी गज़ब हैं।।
तेरे न होने का गम नहीं
क्यों आज महखाने में हम नही।।
चार घूंट यूँ ही मार बैठे है.
सूखे पड़े है अब आँखों के आंसू-
जो पहले ही -
जलती देह को शांत करवा बैठे है।।
अब न पूछना सुनील से कभी ?
तेरे न होने की कमी भी कितनी है.
आसमान की दूरी ज़मी से जितनी है।।

पल भर के लिए थोड़ा सा नादान हूँ

सफ़र तो वही फिर क्यूँ अनजान हूँ ,
 पल भर के लिए थोड़ा सा नादान हूँ। 

कसमस सी है दिल ए दिमाग़ में,

 लगता है डूबा पड़ा हूँ शराब में।

राह ए मंज़िल वही है ,

 ठिकाना भी पुराना- 

क्या रूह के साक़ी से सच में है बिछड़ जाना ।

कामवक्त उसका ही अब ख़्याल है,


 लौट के जो आता नहीं वो लम्हा भी कमाल है।

तेरे आने की आहट भर से,

 जब रूह झूम गाएगी- 

उसी पल समा तेरे चिराग़ को बुझाने क़रीब आएगी।

पर तू क्यूँ चिंता में है सुनील ,


 वो हवा तुझतक नहीं पहुँच पाएगी।

रुलाएगी बहुत तेरे दुश्मनों को, 


जब -जब तेरी हँसी की आहट उनतक जाएगी।

वस बुरा न हो उनका कभी, 

मेरी साँस की क़ीमत ही मेरी तरक़्क़ी बन जाएगी।

दिमाग़ की उपज भी बेमिसाल है।

भौर से ही ख़्याल है , 

तू ही याद क्यूँ -

 उलझता हुआ सवाल है।

 कल तक सब सही था, 



दिमाग़ की उपज भी बेमिसाल है। 

रात चंदा से भी चाँदनी बोली - 


मैं भी हूँ गर्दिश में, 


फिर क्यूँ सूरज की रोशनी कमाल है 
पल - पल की याद भी नई सुबह का दीदार है ,



 कहीं सुनील तुझे भी होने लगा प्यार है ।

वक़्त-बेवक़ूफ़-बेवाक करता नया काम है, 


ख़ुद से खुदी तक आज का कलाम है ।

शायद तुझसे प्यार भी करता हूँ।

तेरे ही दीदार को तरसता हूँ , शायद तुझसे प्यार भी करता हूँ।


 महल नहीं है कोई खाबों का, वास्तविकता में ना सही याद तो करता हूँ


 तुझे ख़याल भी नहीं, किस क़दर जलता हूँ .नासमझी ही सही, तुझपर ऐतवार करता हूँ। 


क़लम की नौक भी चुभने लगी है अब. नीव मेरे सवालों की आधार ज़िंदगी को रखता हूँ।

 कई दबे पड़े हैं जवाब जिसमें. वो किताब सरेआम रखता हूँ।


 सोचना मत सुनील जो गुज़र गया. जो है साथ रहेगा अंत तक :- आने वाले पल पर यही विश्वास रखता हूँ ।

एक पल,एक दिन, एक ज़िन्दगी क्या है ?


क्या है ?

एक पल,एक दिन, एक ज़िन्दगी 

क्या है ?

जवाब भी यहीं, फिर भी सवाल क्या है?

ढलते सूरज से चढते चाँद तक क्या है?

धरती से गगन तक का एक होना-

न कभी मिल सके वो एहसास क्या है?

हर लम्हा होते हुए भी कुछ नहीं क्या है ?

ये कोई पहली दफा है - जो क्या बेवफा है ?

क्या है ? क्यों है ? किसके लिए है ?

ये पंक्ति भी क्या है ?

उसके न होने से लगता है -क्या है ?

बस! पल-पल की हरकतों में वो है ?

वो क्या है ?कौन है ?

कल है - या जा साथ चलने वाला पल है!

क्या है ?

Meri Ummid Nhi Tum Jise Likh Saku. मेरी उमीद नहीं तुम जिसे लिख सकूँ

Meri Ummid Nhi Tum Jise Likh Saku. 
Vishwas Ho Jiske Hathon Bik Saku !!
 Pratilipi Nhi Koi Iski - 
Jo Jakar Bazar Se Kharid Saku !!
 Tere Hone Ka Ehsaas Hi Kafi Hai. 
Jiske Bal Pr Sans se Sans Ko khich Saku !! 
Dur Tu Sahi ,Paas To Hai -
 Tera Chehara or ek Jo yaad Sath To Hai !! 
Aaj Bhi Sunil Aankh Se chhalaka Nhin Hai Aansu, 
Uske lot kr aane ka khayali vishwas aaj bhi hai !!
 Dil To Dhadkata Hai,
 khud ko zinda rakhata hai.

Khud Ko Nasamjh Kahlata Hun खुद को नासमझ कहलाता हूँ

Khud Hi Vichar Kr Chup Ho Jata Hun'' 
Dimag Walo Se Bat Krta Nhin-
 Khud Ko Nasamjh Kahlata Hun'' 
Me To shamshan Dhar Aaya, 
Bhukh Nind Or Pyas- 
Rakh Ho Chuka Hai Ehsaas'' 
Bs Kabile Zikr Hai-
 Khuda Se Khud Tak Atal Vishwas''
 Hath Jod Kar Gujarish Krna Nhin Aata- 
Bujdilon Ke Aage Khadana Nhin Aata'' 
Chalati Firati In Jinda Lason Ki Tarha 
Akdana Nhin Aata'' 
Bus Faldaar Vriksh Ki Tarah
 Jhuk Ho Hai Jata,,...

Tuze Fursat Hi Nhi Hai Armano Se!!


Tuze Fursat Hi Nhi Hai Armano Se!!
Jo Dub Chuke Us Chand Ke Diwano Se!!
Bhor Me Fir Suraj Nikalega!!
Wakt Mile Tb Dund Lena Shamshano Me!!
Aaj Keh Rahe Ho -Achhe Nhin Hum Insano Me!!
Jao Dund Lao-Hamse Bure Bhi Nhi Kabristano Me!!
Becha Nhi Hai Hamne Apne Zamir Ko!!
Badla Nhi Apni Lakir ko~
Yu To Badali Jati Hai Jaat Bhi!!
Lekin Kisi Me Wo Baat Hai Nhi :Jo Badal De 'Sunil' Ko!!
Bas Khud Par Sanyam Rakh....

Zinda Abhi Bhi Hu Insano Me !!


Zinda Abhi Bhi Hu Insano Me !!
Rehane Lga Hu Shaitano Me !!
Kabhi Fursat Mili To puchhunga-
Kya Zamir Diya Tere Insaano Ne !!
Bhootkal Ko bhula Nhi Hu Me !!
Mere Achhe, Mere Bure Ka Mohtaaz Me !!
Vratmaan se Bhavishy Ko Hai Kiya !!
Fir Kyun Tere Insano Me jiya Me !!
Nafrat Ka Khyal Hi Nhi Uthata Tha !!
Ab Swaal Hi Uthata Haig 'sunil' Kyun Ho Gyi Hai Unse !!
Tu To Berang Tha, Na Jaane Kyu Bethang Tha !! Unki Nazron.

मुद्दतों से कमाल से जी रहा हूँ


 :) मुद्दतों से कमाल से जी रहा हूँ 
दबे हुए ख्याल से जी रहा हूँ। 
क्या सच है- क्या है झूठ 
इसी सवाल के जवाब में जी रहा हूँ। :)
 :) तलाश लेता तो कमाल हो जाता 
बिंदास बेमिशाल सा जी रहा हूँ। 
क्या सच है- क्या है झूठ 
इसी सवाल के जवाब में जी रहा हूँ। :)
:) हूँ नहीं किसी का ग़ुलाम 
राजा हूँ रण-ए-जेहन का 
हर एक लम्हा सलाम से जी रहा हूँ। 
बनते कलाम से जी रहा हूँ। :)
:) हँसी में छुपी हों जिनके ग़म कई 
वो जाम हर शाम पी रहा हूँ.
जो देते है सौक से दोस्ती का दिलासा 
मलहम वही दूकान से सरेआम खरीद रहा हूँ. :)
:) मुद्दतों से कमाल से जी रहा हूँ 
दबे हुए ख्याल से जी रहा हूँ। 
क्या सच है- क्या है झूठ 
इसी सवाल के जवाब में जी रहा हूँ। :)

हस्र क्या होगा अब मेरा

:) हस्र क्या होगा अब मेरा 
लहू से लिख रह हूँ नाम तेरा 
किसी पन्ने या दीवार पर नहीं 
जिगर-ए-जागीर तक है नाम तेरा :)
:) हस्र क्या होगा अब मेरा 
रोम-रोम से जुड़ा है ख़्याल तेरा
अंत है नहीं- सोच बेहिसाब है
न जाने कौन सा मूलांक है सवाल तेरा :)
:) हस्र क्या होगा अब मेरा
उगते सूरज से -ढलते चाँद तक है जिक्र तेरा
न जाने क्यों सुनील -
कल तक था चलती-फिरती लाश
अब क्यों होने लगा है फ़िक्र तेरा :)
हस्र क्या होगा अब मेरा
अब क्यों होने लगा है फ़िक्र तेरा

कभी हुआ नहीं यूँ

:) आज तेरे दीदार को फिरता रहा 
इंतज़ार में फिरता रहा 
कभी हुआ नहीं यूँ 
अपने ही मझदार में फिरता रहा :)
:) न ही तो इश्क तुझसे 
न ही है इंतज़ार-ए- वफ़ा का
क्यों ओढे फिर रहा हूँ
अपने ही जिस्म पर कफ़न ख़फ़ा का :)
:) कल तक तो सब ज़िंदा था
अब क्यों मुर्दा है ख़ाब हवा का
बहती तो है दिल-ए-धड़कन वेग से
लगाम नहीं साह-ए-शरीर पर रफ़्तार का :)
:) कुछ अजुल -फज़ुल से ख्याल है
करवट बदलते सवाल हैं
जबाव भी मिलेगा सुनील
रूह का पर्दा तो खाल है :)

काम क्रोध लोभ मोह अहंकार इंसान को क्या बना देते है.

काम क्रोध लोभ मोह अहंकार इंसान को क्या बना देते है। इनपर हावी होना और इन्हें वश में करना वाक्य में ही काफी मुश्किल है। लेकिन क्रोध में हम क्या कर जाए इसका किसी को कुछ ज्ञात नहीं होता। सिबाय पछतावे के और वर्तमान अवस्था भी शायद यही है। लेकिन कभी व्यक्ति विशेष को लेकर कभी कुछ नहीं कहा फिर क्यों हमे ही खुद के कहे अल्फ़ाज़ों पर क्रोध आता है। हाँ थोड़े ज्यादा ही हम आपत्तिजनक शब्दों के इस्तेमाल करते है तो शायद ऐसा होता है. वो भी हमारे कर्म के लिहाज़ से - वैसे भी हमने किसी के नम्रता भरे अल्फ़ाज़ों के सिबा क्या लेना है। जब हम आये इस जग में - जग हँसा हम रोये रोये।। ऐसी करनी कर चलूँ -हमारे पीछे जग रोये।।

बुधवार, 4 जनवरी 2017

राजनेताओं को लेनी चाहिए थोड़ी समाजिक शिक्षा

4 जनवरी को चुनाव आयोग के द्वारा 5 राज्यों में होने वाले चुनावों की दिनांक का ऐलान कर दिया ,अब सभी राजनितिक दाल पूरी कर्मठता से प्रचार करने में लगे हुए है। और इससे पहले तक किसी भी राजनितिक दल ने अपना कोई भी काम अधूरा नहीं छोड़ा। क्योंकि नेताओं को ये तो ज्ञात ही है कि अगर जनता को सौगात नहीं दी तो आने वाले दिनों में खामियाजा भुगतान पड़ सकता है। लेकिन भूतकाल से वर्तमान और भविष्य में भी नेताओं द्वारा एक दूसरे पर आरोप -प्रत्यारोप का सिलसिला जारी रहने वाला है। लेकिन इन नेताओं के द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली शब्दावली कहाँ और किस किताब में है ये कभी हमे पढने को नहीं मिली और अच्छा भी है की न ही मिले! क्योंकि जिस प्रकार से इनके द्वारा बोलने और लिखने के अधिकार का प्रयोग किया जाता है ,अगर ऐसा समाज में आम होने लगे तो अपराधों की संख्या इतनी बढ़ जाए की विश्व भर में पन्ने और कलम में स्याही ही कम पड़ जाए।पिछले काफी दिनो से पंजाब में आप कांग्रेस और अकाली दल  के नेता एक दुसरे पर तंज़ कसने का कोई मौका हाथ से नहीं जाने दे रहे। एक शेर तो दूसरा सवा-शेर तो तीसरा बब्बर शेर की तरह खुद को बता रहा है। वही छोटे मोटे राजनितिक दल और नए नए उभर  आ रहे मोर्चे भी कोई कमी नहीं छोड़ रहे वो भी मौका मिलते ही भड़ास निकाल हाथ साफ़ कर रहे है। सूत्रों के हवाले से जहाँ पंजाब कांग्रेस और आप में जहाँ गठवन्धन की बात सामने आ रही है। वहीँ हलकों में आपस में उलझ कर भड़ास निकाल रही। ताजा मामले में 4 जनवरी को बरनाला पहुंचे आप नेता संजय सिंह और भगवंत मान ने जहाँ कैप्टन अमरेंदर सिंह को शराबी करार दिया था तो कोंग्रेस ने भी जवाव में कहा की आप तो शराबियों की पार्टी है और दिल्ली स्थित तिहाड़ जेल की बेरक में इनकी जगह है। लेकिन बात जब भी सियासी दलों की हो तो पीएम  को लपेटे में न लें ऐसा कभी हो ही नहीं सकता जब तिहाड़ जेल की बात आप से पूछी गई तो भगवंत मान का कहना था की ये सब पीएम मोदी का करा धरा है क्योंकि वो आप से डरते है। लेकिन अकाली और भाजपा इस मामले में दो बिल्लियों और बन्दर की कहानी यहाँ दोहराते नज़र आ रहे है- जाहिर की बात है की आपस की फुट में फायदा दूसरे का ही होगा ,इसीलिए गठबंधन में फिर से सत्ता में आने के लिए किसी भी बयानबाजी से कतराते भाजपा और अकाली नज़र आते है। लेकिन जो भी है जिस तरह से सीमाए हमारे नेता लाँघ देते  है उससे इन्हें थोड़ी समाजिक शिक्षा तो ग्रहण करनी चाहिए। साथ ही अपनी जुबान पर भी थोड़ा संयम रखना चाहिए ताकि राजनीती की जो छवि न ख़राब हो और राजनीती के दम पर हो रही जनता से ठगी न हो।लेकिन ऐसा कहाँ होता है - जब चुनाव का परिणाम घोषित होगा सरकार इनकी , प्रशासन इनका- अगर कुछ गलत हुआ तो व्यवस्था में कमी भी इनकी।