बुधवार, 31 अक्टूबर 2018

देश डीजिटल हो रहा है और जो जानते नहीं डीजिटलाइजेशन वो रो रहा है

देश डीजिटल हो रहा है और जो जानते नहीं डीजिटलाइजेशन वो रो रहा है. सत्य है इसके लिए आपको गांव जाने की जरुरत नहीं, शहर में ही हमारी तरह पढ़े-लिखे अनपढ़ मिल जाएंगे. क्योंकि जिसे आज के दौर में डीजिटलाजेशन का ज्ञान नहीं होगा उसे आप मोदी भक्त तो कहेंगे नहीं. अनपढ़ ही कहेंगे. वो इसलिए की वर्तमान में State Bank of India की हिमाचल प्रदेश की शाखा पर गया तो अटपटा सा लगा. लेकिन बाद में सोचा शायद कोई प्रोबल्म हो सकती है, मन में ख्याल बना लिया इग्नोर किया क्योंकि हाथ में चैक था. चलो चैक तो लग गया. अब बाहर एटीएम से पैसे निकलवाने आया तब ज्ञान पड़ा की भई ये सब मोदी माया है , जो अब तक समझ नहीं आया है.
जी #PM Narendra Modi जी अब यही हाल है हमारे डीजिटल इंडिया का जिसमें Arun Jaitley जी की उम्र का वर्ग बैंक में जाकर धक्के खाने को मजबूर है. State Bank of India की शाखा में अब #ATM से पैसे जमा किए जाते हैं. पहले एक फोर्म किसी से भी भरवा लो पैसे जमा हो जाते थे. लेकिन अब एटीएम से ही जमा होते हैं. मतलब साफ है कोई अधिकारी आपकी बात नहीं सुनेगा. न ही अपनी सीट छोडकर आपके अकाउंट में पैसे जमा करवाने एटीएम की तरफ जाएगा. पंजाब आकर फिर पैसे जमा करवाने की समस्या उनके साथ थी जिन्हें एटीएम पर उंगली टच करते हुए भी दिल में घबराहट होती है.
और किसी अंकल या आंटी जी को अपने बेटा-बेटी के अकांउट में पैसे भिजवाने है जो बाहर किसी शहर या राज्य में पढ़ते हैं तब उन्हें फिर से किसी के तरले करने पड़ेगे जनाब-- उनके अकाउंट से पैसे ट्रांसफर कर दो. दोनों ही स्थिति में पहले बैंक अधिकारियों से सूनो और फिर किसी नौजवान को पकड़कर उससे पैसे जमा करवाने के लिए दर्खास्त करे,,, ये है हमारा डीजिटल इंडिया... सच में देश बदल रहा है जहां जनता को पैसे जमा करवाने के लिए भी किसी न किसी मिन्नते करनी पड़ रही है. और रोज बैंक में आने वाले 90 फीसदी लोगों के साथ यही समस्या पेश आ रही है.
अभी कहां साहब - अभी तो बात शुरु हुई है. अब कब कहां किसी एटीएम से किसने कितना कैसे गुल किया सिर्फ खबरे ही आया करेंगी. और बैंक कर्मियों के सिर पर फिर असली समस्या नाचेगी जब एटीएम में ट्रांजेक्शन किसने कहां कब किस वक्त की थी. उसकी सीसीटीवी फूटेज निकाल -निकालकर जब देनी पड़ेगी. इसलिए सरकार फैंसला और नियम वही बनाइए जो सर्वहित में हो. जनता अभी डीजिटलाइजेशन में इतनी जागरुक नहीं है. क्यों उसकी मेहनत पर पानी फेर रहे हैं. दिहाड़ी लगाने वाले इंसान के पास आपकी इस तकनीकी को समझने का वक्त नहीं. और न ही उसके पास कोई ऐसा लोकर है की महीने की हजार रुपए की बजत को रख सके. देश में 10 रुपए जेब में हैं या नहीं बिना पूछे तो सिर कत्ल हो रहे हैं. अब ये मेहनतकश हाथ किस-किस की मिन्नतें करते फिरें जरा आप ही बता दीजिए. जो नियम आप और आपके अधिकारी बनाते हैं - कभी धरा पर नंगे पांव उन्होंने पोजिशन होने पर रखा नहीं होगें. अब उन्हें क्या पता आम जन कितने रुपए किलो वाला आटा और टमाटर खरीद रहे हैं,
साफ शब्दों में- हमारा देश शहर और गांव दोनों कैसे हैं कभी सफर कीजिए हकीकत से बाकिफ हो जाएंगे. क्योंकि किसी नेता का जब दौरा उस क्षेत्र में होगा तब सड़के भी साफ और व्यवस्था भी खास, जिस रास्ते से नेता गुजरता है. लेकिन हकीकत कुछ और होती है. कभी वक्त मिला तो देखिएगा की जो हम कह रहे हैं समझ तो हमारे कहने पर किसी को आता नहीं. जब तक अपने साथ ये समस्या पेश न आए.
देश बदल रहा है सच में
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RBI आजकल State Bank of India में पैसे जमा करवाने मुश्किल है.पहले किसी से भी फार्मभरके राशि जमा की जा सकती थी, अब दूसरे के अकाउंट में डालने है तब भी मना किया जाता है. #ATM से होंगे. जिन लोगों को #ATM चलाने नहीं आता उनका क्या होगा. नीति वो बनाए जो सर्वहित में हो. हकीकत क्या है देखिए - Arun Jaitley जी जनता अपना पैसा ही जमा करवाने के लिए हाथ जोड़ रही हैं.खास कर ग्रामीण इलाकों में उनको जिनके बच्चे बाहर पढ़ते हैं या किसी को पेमेंट करनी है.ऐसे में जब किसी को बोल के #ATM से पैसे ट्रांसफर करवाते हैं तब क्या मामले सामने आ सकते है जिसका State Bank of India अंदाजा नहीं शायद .

माशाल्लाह

कुछेक का अंदाज़ माशाल्लाह है
कुछेक की आवाज़ माशाल्लाह है
कइयों से मिला नहीं अरसे से
दिखे तस्वीर, तारीफ भी क्या करूं ?
वर्षों पहले का अंदाज़ माशाल्लाह है

आँखों से शराफत का शरवत
होंठों पर मुस्कान- ए- गुलिस्ताँ ही पर्वत
दवे हुए दिल में कई अरमा है जो देवदूत
कभी-कभी आती है आँखों मे हरकत

अब भी ज़िंदा है रूठों को मनाने का अंदाज़
अंजलि, पुष्प और जिवंत रूह सा अहसास
आँखों में तैरता है आज भी मजबूरियों का जहाज
मुर्दा होकर भी इंसानियत जिन्दा रखती है
ऐसी है उसकी काया, शांतमयी है जिसकी छाया
आज भी गूंजती है सालों पहले सुनी थी जो आवाज़

गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018

आज फिर छत से तनहा दिखेगा चाँद


आज फिर छत से
तनहा दिखेगा चाँद
टीमटीमाती चांदनी
तनहा दिखेगा चाँद 


होगी दुआ उनकी काबुल
मांगेगी वो मांग का सिंदूर
करेंगी फ़रियाद उससे
जो सालों से तन्हा बेकसूर

जानता है वो तन्हाई का सितम
काली रात में दिखती परछाई सी किस्म
सोने सा पूर्णिमा को चमकता जिसका जिस्म
ए चाँद जरा जल्दी उगना भूखा-प्यासा है प्रीतम

तू बखूबी जनता है मेरे प्यार का आलम
एक सा नहीं रहता प्रीतम का बालम
कभी पूर्णिमा सा दूर से छलकता है प्यार
कभी करवाचौथ सा रहता है बेशब्र इंतज़ार

कभी बढ़ता -कभी कम होता है इज़हार
कभी रूत बदले रूठे जो मितवा
तब अकेला दिखता है तू
और खुद का खुदगर्ज़ सा संसार
लगता है अब अमावस ही छा गई
बहार आने का रहता है फिर इंतज़ार

हाँ सुनील फिर सोचता हूँ -
आज फिर छत से
तनहा दिखेगा चाँद
टीमटीमाती चांदनी
तनहा दिखेगा चाँद

#करवाचौथ_और_चाँद

कभी सुनी है तान

कभी सुनी है तान
जो कहती है नैनों की शान
कभी छीन लेते हैं आराम
कभी घायल होता है दिल
बिना तीर और कमान

कभी सुनी है तान
मंद सी मुस्कराहट की
दबे हुए लबों से
खिले हुए बालों की

कभी सुनी है तान
दबे पांव की आहट की
हवा में घोले संगीत मधुर
छनक उस पायल की

कभी सुनी है तान
बिना शब्द और साज
गूंजती है एक आवाज़
दूर होकर भी पास ही
नज़र आते हैं जनाब

कभी सुनी है तान
घूम हुए बैठे हैं इंसान
क्या सुनील ये कैसा पैगाम
नाराज़ है वो क्यों
न अब रूह ए राज का अंजाम

रविवार, 7 अक्टूबर 2018

ज़मीनी हक़ीक़त: दिवाली आई तो लक्ष्मी पूजा , लक्ष्मी के रूप में बेटी आई तो काम दूजा

  लगभग एक सदी के अंतराल से सुन रहा हूँ की ,भ्रूण हत्या करना पाप है -वर्तमान में अभियान भी चल रहा है बेटी बचाओ - बेटी पढ़ाओ लेकिन वास्तविकता से जो बिलकुल परे है। वो अभियान सिर्फ दीवारों पर लिखने और सरकार के पोस्टर के बिकने के लिए है। औरत को कत्ल करने के मामले ,नवजात बच्ची का शव कूड़े के ढेर में मिलना - आज भी दहेज़ के ही नवविवाहिता को मरना और वर्तमान में सबसे ज्यादा हवस के पुजारियों द्वारा औरतों को अपना शिकार बनाकर अपनी दरिंदगी की प्यास बुझाना। आजकल हालात कुछ ऐसे है ही समाचार पत्र पत्रिकाओं और टीवी चैनलों में भी आपराधिक गतिविधियों की ख़बरें ज्यादा होती है।  कई बार तो दिल्ली जैसे कांड सामने आज भी आते है तो रूह कांप उठती है की देव-ऋषि-मुनियों की इस धरती पर कैसा ये कलयुगी मानस जन्म ले रहा है।

जब भी कोई त्यौहार या पर्व आता है आरती के गुणगान के बरावर औरत को स्थान दिया जाता है।  लेकिन सत्य रूप से औरत के साथ समाज में अन्याय होता है। पूर्ण रूप से इसके लिए पुरुष वर्ग ही दोषी नहीं है।  कई स्थानों  या बातों में औरत भी इस कथनी और करनी में बराबर की हिस्सेदार होती है।
अक्सर पढ़ा और सुना होगा -
गरीबी मर्दों के कपडे उतरवा देती है
और अमीरी औरतों  के ( इसका उदारहण अगर प्रत्यक्ष रूप से देखना होगा तो अपने नज़दीकी किसी भी मॉल या मार्किट में चले जाइये साफ़ दिखेगा )
लेकिन आज भी जहाँ महिलाओं साथ समाज में हो रहा है एक घर के भीतर हो रहा है सबसे अधिक ऐसे केसों में महिला ही महिला के अपमान, निरादर , यहाँ तक की मौत की भी ज़िम्मेदार होती है।
साधारण सी बात है - जब भी कूड़े के ढेर या किसी आवारा कुते के मुह से कोई बच्ची मिलती है तो उसे छोड़ने वाली माँ का दिल कैसा होगा। जब एक बाप  अपनी ही बेटी और एक भाई का अपनी ही बहन से दुष्कर्म का मामला सामने आता है तो उस भाई की मानसिकता कैसी होगी। समाज में जब किसी की बहु बेटी का मजाक उड़ाया जाता है - तो उस हंसी के पीछे अंदर ही अंदर जलकर भाप बनने वाले आंसुओं की तपस क्या होगी। इसको कोई समझ नहीं सकता और न ही जान सकता है। लेकिन समाज की मानसिकता तो कहीं न कहीं आईने पर लगे दागों की तरह साफ़ दिखाई देती है कि --   दिवाली आई तो लक्ष्मी पूजा , लक्ष्मी के रूप में बेटी आई तो काम दूजा। 

ज़मीनी हक़ीक़त ..... तो कभी नहीं बदलेगी देश की दिशा और दशा ?

  हर छोटा-बड़ा नेता और फिल्मो अभिनेता यही कहता कि हम देश की दिशा और दशा बदलेंगे। फ़िल्मी बातें तो काल्पनिक है लेकिन जो वास्तविक है वो समाज में सरेआम है। हर कोई भलीं भांति वाकिफ है की कौन क्या कर रहा है: लेकिन उस पर या तो हमारे ही होंठ बंद जाते है या  आंख और कान से हम अपँग हो जाते है. वर्तमान में भी कुछ है हर राजनितिक पार्टी देश को बदलने की बात कर  रही है। ये जूठ नहीं बदलाब हुआ है। इतना बदलाब हुआ है कोई  नेता कभी हाथ से मौका नहीं जाने देता विपक्ष को लपेटे में लेने से। लेकिन अब इन राजनितिक पार्टियों में एकता और अखण्डता की बात भी खत्म सी होने लगी है। वर्तमान में उत्तर प्रदेश की बात करें या पंजाब की दोनों ही राज्यों में वर्ष 2017 में चुनाव होने वाले है। 

जिसको लेकर हर पार्टी जनता को लुभाने में जुटी हुई है। इसी बीच पार्टियों की अंदरूनी कलह बाहर खुलकर आने लगी है। चाहे वो सपा के मुलायम सिंह यादव का तंज़ हो या फिर आप के सुच्चा सिंह छोटेपुर की खुद की अढाई साल की कहानी। दोनों से साफ़ है जिस परिवार के भीतर ही क्लेश है वो बाहर किसी को क्या सही दिशा दिखाएगा - किसी की क्या दशा सुधरेगा। बचपन में पढ़ा था कि जिस परिवार में कहल हो बुद्धिमान और विद्वान उस स्थान को ही छोड़ देते है। लेकिन हम कुछेक राजनेताओं के द्वारा भ्रष्ट किए हुए देश को नहीं छोड़ सकते। पर नेताओं और इनकी बनाई हुई नीतियों से जरूर मुह मोड़ सकते है। प्राथमिक शिक्षा  लेकर माध्यमिक तक सबने पढ़ा है बुरा मत देखोबुरा मत सुनो, बुरा मत  बोलो और अब बुरा पढ़ो भी क्योंकि इन नेतओं के द्वारा कभी कभी ऐसे बयान दिए जाते है की न्यूज़ में सुनना तो दूर न्यूज़ पेपर में पढ़ना भी सही नहीं -- (किस्सा याद गयागॉव की बात है अपनी पड़ोस में आंटी से अखबार मांगने गया तो उहोने मुझे काफी धरातल से जुड़ा हुआ बयान देते हुए कहा -: हमने अखबार लेना बंद कर दिया इतना अनाफ सनाफ़ होता है ,हर चौथे पेज़ पर तो लड़की से हुए गलत काम (बलात्कार) की खबर होती है। बच्चों के सामने और घर में हर कोई कहीं ना कहीं अखबार लेकर बैठा रहता था तो ऐसे में कैसे अखबार पढ़े और आजकल तो लीडर भी कुछ भी बोल देते है ऊपर से अखबार वाले भी बड़े बड़े अक्षरों में लिखते है - दूर से ही नज़र हो जाती है ,खबर तो तेरे अंकल को बोल कर मैंने अखबार ही बंद करवा दी )  - ये बात भी सच है - नेताओं के ब्यानों और उनके विचारों की तो हम रीस ही नहीं कर सकते है। साफ़ बात ये है की हर नेता आपस में एक  चरित्र पर कालख उछालने पर लगे रहते है। खुदा कसम:_- चाहे कश्मीर का मुददा हो या शहीद का प्रतिक्रियाओं में ही जंग शुरू हो जाती है। और किस्सा ख़त्म होता है सदन का वक़्त बर्बाद करके। जिस देश में देश के कर्ताधर्ता और उसके  साथियों नहीं पता की देश किस दिशा में है और देश की दशा क्या वो देश तरकी कैसे करेगा। सत्ता और विपक्ष को तो बयानों पर प्रतिक्रिया देने से ही वक़्त नही तो काम कैसे करेंगे , कौन करेगा। आपत्ति जनक टिपण्णियों से देश की जनता का पेट भरेगा।

ज़मीनी हकीक़त : कहीं मंहंगे भक्त, कहीं सस्ते भगवान्

  आजकल नया दौर शुरू हो गया है, महंगे और सस्ते का जोकि हमारे समाज का एक स्टेटस सिम्बल है ।  जिस मंदिर मस्ज़िद गुरुद्वारा सब मे हर धार्मिक स्थान पर सबको एक बराबर समझा जाता है वहां आज सब शायद सामान नहीं है। क्योंकि अगर किसी भी धार्मिक स्थान पर कोई नेता या उच्च दर्ज़े का अफसर पहुँचता है तो उसके लिए प्रवेश द्वार से लेकर बहार निकलने तक  उच्च कोटि के प्रबंध होते है। उक्त व्यक्ति या नेता के लिए पूरा प्रशासन सतर्क और जनता परेशान होती है।

 इसी बीच आजकल प्रभु  दर्शनों ने  भी रेट लगने लगे है-पर्चियां काटी (जोकि मंदिर या भवन विकास के लिए प्रयोग में लायी जाती है ) जाती है। कोई पर्ची 10 देकर लेता है तो कोई 10 हज़ार, हर कोई अपनी पहुँच के अनुसार पर्ची कटवाता है। लेकिन यहाँ भी भेड़ चाल देखि है - देखा देखि होती है। ( यहाँ किसी व्यक्ति विशेष की बात नहीं करूँगा क्योंकि  वर्तमान में सबके साथ वास्तविक तौर पर होता हैं। ) जहाँ सरकारी अफसर दर्शनों के लिए किसी कतार में न खडा होकर सीधा द्वार तक पहुँचता है। वहीँ आम आदमी घंटों इंतज़ार कर मेहनत से मिष्ठान ग्रहण करता है। कहीं कही तो रेलवे टिकेट की तरह पहले ही बुकिंग हो जाती है कि आज श्रीमान नेता जी आने वाले है - विशेष कपाट खोल दिया जाए।जिससे  साफ़ जाहिर है कि कहीं मंहंगे भक्त, कहीं सस्ते भगवान् और कहीं  मंहंगे भगवान्,कहीं सस्ते भक्त।

ज़मीनी हकीक़त : भगवान् के दम पर धनी

प्रथा आजकल ज्यादा प्रचलित है और यहीं प्रथा नवरात्रों या उपहारों में ज्यादा शुरू हो जाती है। चौराहों में शहरों में बाज़ारों में और परिवहन निगम स्थानालाय में ज्यादातर। एक बच्ची -औरत एक  थाली में एक माँ शेरां वाली की मूर्ति या तस्वीर (या  किसी दूसरे भगवन की) लगाकर बस में सफर करने वालों को आशीर्वाद देती है। उनको ढेर सारी  दुआएं देती है। और बदलमे क्या लेती है सिर्फ 10 -15 रूपये। अगर 10 -15 रूपये में जग -जुग जियो , खूब तरकी करो- सब इसी में हो जाये तो रोज़ जीने के लिए 10 -15 रूपये बस में माता के नाम देकर शाम को दो चार घूंट मदिरा और तरकि के लिए चोरी डकैती या फिर वेहला बैठा रहता हूँ क्यों मेहनत करनी।
सही है - भगवान् की तस्वीर लेकर घूमने से अगर महल और रोटी मिल जाए तो यही काम अछा है - और शायद व्यापार भी यही अच्छा रहेगा -एक टीम बनाकर रख लेता हूँ और उनकी ड्यूटी लगा लेता हूँ। उनको भी रोज़गार मिल जाएगा और मुझे व्यापार मिल जाएगा। भगवान के नाम का -लोगों को आशीर्वाद देकर उनसे उनकी मेहनत का पसीना बून्द बून्द लेता रहूँगा। मेहनत तो इसमें भी लगेगी पर भगवान् के दम पर धनी  बन जाऊंगा।
सही बात है - या नहीं ये तो आपको ही भली भांति ज्ञात होगा - भगवान को भगवान के नाम को व्यापार न बनाएं  और राह चलते हर इंसान को पैसे देकर भिखारी न बढ़ाएं। 

शुक्रवार, 5 अक्टूबर 2018

बिल्कुल फ्री 'फिक्र नहीं- जिक्र योग्य' अंकुश लगाने वाली मानसिकता



आजकल इंसान फ्री बिल्कुल भी नहीं. चार लोगों में बैठा है या परिवार के बीच बंदे के पास वक्त ही नहीं. हर 10-15 मिनट बाद अपना फोन चैक करता ही रहता है. क्या पता भई पीएमओ से फोन आना हो. लेकिन आजकल उन सबके लिए बहुत आसान हो गया है जो घर से परिवार से दूर रहते हैं. Google Duo, Skype, WhatsApp, Facebook Messenger,Viber ,Tango, Snapchat, FaceTime for Android, और अब InstaGram सबसे कॉल की जा सकती है. हमारे नजरिये से आशिकों के लिए ये टैक्नीक सबसे आराम पसंद है. किसी को गिफ्ट देना है. दिखाओ और ले जाओ. कुछ भी करना है. यहां तक की राखी सावंत जैसे महान शख्स टॉयलेट में बैठकर भी पोस्ट करते हैं. सच में कितना बदल रहा है इंसान - इस मोबाइल का इस्तेमाल किस-किस ढंग से होता है. जो हम या आप सामान्य तौर पर करते हैं. जो एप लिखे हैं आपको इससे ज्यादा का पता होगा. हो सकता है हमें इसका ज्ञान कम हो.
लेकिन कसम उन एप बनाने वालों की इन्होंने तो नरक के दरवाजे की चाबी ही हाथ में दे दी है. मतलब जो एप्लीकेशन अच्छे और खुद के टैलेंट को सोशल मीडिया के जरिए दर्शाने के लिए की जानी चाहिए. उनको किस- किस लहजे से जनता इस्तेमाल करती है. बताना--- जरुरी है... पर निरमा की एड की तरह पहले इस्तेमाल करें- फिर विश्वास करें की बात यहां सही नहीं बैठेगी. इसलिए अगर आप प्ले स्टोर से अगर डाउनलोड कर भी लेते हो- आधे घंटे से भी कम वक्त में आप इसको अन्संटोल कर दोगे. इसमें कोई दोराय नहीं हमारी प्रमाणिकता है. सिर्फ शरीफ लोगों के लिए नवाज शरीफ की सोच वालों के लिए नहीं,

अच्छा पिछले दिनों ( इसमें तेरा घाटा, मेरा कुछ नहीं जाता ) गाना ग्रुप में काफी वायरल हो रहा था. तीन लड़कियां थी या शायद चार, सही से याद नहीं. लेकिन सही में घाटा किसका है ये उनको पता है जिन्होंने वो वीडियो देखी होगी. खैर छोड़िए - विषय यह नहीं, वैसे भी जिसका जो मन करता है वो करे, बस खुश रहे अब जिन एप्लीकेशन की बात हम कर रहे हैं- भई - उसमें तो जीबी रोड की भी हदें पार कर दी हैं. हां सच्ची अब 2 जीबी तक का डाटा रोजाना मिलता है ना- हमारा वो मतलब था. अब जितना समझ में आया कि उन एप में आपको स्कोर या प्वाइंट लेने होते हैं, फिर कॉल बगैरा के ऑपशन और साथ में इनकम भी होती है. जिसके लिए आप पेटीएम से फंड हासिल कर सकते हो. लेकिन यह बात सच है या नहीं इसकी प्रमाणिकता हमारे पास नहीं.
अब जिसने यह एप चलाई होंगी, उसमें से कुछेक ने देखा होगा की इसमें किस तरह से वासना की हदें पार होते आपको लोग दिखेंगे. मतलब यार दुनिया कितनी बेल्ही है- कोई काम धंधा नहीं- बस, काम वासना में ढूबे हुए हैं. ह्यूमन इंटरेस्ट बस इस लायक ही रह गया है. इतनी गंदगी आपके सिवरेज में नहीं होगी जिनती इन लोगों के माइंड में भरी होगी. Omegal, Vigo Video, Musicaly ऐप नाम अब बदलकर Tik Tok  हो गया है, ( जैसे न जाने कितने ) इसकी काफी वीडियो आपको अश्लीलता भरे अंदाज में मिल जाएंगी,. अब आप सोचोगे की भई बंदे ने खूब नाकारात्मक टिप्पणी की है. करुं क्यों न- समाज में इतनी चर्चा तो राम रहीम और हनीप्रीत की नहीं होगी. और न ही वर्तमान में अनुपजलोटा ही जितनी इन एप की है. बंदे के दिमाग में फूहड़ता ही भरी पड़ी है.
इसका बड़ा ही साधारण सा उदाहरण है- एप पर एक लड़की गाना गा रही थी , साथ में चैट भी रीड कर रही थी. लाइक और कॉमेंट का दौर जारी था. बस आशिकी का दौर - लडके ऐसे-ऐसे कॉमेंट कर रहे थे, आप बाकिफ होंगे ही
अच्छा यही नहीं- इन एप पर आप ग्रुप कॉलिंग भी कर सकते हैं. अब भई- जब ग्रुप कॉलिंग होगी फिर इसमें रोकड़ा भी मिलेगा. तो लड़कियों की यहां बाते सुनने किए लिए दो लड़के बात करते हैं, आप भी उनकी बातचीत को सुन सकते हो. लेकिन उसमें एंट्री मारने के लिए आपको पैसे पे करने होंगे,  लेकिन यहां जो बातें होंगे उनको सुनकर आप मानसिक तौर पर बिमार हो जाओगे. किस रुप में ये आपसी मानसिक क्षमता पर तय करता है. अब इन एप ने कईयों का दिमाग खराब किया हुआ है. खासकर उनलोगों का जो कहते हैं- हमें किसी पर विश्वास नहीं रहा- कारण- अकेलापन, अधिकतर वो वर्ग जो घर में या बाहर अकेला होता है. इसमें जो उम्र होगी 19- 37 तक के लोगों की होगी. हां - कोई युरोपियन हुआ तो 50प्लस भी हो सकती है.
मतलब दुनिया पागल हुई पड़ी है. ज्यादादर वो देश जिनमें सेक्स एजुकेशन मूल रुप से पढ़ाई नहीं जा रही है, पीएमओ से गुजारिश भी की लेकिन कोई असर नहीं, हां- शायद यही कारण है कि सेक्स एजुकेश्न जब तक कोमन नहीं होती. तब तक लोग इसके मानसिक, समाजिक परेशानियों से रुबरु नहीं होंगे. और शायद दिन प्रतिदिन बड़ रही रेप की घटनाओं पर भी अंकुश न लग सके.
फिक्र नहीं- जिक्र योग्य है - आपको- हमें या एक बच्चे को जिस काम के लिए ज्यादा रोक-टोक की जाती है, व्यक्तिगत रुप से उस और ज्यादा ध्यान जाता है. अब वर्तमान में जो लोग वासना से भरे हुए एप लेकर बैठे हैं उनकी आत्मा कितनी शुद्ध होगी, और मानसिकता कितनी सही होगी, कभी आप किसी गार्डन में जाइएगा. फिर ध्यान से एक लड़के या लड़की को देखिएगा नहीं. किसी भी लड़की या लडके को एंट्री प्वाइंट से देखिएगा- उसकी खूबसूरती का पैमान उस इंसान लड़का या लड़की की निगाहें माप रही हैं जो हर शख्स को आते हुए देख रहा है. लेकिन उसके दिमाग में क्या चल रहा है वो सिर्फ वही जानता है. या उसके साथ के भी जानते होंगे .जिनसे अगर वो निसंकोच अपनी भावना व्यक्त करता है . 
वैसे लाइन मारना अब कॉमन है- सोशल एप ऐसी कई मिल जाएंगी. जिनसे आप इस तरह की ट्रैनिंग ले सकते है. सही मायने में कहें- आपके अंदर की उत्सुकता कभी न कही आपको यह करने पर अब मजबूर करेगी. लेकिन गुजारिश है- वक्त बरबाद न करें. जो पल आप उन लोगों के साथ बेस्ट करोगे, उनको अपने चहाने वालों के साथ गुजारो. आपकी विचारधारा का प्रवाह पहले नाकारात्मक होगा फिर सकारात्मक हो जाएगा. फिर जिस एजुकेश्न की हम बात कर रहे हैं उस विषय पर आपके साथ अगर कोई चर्चा भी करेगा. तब आपको संकोच नहीं होगा बल्कि सकारात्मक तरीके से बात करोगे. क्योंकि यह बात तब आम हो जाएगी. इसके लिए आपके दिमाग पर कोई बोझ नहीं होगा. और न ही किसी इंसान पर हवस का शैतान हावी होगा.
कहते हैं वक्त इंसान को बदल देता है, लेकिन हमारे समाज  में इस तरह ही एप ऐसी दीमक है जो इंसान को अंदर ही अंदर चाट रही हैं. जब आप इन एप को चलाने में मशरुफ होंगे. ऐसे में उस वक्त आपको कोई बुलाएगा. तब आप गुस्से के साथ पल भर के लिए भर जाते हो. जैसे आम तोर पर आप चैटिंग किसी खास व्यक्ति से कर रहे होते हैं, कोई आपको काम के लिए आवाज मारता है- तब आपको बीपी का लेवल चैक करना- हो सकता है मशीन फाड़ दे. अगर गलत लिखा है- कोई इस बात को झूठला दे- लिखना छोड़ दूंगा. लेकिन यह हमारा और आपके वर्तमान का सच है. इसलिए एप के चक्कर में कभी अपनी स्थिति न खराब करना की - एप्पल का जूस पीने की नौबत होस्पीटल में आ जाए.
अब हम सही बोलें हैं या गलत- ये हमारे लिए है. अच्छे ने अच्छा और बुरे ने बूरा जाना, जिसकी जितनी समझ- उतना पहचाना. #dimagkharabhai

गुरुवार, 4 अक्टूबर 2018

एक ट्रैंड- कलय़ुग नहीं घोर कलयुग

एक ट्रैंड-  कलय़ुग नहीं घोर कलयुग

मैने मर जाना, आज को दौर में जब व्हटसएप या टैक्स मैसेज पर ऐसी कोई बात लिखता है, तब हम या इमोजी सैंड कर देते हैं. या अगर हमारा दिली लगाव होगा, तब सामने वाले व्यक्ति को समझाएंगे. हालांकि ज्ञात होता है कि वर्तमान में हर कोई अकेलेपन का शिकार है, एक बात पहले ही लिख चुका हूं जितना ज्ञान पड़ा था.  - मौत से पहले 'मन की बात' - जिसमें कुछ तथ्य जुटाए थे. क्योंकि वैसे भी अब मौत मातम नहीं एक ट्रैंड सा बनता जा रहा है. समझदार लोग मौत के मुंह में खुद जा रहे हैं. नाम है आत्महत्या , पढेलिखे लोग उसे सुसाइड - कहते, लिखते और पढ़ते हैं.  क्योंकि नासमझ जिंदगी को अपने रंग से अपने ढंग से जीते हैं. जिनको जनता यही कहकी है कि इसका तो दिमाग खराब है.

अब इन समझदार लोगों की बात बताते हैं, जो हमारे एक दोस्त से मौत के शब्द लिखने पर शुरु हुई . हर दूसरे- चौथे दिन आपके कानों में भी बात पढ ही जाती होगी कि वहां उसने सुसाइड कर लिया. पिछले 3 की सालों से सुसाइड करने का एक  ट्रैंड- सा आ गया है, सुसाइड करने वाला वीडियो बनाता है. इतना ही नहीं फेसबुक,  इंस्टाग्राम या युट्यूव पर लाइव होकर आत्महत्या तो करता है. साथ ही पुलिस का काम भी आसान करता है. मरते-मरते पुलिस वालों का भला जरुर कर जाता है.
जब स्टडी की थी तब आसान से आसान तरीका सुसाइड करने का ढूंढा था, लेकिन यह तथ्य काफी रोचक था. अब कईयों की इच्छाएं कई किस्म की अधूरी रह जाती है. अब जब इच्छाएं अधूरी रह जाएंगी, तब इंसान की आत्म न नरक में जगह पाती है और स्वर्ग के द्वार आत्महत्या करके खुले होंगे. ये वहम दिमाग से निकाल ही दो. अब नरक में भी जगह नहीं, दूसरे ग्रह का पता नहीं. क्योंकि ऐसी शिक्षा वैसे भी हासिल नहीं की. फिर इस ग्लोब पर ही गोते खाओगे. भूत बनके 

अब भूत अच्छे होते हैं ये आजतक कहानियों में कभी पड़ा नहीं. अब इसमें भी मेल या फिलेम वर्जन है. भूत, प्रेत, डायन, चूडेल, चंडाल, बाकि हर स्थान के हिसाब से वहां की लोकल लैंगवेज के नाम अलग- अलग होते हैं. अभी आत्महत्या की ही बात नहीं,. जरुरी नहीं की आप आत्म हत्या करो तभी आपको यह उपलब्धी मिलगी, न - एक और रास्ता भी ऐसी उपलब्धि मिलने का.

अगर आपकी कोई इच्छा अधूरी रह जाती है. तब भी आप यह स्थान आसानी से पा सकते हो. लिहाजा आराम की मौत मरकर. क्योंकि कईयों को प्यार नहीं मिलता. कईयों को आराम नहीं मिलता तो कईयों को फरमान नहीं मिलता. क्योंकि जब इच्छाओं की पुर्ति नहीं होगी फिर इंसान मरके भी भटकता ही रहेगा.
अब यह भी सयापा है. जितना जिए- वो भी शांति से नहीं और मरने के बाद भी शांति नहीं. फिर आत्मा को परमात्मा कहां से मिलेगा. नहीं घर से आसपास- और दोस्तों के इर्द- गिर्द भटकते रहोगे. तब आएगा कलयुग की जगह घोर कलयुग. क्योंकि इंसान की इच्छा पूरी नहीं होगी. इंसानों से कहीं ज्यादा प्रेत आत्माएं धरती पर रहेंगी. कहते हैं अभी सिर्फ रात को आती हैं अब दिन में भी आया करेंगी.

अब ऐसे कलयुग हमारे जीते जी होगा तो क्या अच्छा लगेगा. इसलिए मरो तो शान से मरो, ताकि फिर इस धरती पर आकर मान और सम्मान दोबारा न बना पड़े. जिनता बना हो उसे ही याद करके लोग जिंदा रहें. कोई इच्छा अधूरी न छोड़ो, खुद को इतना काबिल बनाओ की इच्छा भी आपकी पूरी हो. नहीं तो कल को कलयुग कैसा होगा वो आपके इंतजार में है.