शुक्रवार, 10 जनवरी 2014

अक्षर -ए -दस्तान्

 अक्षर -ए -दस्तान् 

जोड़ कर लफ़्ज़ों की,
प्रवाह करता हूँ शब्द धारा ,
मुझे तो है शाकी वस 
कलम की नीव और 
स्याही का सहारा , 

दिल में इच्छा सी रहती है !
कल मिलने कि दोबारा ,
चढ़ते सूरज से
 डूबते चाँद तक ,
वस है तेरा ही सहारा ,

बैठा रहता हूँ शाहिल पर ,
कभी तो नाव आएगी !
टिकट कटेगी तब,
मेरी तन्हाई साथ ले जाएगी !

यूँ तो शाकी कमी सी लगती ,
घड़ी कि टिक -टिक 
हमे सहमी सी लगती !

तब जमीर भी बात 'सुनील 'की, 
राह रखकर अल्फाज़ की ,
करता जो ब्यान ,
अक्षर -ए -दस्तान्,

[सुनील कुमार  हिमाचली ]

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