अक्षर-ए-दास्तान
पल - पल जहन
में एक ही सवाल
कर रहा है जो
मेरा जीना मौहाल
नाराज क्यों है
खुद ही - खुदा हमसे !
किसको सुनाऊँ
अपना दर्द
क्या हो गया
मेरे सीने में बढ़ते
दिनों- दिन इन
जख्मों का हाल
जुडी है जहाँ
मुझसे ,मुझी तक
ओरों की भी जिंदगी !
अब बता ए बन्दे
किसे सुनील
पुकार लगाउँ
किसे
अक्षर-ए-दास्तान समझाऊं !
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