गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

कभी सुनी है तान

कभी सुनी है तान
जो कहती है नैनों की शान
कभी छीन लेते हैं आराम
कभी घायल होता है दिल
बिना तीर और कमान

कभी सुनी है तान
मंद सी मुस्कराहट की
दबे हुए लबों से
खिले हुए बालों की

कभी सुनी है तान
दबे पांव की आहट की
हवा में घोले संगीत मधुर
छनक उस पायल की

कभी सुनी है तान
बिना शब्द और साज
गूंजती है एक आवाज़
दूर होकर भी पास ही
नज़र आते हैं जनाब

कभी सुनी है तान
घूम हुए बैठे हैं इंसान
क्या सुनील ये कैसा पैगाम
नाराज़ है वो क्यों
न अब रूह ए राज का अंजाम

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