गुरुवार, 16 अगस्त 2018

21वीं सदी की आजाद देश में गुलाम जवान गजल ?

बधाई हो देश 72 स्वतंत्रता दिवस मना चूका है. क्रम यूं ही बढ़ता जाएगा. खुशी जीतनी हमें है उतनी शायद आने वाली पीढ़ी को नहीं होगी. इसमें कोई दोराय नहीं . वैसे भी 21वीं सदी अब जवां हो गई है. 2018 चला हुआ है. ठीक वैसे ही जैसे लड़की की उम्र 18 साल की हो जाए . तब चिंता होती है कि इसे देखकर कहीं पड़ोसी की नियत खराब न हो जाए. वैसे भी हमारे पडोसी की नियत कब खराब हो जाए और कब सीजफायर का उल्लंघन कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता है.

अब 21वीं सदी जवां है और कानून के मुताबिक 18 साल की भी हो चूकी है. अब शादी की बातें  करना जरुरी है. वैसे भी स्वतंत्र देश के वासी है लेकिन 18 साल बाद भी हक नहीं कि बेटी कोई फैसला ले सके. चलिए जाने दीजिए हमें क्या- हरकोई लिखता है, बोलता है लेकिन समाज सुधरेगा थोड़ी, चलो एेसे तैसे लड़की ने फैसले को लेकर परिवार को मना लिया . लेकिन रिश्तेदार वो तो ऐसे एंट्री मारते हैं जैसे - क्रिकेट मैच चल रहा हो और टीवी की आवाज सुनते ही पड़ोसी घर में एंट्री मार गया हो. अब भई फिर आपको पता है जब इंटरस्ट की बात हो तो सबको मजा आता है. और किसी के पंखो को कतरना हो तो इससे भला बेहतर वर्तमान मेें हो क्या सकता है.

लड़का 18 का हो या 21 का कोई फर्क नहीं. उसकी जिंदगी में कोई जर्क नहीं. लेकिन भई लड़की को पढाया-लिखाया और फिर घर पर बिठाया.अगर चार दिन कहीं बाहर चली गई तो बादलों के पीछे छिपे रहने वाले चांद को बारे में नहीं पूछेंगे. चाहे दिन में सूरज 10 दिन तक न दिखे उसके बारे में चर्चा शुरु हो जाती है. और वो भी गली-गली

और वैसा ही आज भी स्वतंत्र देश की गुलाम लड़कियों के साथ होता है. 10 को अगर हम आजाद भारत में देखते हैं तो उनमें से 8 भी कड़े संघर्ष और दृढ़ निश्चय की देन हैं.  और 2या 3 ही आजादी की आदरणीय होती है.

अब मसला लड़कियों का है लड़की को यह रोना -रोना चाहिए. भई ऐसा बिल्कुल नहीं है. अच्छा आपने कभी गज़ल सुनी है. उसकी पंक्तियों को पढ़ा है,  किस तरह से गालिब ने उसको संजोया होता है, वैसे ही एक गज़ल को हम भी जानते हैं, और उस जैसी कई और भी गज़ल को हम जानते होंगे जो हमारे जीवन में अलग-अलग किरदार में मिली होंगी या मिलेंगी.

गजल न तो 18 साल की है और न ही 21 दोनों ही भारतीय कानून के जो भी प्रावधान है उससे ज्यादा उम्र की है 22 साल उसकी उम्र है. लेकिन आज भी वो आजादी की लड़ाई लड़ रही है. वो लड़ाई जो उसने सपने देखे हैं. जिन सपनो के हकीकत करने के लिए वो जी तोड़ मेहनत कर रही है. लेकिन आज भी शायद शाम को परिवार और समाजिक परिवेश में चार बातों का शिकार होना पड़ता है.

सुबह घर से निकलते वक्त मां का संदेशा होता होगा- बस में आराम से उतरना -चढ़ना. भाई का दुलार और पिता के दिल में एक चिंता की आग. सारा दिन यही ख्याल घूमता होगा जब भी गजल का ख्याल आता होगा. और हमारी गजल अब 8-10 घंटे घर से बाहर दुनिया को समझ रही है. दुनिया से तालमेल बनाने की कौशिश कर ही है. वो अकेली लड़की नहीं है ऐसी लाखों है. जो अपनी आजादी के लिए दुनिया से तालमेल मिला रही हैं.

पर वो अभी भी कनफ्यूज हैं वो आंटी जो सुबह रास्ते में मिले हैं. उनको  चिंता कैसी- जैस पाकिस्तान में आज भी यही पता नहीं कि पाकिस्तान को आजादी 14 अगस्त को मिली या 15 अगस्त को.  ठीक वैसे ही आंटी भी जितने मुंह उतनी बातों वाला किरदार निभा रही हैं. और रहेंगी. अब अंकुश कैसे लगेगा ये चलता ही रहेगा. So Just Ignore & Finally FUCK OFF जिसको जो बोलना है बोले जाओ... अब आजादी तो ऐसे आजाद देश में मिलने से रही. जहां सपनो को साकार करने से पहले भी हाथ जोड़ो..
सपनो के द्वार पर भी हाथ जोड़ो और बाद में भी हाथ जोड़ते रहो. क्योंकि भई सृजन जो करना है. और तब तक दिमाग में कीड़ा जन्म ले लेता है कि दोस्त क्या कहेंगे अगर जॉब छोडी, जो बनना है नहीं बन पाई, एंड ऑल दीज काइंड ऑफ फकिंग थिंग्स.
अब परिवार की भी चिंता है. रिश्तेदार की भी, अब हो गया है गजल को सारे समाज का ठेका, और अब ठेकेदार बन गई है, और सपना 50 फीसदी और 50 फीसदी रहा समाज-बाकि की उलझने.. ऐसे में सपनों को हकीकत का  रुप देना है. आजाद देश में गुलाम गजल .

अब गुलामी की जंजीरों को तोड़ना है और खुद से नाता जोेड़ना है तो खुद से खुश रहना सीखो. टारगेट करो अपने फॉक्स में ताकि परिवार के साथ अपना विकास हो सके. नहीं तो जुमले बाजी की राजनीति आजादी के बाद से खूब चली आ रही है. कोई आपको जाने या न जाने खुद को जाने और एक के बाद एक मंजिल को तय करो.
फिर बनों 21वीं सदी में आजाद देश की आजाद गजल , जवान गजल




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