
लहू से लिख रह हूँ नाम तेरा
किसी पन्ने या दीवार पर नहीं
जिगर-ए-जागीर तक है नाम तेरा


रोम-रोम से जुड़ा है ख़्याल तेरा
अंत है नहीं- सोच बेहिसाब है
न जाने कौन सा मूलांक है सवाल तेरा


उगते सूरज से -ढलते चाँद तक है जिक्र तेरा
न जाने क्यों सुनील -
कल तक था चलती-फिरती लाश
अब क्यों होने लगा है फ़िक्र तेरा

हस्र क्या होगा अब मेरा
अब क्यों होने लगा है फ़िक्र तेरा
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