शुक्रवार, 17 मार्च 2017

ख़ूबसुरत गुनाह करता हूँ

ख़ूबसुरत गुनाह करता हूँ।
उसको पाने की चाह करता हूँ ।।
उसका चेहरा नज़र ही आता है ।
जिस भी जानिब निग़ाह करता हूँ ।।
वो हक़ीक़त में मिल नहीं पाता ।
ख़्वाब में रस्मो-राह करता हूँ ।।
जख्म न लगे तुझे ,
न छेड़ मेरे शीशे की तरह टूटे हुए दिल को।
सुना है -
धार तेज़ हो जाती है शीशे के टूटने के बाद।।

कोई टिप्पणी नहीं: