मंगलवार, 21 अगस्त 2018

देश की राजनीति भी क्या रंग लाई है


देश की राजनीति भी क्या रंग लाई है
सोच का श्रृंगार होकर एक मुद्दा लाई है
मत के लिए मति नहीं मारी गई है इनकी
विवाद की आग सदन तक पहुंचाई है

देश की राजनीति भी क्या रंग लाई है
सेकेंगे अभी और भी रोटियां
मोदी देखे हैं 2019 का ख्वाब
2022 में राहुल पहनाएंगे धोतियां

कश्मीर से कन्याकुमारी तक
जाया मत जाने दो शहीदों की शहादत को
अमर जवान की ज्योति देती दुहाई है
और पूछती है वो मां
राजनीति की आड़ में अपना नाम चमकाने वालों
कौन-सी चक्की की रोटी आज खाई है

देश की राजनीति भी क्या रंग लाई है
गला भी सूखता नहीं, थकान भी होती नहीं
राजनीतिक दल ने ही दलदल बना दिया है देश को
क्यों एकमत होकर हल निकलता नहीं

देश की राजनीति भी क्या रंग लाई है
शर्म अब आती नहीं होगी, शराफत जो बेच दी है
हैं जो चंद देश के खातिर जीने वाले राजनीति में
उन्हें भी 99 पर मात सियासत ने दे दी है

देश की राजनीति भी क्या रंग लाई है
देश की राजनीति भी क्या रंग लाई है
सोच का श्रृंगार होकर एक मुद्दा लाई है

सोमवार, 20 अगस्त 2018

लिखत का पता महखाने में जाना, इज्जत का पता पजामे से जाना

लिखत का पता महखाने में जाना
इज्जत का पता पजामे से जाना
क्यों दोष देना किसी की सोच को
खुद को भी हमने अनजाने में जाना

बढ़ा ही उल्टा है कलेश जाम का
पतलून जो पहनी उसकी शान का
फिर बदनाम होंगे तब क्या हुआ
अकेली रहती है खुदगर्जी
जैसे नाता बूंद और रेगिस्तान का

अब नशा ही जिंदगी का कर लिया
लास्टिक का पजामा भी परे कर दिया
चंद अल्फाज मिल जाते हैं आसमान में
तभी चांद ने चांदनी के लिए जहान कर दिया

उतर जाती है बड़े-बड़ों की
अगर नाडा अधर में अटक गया
फिर जो मर्जी तरकीब लगाओ
मैदान सूखा कमबख्त जिस्म भीग जाएगा

अब अलफाज उल्टा कहा नहीं जनाब
उल्टा जरुर सही सुनील जो है एक ख्वाब
तरकीब निकालने की जुर्रत न करें
समुद्र से मत पुछना लहरों का हिसाब

रविवार, 19 अगस्त 2018

कभी मशरुफियत से बैठेंगे, मशरुफ होके गलबात करेंगे

कभी मशरुफियत से बैठेंगे
मशरुफ होके गलबात करेंगे
आप अपनी कहें
हमारे जज्बात फिर गले तक रहेंगे
कभी मशरुफियत से बैठेंगे
मशरुफ होके गलबात करेंगे

यूं होती है बेशक बहुत बातें
कुछ अजीब सी पंक्तियां
दिल में कुछ, दिमाग में कुछ
और सुनाओ...
वाली चेटिंग पर बातें
जी भर कर बात करने का मन
बेमन भी बात करने वाला तन
वक्त निकाल के मिलेंगे सही
कभी मशरुफियत से बैठेंगे
मशरुफ होके गलबात करेंगे
मशरुफ है हरकोई जिंदगी में
फिर भी अकेलेपन की बात कहेंगे
किसे कहें अपना - चलो कह दिया
अरसे बाद दोगलेपन वाला साथ कहेंगे
आइने के सामने खड़े होकर देखा अपनापन
पटल पर दिखा अपना ही अक्ष, दूर एक तन
रुह के रथ पर सवार एक मनमौजी सा मन
कहता दिखा फिर सुनील खुदही से
कभी मशरुफियत से बैठेंगे
मशरुफ होके गलबात करेंगे

शनिवार, 18 अगस्त 2018

हम नहीं सुधरेंगे- नेता विरोधी हैं विरोध में गुणगान करते रहेंगे

हम नहीं सुधरेंगे- नेता विरोधी हैं विरोध में गुणगान करते रहेंगे

ਨੇਤਾ ਵਿਰੋਧੀ ਹੋ ਤਾਂ ਕਿ ਵਿਰੋਧ ਚ ਹੀ ਬੋਲੋਗੇ - पंजाबी में इसलिए लिखा ताकि पंजाब के उन नेताओं को समझ में आए आज सिद्धू के हक में नहीं विरोध में स्वर उंचे किए हुए है. वो भी इसलिए की वो पाकिस्तान गए इमरान खां के प्रधानमंत्री पद की शपथ के समागम में शरीक होने. इसी बीच दौरे के शुरु होने से दौरे के खत्म होने तक कुछेक नेता सिद्धू के खिलाफ नजर आए यहां तक की गोदी मीडिया भी इसमें कोई मसाला लगाने से पीछे नहीं रही. सबने सिद्धू की एक-एक तस्वीर को ऐसे दिखाया हो जैसे दोबारा जनाब इन्हें हाथ आने का मौका नहीं देंगे,
लेकिन गुरु तो दौरा शुरु होने से पहले ही कह चूके थे कि कहने वाले तो कहते रहेंगे और  वो पाकिस्तान दोस्ती के नाते जा रहे हैं. हालांकि पाकिस्तानी मीडिया को भी संबोधित करते हुए उन्होंने यही कहा कि यहां वो राजनीतिक संबंधों के चलते नहीं आए हैं. चलिए सिद्धू साहब का दौरा तो हो गया और उनके कलेजे भी ठंड पड़ गई जिन्होेने दौरा का विरोध किया प्रदर्शन किया यहां तक की शिवसेना ने नवजोत सिंह सिद्ध का पुतला भी जलाया.
अब लेख में कहेंगे कि सिद्ध होता है कि के पक्ष में लिख रहे हैं, अरे जनाब सदन में कभी हमारे और से चुने हुए नुमाइंदे एक नहीं. बाहर हम लोग एक नहीं. किताबों में खूब लिखा जाता है एकता में बल , अब कोई हल निकाल रहा है एकता और प्यार का तो उसके भी उंगली किए जाओ. अगर उंगली करने पर भी कम रह जाए तो मसला गर्म और तीखी मिर्ची लगा कर पेश करते हैं. अब कर लो व्यापार और पड़ोसी से प्यार , पड़ोसी के प्रति अपनी नियत और नीति कितनी साफ है ये तो कर नहीं पाते फिर कहोगे पड़ोसी ने सिर पर पत्थर मार दिया.

वैसे अब सब प्रत्यक्ष है -
खड़ा कर दो चाहे सर्वोच्च न्यायालय के कटघरे में
उंगुलियों की पंखुड़ियो पर रहता है हुक्मरानो के बयानों का हिसाब



#ImranKhan
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गुरुवार, 16 अगस्त 2018

वरिष्ठ पत्रकार प्रसून बाजपेयी ढूंढ रहे है नौकरी या दिला रहे हैं नौकरी !

वरिष्ठ पत्रकार प्रसून बाजपेयी ढूंढ रहे है नौकरी या दिला रहे हैं नौकरी !

 होकर स्वतंत्र मैने कब चाहा है कर लूँ सब को गुलाम ?
मैंने तो सदा सिखाया है करना अपने मन को ग़ुलाम ।
 गोपाल-राम के नामों पर कब मैंने अत्याचार किया?
कब दुनिया को हिन्दु करने घर घर में नरसंहार किया?
-अटल बिहारी वाजपेयी ( हिन्दु तन-मन )

कविता के साथ ये पंक्तियाँ किसने कहाँ लिखीं ज्यादातर पत्रकार बंधु जानते ही होंगे। या शायद अब नज़र पढ़ जाए। वैसे बुधवार रात से वीरवार शाम तक हमे लगा की हर राज्य में सबका प्राइम टाइम अब या डिवेट शो अटल जी की जीवनी पर ही होंगे लेकिन सोच को मात मिल ही गई. लेकिन मुद्दा मिल गया और फिर क्या चर्चा शुरू - अटल की टककर का नेता क्या भाजपा के पास है। जमकर इसपर भी सियासत के तीर-कमान चलाए गए. टीवी शो में बेशक नहीं लेकिन उसके बाहर जरूर, अब सियासत हुई तब नज़र पुण्या प्रसून बाजपेयी जी की पोस्ट फिर लगा की अब प्रसून जी नौकरी ढूंढ रहे है या रोजगार समाचार ज्वाइन कर लिया है। लगा कुछ ऐसा है क्यूंकि उनके द्वारा जो हाल ही में पोस्ट ज्वाइन की गई हैं। उनको देखकर यही लगता है। केंद्र सरकार की पोल ढोल की थाप के बिना खोलने वाले पुण्य प्रसून वाजपेयी कहाँ है , अभी कुछ खबर नहीं। स्क्रीन पर हर किसी को इंतज़ार रहता है. ग्रामीण स्तर पर अब अगर रविश कुमार भी किसी दिन टीवी पर न दिखे तो सुबह को गांव की बस स्टैंड पर बनी दुकान में यही चर्चा होती है. भाई साहब रात रविश कुमार नहीं दिखे, जाहिर है की अब गांव के उम्र दराज़ लोगों को भी अब यही चिंता रहती है की कहीं रविश कुमार का पता न कट हो जाए। लेकिन हाँ अब प्रसून साहब की पोस्ट से यही ब्यान होता है कि या तो वो नौकरी ढूंढ रहे हैं या फिर रोजगार समाचार ज्वाइन किए हुए है. -
 बाजपेयी जी के ट्वीट
सारा ख़र्च राजनीतिक सत्ता पर.. ख़ाली पदों तक पर भर्ती नहीं..? सिस्टम लचर होगा ही

सेन्ट्रल यूनिवर्सिटी - 1219 पद रिक्त आईआईटी - 2669 पद रिक्त एनआईटी - 1507 पद रिक्त आईपीएस/आईएएस- 2434 पद रिक्त जारी...पुलिस -4,43,524 रिक्त पद सेना/अर्धसैनिक बल - 65,699 रिक्त पद सरकारी शिक्षक—10,27,413 रिक्त पद ग्रामिण भारत में डॉ./नर्स-72,150पद रिक्त पोस्ट आफिस - 49,349 पद रिक्त बैक - 16,560 पद रिक्त जारी....

 सही मायने में प्रसून जी के ये ट्वीट उन पर कोई टिप्पणी नहीं है , लेकिन जो गोदी मिडिया हो रही है उससे लग रहा है कि आने वाले वक्त में इस तरह मिडिया कर्मी भी राजनीती की भेंट चढ़ेंगे। और इस तरह की टिप्पणियां की जाया करेंगे। वैसे भी हमे नहीं लगता की वर्तमान में प्रसून जी जैसे स्वतंत्र पत्रकार जो बोल सकें गिने चुने ही होंगे। लेकिन देश के कुछ युवाओं को उनके ट्वीट का फल मिलेगा और कुछेक यहाँ भी सिफारश पहुंचेंगे। जो आए होंगे अपने किसी पूजनीय के क़दमों पर चंद कागज के वो टुकड़े रखकर जिनके बल के आगे प्रसून जी कमजोर हुए और आज भी नौकरी ढूंढ रहे हैं , युवाओं के लिए की सरकार ने जो रोजगार देने का वादा किया वो निभाए तो सही। धन्यवाद प्रसून सर युवा पत्रकार सुनील के हिमाचली

21वीं सदी की आजाद देश में गुलाम जवान गजल ?

बधाई हो देश 72 स्वतंत्रता दिवस मना चूका है. क्रम यूं ही बढ़ता जाएगा. खुशी जीतनी हमें है उतनी शायद आने वाली पीढ़ी को नहीं होगी. इसमें कोई दोराय नहीं . वैसे भी 21वीं सदी अब जवां हो गई है. 2018 चला हुआ है. ठीक वैसे ही जैसे लड़की की उम्र 18 साल की हो जाए . तब चिंता होती है कि इसे देखकर कहीं पड़ोसी की नियत खराब न हो जाए. वैसे भी हमारे पडोसी की नियत कब खराब हो जाए और कब सीजफायर का उल्लंघन कर दे कुछ कहा नहीं जा सकता है.

अब 21वीं सदी जवां है और कानून के मुताबिक 18 साल की भी हो चूकी है. अब शादी की बातें  करना जरुरी है. वैसे भी स्वतंत्र देश के वासी है लेकिन 18 साल बाद भी हक नहीं कि बेटी कोई फैसला ले सके. चलिए जाने दीजिए हमें क्या- हरकोई लिखता है, बोलता है लेकिन समाज सुधरेगा थोड़ी, चलो एेसे तैसे लड़की ने फैसले को लेकर परिवार को मना लिया . लेकिन रिश्तेदार वो तो ऐसे एंट्री मारते हैं जैसे - क्रिकेट मैच चल रहा हो और टीवी की आवाज सुनते ही पड़ोसी घर में एंट्री मार गया हो. अब भई फिर आपको पता है जब इंटरस्ट की बात हो तो सबको मजा आता है. और किसी के पंखो को कतरना हो तो इससे भला बेहतर वर्तमान मेें हो क्या सकता है.

लड़का 18 का हो या 21 का कोई फर्क नहीं. उसकी जिंदगी में कोई जर्क नहीं. लेकिन भई लड़की को पढाया-लिखाया और फिर घर पर बिठाया.अगर चार दिन कहीं बाहर चली गई तो बादलों के पीछे छिपे रहने वाले चांद को बारे में नहीं पूछेंगे. चाहे दिन में सूरज 10 दिन तक न दिखे उसके बारे में चर्चा शुरु हो जाती है. और वो भी गली-गली

और वैसा ही आज भी स्वतंत्र देश की गुलाम लड़कियों के साथ होता है. 10 को अगर हम आजाद भारत में देखते हैं तो उनमें से 8 भी कड़े संघर्ष और दृढ़ निश्चय की देन हैं.  और 2या 3 ही आजादी की आदरणीय होती है.

अब मसला लड़कियों का है लड़की को यह रोना -रोना चाहिए. भई ऐसा बिल्कुल नहीं है. अच्छा आपने कभी गज़ल सुनी है. उसकी पंक्तियों को पढ़ा है,  किस तरह से गालिब ने उसको संजोया होता है, वैसे ही एक गज़ल को हम भी जानते हैं, और उस जैसी कई और भी गज़ल को हम जानते होंगे जो हमारे जीवन में अलग-अलग किरदार में मिली होंगी या मिलेंगी.

गजल न तो 18 साल की है और न ही 21 दोनों ही भारतीय कानून के जो भी प्रावधान है उससे ज्यादा उम्र की है 22 साल उसकी उम्र है. लेकिन आज भी वो आजादी की लड़ाई लड़ रही है. वो लड़ाई जो उसने सपने देखे हैं. जिन सपनो के हकीकत करने के लिए वो जी तोड़ मेहनत कर रही है. लेकिन आज भी शायद शाम को परिवार और समाजिक परिवेश में चार बातों का शिकार होना पड़ता है.

सुबह घर से निकलते वक्त मां का संदेशा होता होगा- बस में आराम से उतरना -चढ़ना. भाई का दुलार और पिता के दिल में एक चिंता की आग. सारा दिन यही ख्याल घूमता होगा जब भी गजल का ख्याल आता होगा. और हमारी गजल अब 8-10 घंटे घर से बाहर दुनिया को समझ रही है. दुनिया से तालमेल बनाने की कौशिश कर ही है. वो अकेली लड़की नहीं है ऐसी लाखों है. जो अपनी आजादी के लिए दुनिया से तालमेल मिला रही हैं.

पर वो अभी भी कनफ्यूज हैं वो आंटी जो सुबह रास्ते में मिले हैं. उनको  चिंता कैसी- जैस पाकिस्तान में आज भी यही पता नहीं कि पाकिस्तान को आजादी 14 अगस्त को मिली या 15 अगस्त को.  ठीक वैसे ही आंटी भी जितने मुंह उतनी बातों वाला किरदार निभा रही हैं. और रहेंगी. अब अंकुश कैसे लगेगा ये चलता ही रहेगा. So Just Ignore & Finally FUCK OFF जिसको जो बोलना है बोले जाओ... अब आजादी तो ऐसे आजाद देश में मिलने से रही. जहां सपनो को साकार करने से पहले भी हाथ जोड़ो..
सपनो के द्वार पर भी हाथ जोड़ो और बाद में भी हाथ जोड़ते रहो. क्योंकि भई सृजन जो करना है. और तब तक दिमाग में कीड़ा जन्म ले लेता है कि दोस्त क्या कहेंगे अगर जॉब छोडी, जो बनना है नहीं बन पाई, एंड ऑल दीज काइंड ऑफ फकिंग थिंग्स.
अब परिवार की भी चिंता है. रिश्तेदार की भी, अब हो गया है गजल को सारे समाज का ठेका, और अब ठेकेदार बन गई है, और सपना 50 फीसदी और 50 फीसदी रहा समाज-बाकि की उलझने.. ऐसे में सपनों को हकीकत का  रुप देना है. आजाद देश में गुलाम गजल .

अब गुलामी की जंजीरों को तोड़ना है और खुद से नाता जोेड़ना है तो खुद से खुश रहना सीखो. टारगेट करो अपने फॉक्स में ताकि परिवार के साथ अपना विकास हो सके. नहीं तो जुमले बाजी की राजनीति आजादी के बाद से खूब चली आ रही है. कोई आपको जाने या न जाने खुद को जाने और एक के बाद एक मंजिल को तय करो.
फिर बनों 21वीं सदी में आजाद देश की आजाद गजल , जवान गजल




वो अटल है, जो आज मौन है | #AtalBihariVajpayee #अटल_बिहारी_वाजपेयी | अटल बिहारी वाजपेयी

वो अटल है, जो आज मौन है
देश  फिर भी गूगल कर रहा
वो कौन है
वो अटल है, जो आज मौन है

चंद सांसे बाकि है अभी जिंदगी की
यम में भी दम नहीं अब
समझ गया है, जान गया
वो अटल है जो मौन है

सांस दर सांस खबर आ रही है
कहीं सच्ची, कहीं झूठी
की-बोर्ड से लिख
स्क्रीन पर फैलाई जा रही है

कहीं जिंदा इंसान को ही RIP
कहीं दुआओं की पंक्ति सजाई जा रही है
अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी
एक भाषण दे जाओ-
देश में गूंज दमदार आवाज की सुनाई जा रही है
आज हवा भी अलग ही धुन में गाए जा रही है

देर रात को चालाकी से चांद ने खुद देखा वो चेहरा
जिसे देखने के लिए सूरज के उजाले में
दुनिया आज गोते लगाए जा रही है
मोदी भी मायूस दिखे-
कुदरत करवट लेते हुए कुछ समझाए जा रही है

यहां बैठा सुनील समझ नहीं आ रहा
अलफाज वाक्य में हैं अटल
 जो रुह लिखाए जा रही है
फिर मौत आज आए या कल
बस- अंतिम सांसों में उलझन न आए
रुह जाकर प्रभु के चरणो से लिपट जाए
जिस्म ये मेरे गांव की माटी में मिल जाए

फिर साल में दो दफा ही तारीख पर पूछोगे
वो अब मौन नहीं, वो अटल कौन है
कुछ किस्से, कुछ बाते- किताबों में मिलेंगी
अटल को बताएगा गुगल कौन है....
जो....... 
अटल बिहारी वाजपेयी
 #AtalBihariVajpayee
#अटल_बिहारी_वाजपेयी 





मंगलवार, 14 अगस्त 2018

जिंदादिल इंसान भी डरता है सपने में दिखी उस रुह से

वो रात काफी अजीब थी, सुन सी हो गई थी रुह जब - खुली आंखों से भी देखा उसे , जो दिखी थी बंद आंखों से , होश में आने के बाद भी भुला नहीं पाई ....

हुआ कुछ ऐसा ही था. पता तब चला जब एक दिन सहमे हुए पन का कारण पूछा.  पता नहीं था असल जिंदगी में इतने परिवक्व किरदार का इंसान भी रात के अंधेरे में चलता है. लेकिन पल भर के लिए सहम सा जाता है जब उसे उस पल की याद आती है. और फिर उसे तलाश होती है ख्यालों में उस धुंधले हुए चहरे की जो कभी उसने देखा था. जिसके बाद शायद आत तक वो सो नहीं पाया है चैन से.

जी हां, वो इंसान जिससे जब हम बात किया करते हैं काफी हंसाता है. काफी जिंदगी को रंगीन बनाता है.  बुहत अच्छा ही कह सकता हूं दोस्त है या नहीं लिखे जाने तक तय नहीं. लेकिन इंसानी रुह अच्छी है. एक अपनापन सा है. जो जिंदगी के पटल पर कम ही लोगों को समझ आता है.

कहना शायद सही रहेगा- दिल में, दिमाग में हजारों परेशानियां है उनके लेकिन जुबान से कभी जाहिर नहीं. बातों ही बातों में बात होती है यह तो आपको भी पता है और अब हमें भी समझ आ ही गया.

उस दिन सब सही था रीतिका ने जितना बताया. अंदाजन दिनचर्या भी आम सी ही थी. जो रोजना हुआ करती है. शाम को परिवार में मां-पिता के साथ थोड़ी सी गप्पें मारी. खाना खाया, घर का बाकि काम उस दिन कम किया .मां ने ही कर दिया तो खुद के हाथों में मंहदी नहीं लगी थी, हां आजकल फोन अगर हाथों में है तो महंदी लगने से कम भी नहीं. बस फिर क्या था-

रुख कर लिया अपने महल की और- मतलब अपने कमरे की तरफ, मखमल के बिस्तर से कम नहीं जहां बचपन से आराम फरमाते आएं है. क्योंकि वक्त के हिसाब से उस कमरे और चारपाई के साथ कई यादें जुड़ी हुई हैं, जो भुलाए नहीं भुलती- और कभी तो ऐसे याद आती हैं, जैसे उस वक्त में ही बैठी हूं. फिर मंद सा हंस  कर वर्तमान में-

उस दिन भी ऐसा ही चल रहा था. उंगलियां मोेबाइल की स्क्रीन और दिमाग और कहीं लीन, अब क्या किया जाए. चल रहा है तो चल रहा. खुश थी. लेकिन भविष्य  का किसे पता था . पल भर में नींद आ गई. नींद में एक लड़की दिखाई दी . दरवाजे के बाहर खड़ी है और सफेद वस्त्र  धारण किए हुए है.  पल भर में नींद खुल गई . जैसे ही नींद खुली जो चेहरा नींद में दिखा था बंद आंखों से खुली आंखो से भी वही नजर आ रहा था. न आओ देखा-न ताओ. मैं उठी ऐसे तैसे हिम्मत गठजोड़ कर और सीधे  मां-पापा के कमरे के बाहर और जोर  उनको आवाज पर आवाज .

जैसे ही दरवाजा खुला- नो एंट्री जोन में जैसे कोई गाड़ी खुसाता हैः  वैसे सीधे अंदर, जो भी था .. पूछा भी गया कि क्या हुआ, जवाब था बस - सुबह बताउंगी. वो रात और आज तक जो भी रात आती है अगर गलती से भी ध्यान उस और चला जाए . खुदा कमस नींद नहीं आती ,

अब रीतिका को सच्ची कभी कभी नींद आने पर नींद नहीं आती. आज भी कमरे की बत्ती जलाकर सोती है. लेकिन जहन में जो डर भरा पड़ा है उसे निकालना तो होगा. उम्मीद है वक्त के हिसाब से डर घायब और हौंसला भर जाए, और जब भी जुबान पर जिक्र आए बस एक मीठी सी याद और खुशी देकर जाए.