अक्षर -ए -दस्तान्
जोड़ कर लफ्ज़ों की,
परवाह करता हूँ शब्द धारा,
उठाकर कलम करता हूँ व्यक्त,
ग़ालिब लेकर स्याही का सहारा।
कीमत है क्या रिश्तों कि,
हमने कब ये जाना,
आपने जोड़ कर तोडा जो रिश्ता,
तब से हमे पागल कहता है ज़माना।
आपको जो अंत जान बैठा मै,
ज़िंदगी का हिस्सा मान बैठा मै,
आईने के समक्ष नयन भीग जाते है,
बेबफाई का बादल जब आते है!
आंसूओं को बहुत समझाया,
तन्हाई में आया करो,
महफ़िल में जब होता हूँ,
मत मजाक बनाया करो.
जो कहते खुदको सितारा है,
'सुनील' जगमगा कर दिखाएंगे,
राह रखकर अलफ़ाज़ की,
अक्षर -ए -दस्तान् बनाऐंगे।
सुनील कुमार'हिमाचली'
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