बुधवार, 18 मार्च 2015

akshar e dastan



जान सके
मुझे अपने ही मेरे पहचान सके
मेरा ही दाम जान सके ,
यूँ तो रटते फिरते थे
मेरे ही गुनाहों का जनाज़ा
मेरी ही बातों का मतलब जान ना सके ,
किस भ्रम में डूब गए जो
आज भीड़ में नहीं
अँधेरे में नहीं
अपने ही दमन तले जान सके। .
हाँ
मेरे ही आगोष में शायद दावानल ही पलते होंगे
मेरी ही भूल थी ,,, वो हम पर मरते होंगे
यही सोचते रहे ,मुझे याद भूले से ही सही। करते होंगे। .
आज आया जो है आइना सामने
तो खुद को भी पहचान सके
अपने ही आप को      हम   जान सके

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