अक्षर-ए-दस्तान्
बहता हुआ पानी,
करता कौन बचपन कि बातें
कौन करता है नादानी,
कसूर किसका है?
नशा हमने किया
इल्जाम शराब को दिया ,
हम तड़फते रहे तन्हाइयों में
बो करवटें लेते रहे रजाइयों में,
कशुर हमारा नही था शाकी
उनका ही था।
जिनका चेहरा हमने
जाम में तलाश लिया।
किसी ने चाँद से
किसी ने सूरज से
हर किसी ने कि
महोब्ब्त सूरत से।
हमने तो जो भी किया
इल्ज़ाम सबने हमे दिया ,
उठा ले कलम सुनील
वक्त ने हमको बदल दिया
अक्षर-ए-दस्तान् में जो व्यक्त किया।
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