मंगलवार, 22 जुलाई 2014

words

हर बार नहीं होता
कि कविता का अर्थ निकले
कई बार शून्य तक ले जाना भी
कविता होता है
शब्दों में भाव का खो जाना भी
कविता होता है
हर बार नहीं होता
कि कविता से क्रांति हो
कई बात बातें बस बातें
ही रह जाती हैं
और आग बनने से पहले ही
समय की धारा में
बह जाती हैं
कागजों से आगे और कागज़
और उन में दबे हजारों नारे
इन नारों का नारा रह जाना भी
कविता होता है
कथ्य से ज्यादा अकथ्य
झूठ के सागर में
सच का एक
बेपतवार नाव सा अस्तित्व
इस अस्तित्व की पूजा
और झूठ का कारोबार
इस कारोबार में फँसा आदमी
उसका खुली आँख से सो जाना भी
कविता होता है
जन्म से पहले
और जन्म के बाद
मरने वाली लडकियाँ
और उनको जीवन भर
मिलने वाली झिड़कियाँ
बंद गली के आखरी मकान की
ये बंद खिड़कियाँ
इन खिडकियों के पीछे
बंद लाख सिसकियाँ
इनका युगों के बीच छुप जाना भी
कविता होता है
नौकरी की सलीब पर
चढ़ा आदमी
कहते हैं सब कि
बढ़ा आदमी
आदमी के सर पर ही
खड़ा आदमी
अँधेरे कमरे में बंद भविष्य
और भविष्य के नाम पे लड़ा आदमी
जात धर्म वर्ण में बंटा आदमी
अपनों की तलवार से कटा आदमी
खून से करता खून का हिसाब आदमी
देखिये पढ़िए
है खुली किताब आदमी
इतने रूप धर लेना भी कविता होता है
जीते जीते मर लेना भी
कविता होता है
इसी लिए
ज़रूरी नहीं की हर बार
कविता का अर्थ निकले
साँसों के बीच
साँसों का अर्थी
हो जाना भी शायद

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