शुक्रवार, 31 जनवरी 2014

akser e dastaan

अक्षर -ए -दस्तान 
 
करता हूँ जब भी बात 
आती है आपकी 
बातों में बात 
लग जाती है आग 

जब भी होती है आपकी बात 
वो भूली बिसरी याद 
करते थे चाँद तारों कि बात 
आज बरसते हैं सावन 
भीगे नयनो के साथ 

धुंधला सा आकाश 
आता है नज़र 
पलकों के मध्य 
सावन भरने के बाद 

कैसे भुलाऊँ'सुनील' बीते
 लम्हों  की बदलती यादें
बदलते वक्त की बदलती बातें   
अक्षर-ए-दास्तान की सौगातें 
   (सुनील कुमार हिमाचली )

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