अक्षर -ए -दस्तान्
जोड़ कर लफ़्ज़ों की,
प्रवाह करता हूँ शब्द धारा ,
मुझे तो है शाकी वस
कलम की नीव और
स्याही का सहारा ,
दिल में इच्छा सी रहती है !
कल मिलने कि दोबारा ,
चढ़ते सूरज से
डूबते चाँद तक ,
वस है तेरा ही सहारा ,
बैठा रहता हूँ शाहिल पर ,
कभी तो नाव आएगी !
टिकट कटेगी तब,
मेरी तन्हाई साथ ले जाएगी !
यूँ तो शाकी कमी सी लगती ,
घड़ी कि टिक -टिक
हमे सहमी सी लगती !
तब जमीर भी बात 'सुनील 'की,
राह रखकर अल्फाज़ की ,
करता जो ब्यान ,
अक्षर -ए -दस्तान्,
[सुनील कुमार हिमाचली ]
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