अक्षर-ए-दास्तान
आँखों में मेरी
खाब कई
जिंदगी के मेरी
साज कई
किस धुन में अब
आपको बताऊँ
किस भाषा से
आपको समझाऊँ
देख लेता अगर
मंजर मेरा खुदा !
आज पुकार ना
लगाता
ना ही कभी हाथ
फैलता
वस गिर जाता
नतमस्तक होकर
उस खुदा के आगे
!
चाहे रख ले
मुझे अब
चरणों की धूल
में वसाके
सुनील के शब्द
आज भी
अक्षर –ए –दास्तान
है समझाते !
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