आज फिर चल दूंगा अपनी ही धुन में
एक नए मेह्खाने की और
सकूं तो आएगा ज्ञात नहीं इस रूह को कब
वस कब्र में दबने से पहले
आशियाना बनाऊंगा अपने ही नाम का मै
एक नए मेह्खाने की और
सकूं तो आएगा ज्ञात नहीं इस रूह को कब
वस कब्र में दबने से पहले
आशियाना बनाऊंगा अपने ही नाम का मै
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