शनिवार, 5 जुलाई 2014

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कुछ लोग ज़िंदगी में यूँ मिल जाते हैं 
बदलते किताब के पन्नो के साथ 
ज़िंदगी से जुड़ जाते है 
क्या लिखूं शाकी ?
लफ़्ज़ों की पंक्ति में हमसे 
चंद शब्द ही जुड़ पते हैं ,
आज उन्हें इतना याद किया।
न जाने क्यों हर वक्त खाव लिया ,
समझ आया तो सही 
हर पल ज़िंदगी ने हिसाब दिया ,
वाक्य बन गया ज़िंदगी का किस्सा
,सुनील ,ल्फ़ज़ों की इस नगरी में
अक्षर -ए-दास्तान का पन्ना
सर्च इंजन हार्ट से नाता जोड़ लिया

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