पंजाब में विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा ने एक नया खुलासा किया है..सुखपाल खैरा ने आरटीआई सूचना के आधार पर कहा कि पंजाब में तपस्या का राग अलापने वाली सरकार की जीवनशैली लग्जरी खर्चों पर आधिरत है....
विपक्ष के आंकडों में फंसी पंजाब सरकार
विपक्ष के आंकडों में फंसी पंजाब सरकार
RTI के जरिए सुखपाल खैरा ने लगाया आरोप
‘लग्जरी जीवन शैली वाली है पंजाब सरकार’
दरअसल पंजाब में विपक्ष के नेता सुखपाल सिंह खैरा और सरकार के बीच वाद-विवाद का एक लंबा दौर चल रहा था ...इसी बीच सुखपाल सिंह खैरा ने आरटाई के जरिए एक खुलासा किया है कि पंजाब सरकार तपस्या की राह का केवल राग अलापती है लेकिन हाल ही में आरटीआई से प्राप्त सूचना के आधार पर उन्हें पता चला है कि सरकारी निवास का इस्तेमावल करने वाले कै. अमरिंदर और उनके नेता के मैंटेनेंस और रिनोवेश्न खर्च ही करोड़ो में है...
RTI के तहत प्राप्त अहम तथ्य? .
कैं. अमिरंदर सिंह की 4 मजिला इमारत का रिनोवेश्न खर्च- 50 लाख
पंजाब एडवोकेट जनरल अतुल नंदा के रेसिडेंस का खर्च-1 करोड़
मनप्रीत सिंह बादल ने नए गैस्ट रुम के लिए किए 25 लाख रुपये खर्च
राना गुरजीत सिंह का बिल रिनोवेश्न खर्च 35 लाख रुपये
प्राप्त सूचना को आधार बनाते हुए सुखपाल खैरा का आरोप है कि पंजाब सरकार केवल दिखावा करती है कि सरकार के पास आर्थिक तंगी है...जबकि सच्चाई RTI से सामने आ चुकी है...
सुखपाल खैरा का आरोप
सरकार पैसों के अभाव में पेंशन देने में सक्ष्म नहीं..पिर करोड़ों का रिनोवेश्न खर्च क्यों?
3 करोड़ से ऊपर का रिवोनेसन खर्च करने वाली सरकार तपस्वी जैसी जीवन शैली की राग क्यो?
बलात्कार के आरोप से 2-4 हो रहे खैरा के हाथ इन दिनो ऐसी सूचना हात लगा गई जिसके बिनाह पर यकीनन पंजाब सरकार घिरती ही नजर रही है,,,अब देकने वाली बात होगी कि सरकार किस तरह अपनी सफाई पेश करेगी...और विपक्ष सवालों से खुद को बचाएगी....
अन्ना हजारे की तरफ से किए गए आंदोलन के बाद होंद में आई आम आदमी पार्टी वैसे तो पिछले दो सालों से लगातार पतन की तरफ जा रही है। परन्तु कुछ दिनों बाद विदाई ले रहा साल-2017 इस पार्टी के लिए बेहद भारू सिद्ध हुआ है। इस साल दौरान चाहे पार्टी ने पंजाब विधानसभा में विरोधी पक्ष का दर्जा हासिल करके पंजाब अंदर इतिहास बनाया है। परन्तु सारे वर्ष के घटनक्रम को देखा जाए तो इस पार्टी का झाड़ू लगातार बिखरता ही गया है।
आम आदमी पार्टी के लिए बेहद भारी रहा 2017
पिछले समय दौरान भी विवादों में उलझी रही आम आदमी पार्टी
इस पार्टी ने 2013 दौरान दिल्ली की सत्ता संभाली थी। परन्तु जल्दी ही योगेंद्र यादव और प्रशांत भूषण जैसे कई नेताओं के साथ मतभेदों ने इस पार्टी के साथ जुड़े लोगों को निराश किया। इस पार्टी की पहली सरकार सिर्फ तीन महीने ही चल सकी। परन्तु दिल्ली निवासियों ने फिर पार्टी को एकतरफा फतवा देकर अरविन्द केजरीवाल के नेतृत्व वाली सरकार बनाई। एक तरफ यह पार्टी विरोधी धड़ों के निशाने पर रही और दूसरी तरफ पार्टी की अंदरूनी कशमकश ने लोगों को इस हद तक निराश किया कि 2014 के लोकसभा मतदान दौरान पंजाब के बिना ओर कहीं भी इस पार्टी को कोई समर्थन नहीं मिला।
पंजाब में जो 4 लोकसभा मैंबर जीते वह भी इस पार्टी के साथ जुड़े नहीं रह सके। यहां तक कि पार्टी में नई रूह फूंक कर पंजाब अंदर इस के पैर लगाने वाले कनवीनर सुच्चा सिंह छोटेपुर जैसे नेता को भी दरकिनार कर दिया गया। इस के इलावा इस पार्टी के कई ओर नेताओं के खिलाफ लगे गंभीर दोषों ने भी पार्टी का अक्स धुंधला करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पंजाब में दिल्ली वालों का बोलबाला, पंजाब के नेताओं को नजर अंदाज करने के इलावा टिकटें बांटते समय पैसों के लेन-देन जैसे इलाजामों ने पार्टी को काफी नुकसान पहुंचाया।
केजरीवाल की एक झलक भी नहीं देख सके पंजाब निवासी
2017 दौरान हुए विधानसभा मतदानों से पहले ही पार्टी में टिकटों के ऐलान मौके बड़े राजनैतिक विस्फोट होने शुरू हो गए थे। अकाली-भाजपा गठजोड़ की सरकार खिलाफ बड़े गुस्से का दिखावा करते हुए पंजाब निवासियों ने लोक इंसाफ पार्टी के उमीदवारों समेत इस पार्टी को करीब 22 सीटों पर जेतू बना कर विधानसभा में पहली बार किसी गैर अकाली या गैर कांग्रेसी पार्टी को विरोधी पक्ष का दर्जा दिया। परन्तु यह पार्टी विरोधी पक्ष के नेता के चुनाव करने में भी अंदरूनी कशमकश में उलझी रही जिस के चलते कई नेताओं की अलग-अलग सुरों ने इस पार्टी के साथ जुड़े लोगों को बड़े स्तर पर निराश किया।
इतना ही नहीं मतदान के बाद पंजाब निवासियों को इस साल अरविन्द केजरीवाल की एक झलक तक देखने को नसीब नहीं हुई। ओर तो ओर बटाला से चुनाव लडऩे वाले पार्टी के कनवीनर गुरप्रीत सिंह घुग्गी भी अपने समर्थकों का हाल पूछने तक नहीं आए। पार्टी के नए बनाए गए कनवीनर और संगरूर से लोकसभा मैंबर भगवंत मान भी कई तरह के दोषों में घिरते आए हैं। इसी तरह पार्टी का विरोधी पक्ष के नेता एच.एस.फूल्का के इस्तीफे की नौबत भी आई और सुखपाल सिंह खैहरा के रूप में विरोधी पक्ष का नया नेता नियुक्त करना पड़ा।
लगातार गिरता रहा पार्टी का ग्राफ
बेशक पार्टी के कनवीनर अरविन्द केजरीवाल ने पार्टी में जान डालने के लिए कई कोशिशें की हैं। जिस के अंतर्गत संजय सिंह के इस्तीफे उपरांत अब मनीष सिसोदिया को पंजाब का इंचार्ज लगाकर पार्टी वर्करों में नया उत्साह भरने की कोशिश की गई है। परन्तु इस के बावजूद भी स्थिति यह बनी हुई है कि निचले स्तर पर पार्टी का ढांचा पूरी तरह हिला हुआ है। पार्टी के माझा जोन के प्रधान कंवलप्रीत सिंह काकी, जो कादियां हलके से चुनाव लड़े थे, अकाली दल में शामिल हो गए। इसी तरह माझे के कोआरडीनेटर और पूर्व लोकसभा मैंबर चरनजीत सिंह चन्नी, दीनानगर से चुनाव लडऩे वाले जोगिन्द्र सिंह छीना, फतेहगढ़ चूडि़य़ां से गुरविन्दर सिंह शामपुरा, लखबीर सिंह, मनमोहन सिंह भागोवालिया समेत अनगिनत वालंटियर और सीनियर नेता इस पार्टी को छोड़कर ओर पार्टियों में शामिल हो गए हैं।
कुछ हलकों के अंदर स्थिति यह बनी हुई है कि मतदान लड़ चुके नेताओं की कोई भी सक्रियता दिखाई नहीं देती। इसी कारण नगर निगमों की मतदान दौरान 414 वार्डों में से इस पार्टी को केवल एक सीट पर जीत नसीब हुई है जबकि गुरदासपुर उप चुनाव दौरान तो पार्टी उमीदवार की जमानत भी नहीं बच सकी। पंजाब के इलावा दिल्ली और ओर सूबों के अंदर भी पार्टी की स्थिति अजीबो-गरीब बनी हुई है जिस के चलते इस वर्ष दौरान पार्टी के शुभ चिंतकों के पल्ले निराशा ही पड़ी है।
वोट प्रतिशत बनाम चुनाव नतीजे
आप को मिलने वाली वोटों की प्रतिशत में भी इस साल गिरावट आई है। 2014 में हुए लोकसभा मतदान दौरान इस पार्टी ने जब 13 में से 4 सीटों पर जीत हासिल की थी तो उस समय पार्टी को 24.40 प्रतिशत वोटें पड़ी थीं। परन्तु इस साल विधानसभा मतदान में वोट प्रतीशत कम हो कर करीब 23.7 प्रतिशत रह गई। यदि 2014 की लोकसभा मतदान दौरान इस पार्टी को पड़ी वोटों का लेखा जोखा विधानसभा हलकों अनुसार किया जाए तो उस मौके 13 लोगसभा हलकों अंदर करीब 33 विधानसभा हलके ऐसे थे जहां इस पार्टी के उमीदवारों को कांग्रेस और अकाली-भाजपा के उमीदवारों की अपेक्षा ज्यादा वोटें पड़ीं थी जबकि 8 विधानसभा हलकों में आप के उमीदवार दूसरे स्थान पर आए थे। परन्तु इस साल विधानसभा मतदान दौरान पार्टी के 20 उमीदवार ही विधायक बन सके। ओर तो ओर 2014 की लोकसभा मतदान दौरान सुच्चा सिंह छोटेपुर गुरदासपुर से चुनाव लड़ कर एक लाख 73 हजार से भी ज्यादा वोटें ले गए थे। परन्तु अब जब इस साल इसी हलके गुरदासपुर में उप चुनाव हुआ है तो पार्टी के उमीदवार की जमानत भी नहीं बच सकी।
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