शुक्रवार, 17 मार्च 2017

क्यूँ लेता हूँ फैंसला

क्यूँ लेता हूँ फैंसला 
जो टूटता नहीं है हौंसला 
क्यूँ खुद ही खुदी का दुश्मन हूँ 
जो लम्हा भर नहीं सोचता 
क्यूँ लेता हूँ फैंसला 
सवाल ही सवाल है
वस मौत का मूल ही जबाव हैं
क्यूँ लेता हूँ फैंसला
जल्दबाजी भीं नहीं
जालसाजी भीं नहीं
अंत नहीं शुरुआत है
जो यूँ लेता हूँ फैंसला
सोचा नहीं उस बात का
भविष्य मेरे हाथ का
वर्तमान में जो लिया है
फैंसला मेरे साथ का
जो यूँ लेता हूँ फैंसला
फिर ना सोचूंगा सुनील
क्यूँ लेता हूँ फैंसला
फैंसला मेरे विश्वास का

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