रोज़गार का गम प्यार के गम से भी लाख बढ़ा
सुनील के. हिमाचली
आजकल जहाँ राजनीतक नुमाईंदों द्वारा जब कभी भी जनसभा को सम्भोधित किया जाता है ,युवाओं को रोज़गार देने का वादा भी जरूर किया जाता है। और इस बात को हम झुठला नहीं सकते की कश्मे वादे तो सिर्फ प्यार में किए जाते थे लेकिन वर्त्तमान में जो वादे युवाओं से रोज़गार को लेकर किए जाते हैं वे सब अब झूठे लगने लगे है। और इसीलिए आज युवाओं को रोज़गार का गम प्यार के गम से लाख बढ़ा लगता है.और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है हाल ही में -उत्तर प्रदेश विधानसभा सचिवालय में चपरासियों के 368 पदों पर नियुक्ति के लिए लगभग 23 लाख आवेदन प्राप्त हुए । हर पद के लिए 6 हजार से अधिक आवेदन मिले । इन अभ्यर्थियों में 255 डाक्टरेट (डॉक्टर/पीएचडी डिग्री धारक) हैं।
चपड़ासी की नौकरी के लिए लाइन में लगे डॉक्टर, इंजीनियर-एमबीए डिग्री होल्डर
सचिवालय में चपरासी पद पर नियुक्ति की न्यूनतम योग्यता पांचवी पास होना है। मगर आवेदकों में 255 पीएचडी उपाधिधारकों के अलावा, डेढ लाख से ऊपर स्नातक और लगभग 25 हजार एमए, एमएसी हैं। प्रदेश सरकार की तरफ से हाल ही में सचिवालय में 5200-20200 रुपये के वेतनमान में चपरासियों के 368 पदों पर नियुक्तियों के लिए आवेदन मांगे गए थे। आयु सीमा 18 से 40 वर्ष और आवेदन करने की अंतिम तिथि 14 सितंबर तय थी।
सचिवालय प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि जब हमने आवेदनों को वर्गीकृत करना शुरू किया तो हमारी आंखे खुली की खुली रह गईं। 255 आवेदक पीएचडी है, डेढ़ लाख से अधिक स्नातक और लगभग 25 हजार एमए, एमएससी डिग्री धारक हैं, इनमें इंजीनियर और एमबीए भी हैं। अधिकारी ने बताया कि पहले चयन साक्षात्कार के माध्यम से होना था। मगर इतनी बडी संख्या में आए आवेदनों को देखते हुए साक्षात्कार के जरिए चयन में काफी दिन लग जाएंगे।
उन्होंने बताया कि अभ्यर्थियों की भारी संख्या को देखते हुए चयन प्रक्रिया में बदलाव पर विचार हो रहा है और अब छटनी के लिए लिखित परीक्षा भी कराई जाएगी। चपरासियों के पदों पर पीएचडी उपाधिधारी अभ्यर्थियों समेत इतनी बड़ी संख्या में आए आवेदनों से विपक्षी दलों को सरकार पर हमला बोलने का एक और मौका दे दिया है।
प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष लक्ष्मीकांत बाजपेयी ने कहा कि समाजवादी पार्टी सरकार लोगों को रोजगार देने के वादे को पूरा करने में विफल रही है, जबकि तमाम विभागों में बड़ी संख्या में पद खाली पड़े हैं। कांग्रेस ने एक बयान जारी करके कहा कि यह आंकड़े सपा सरकार के विकास के दावे की पोल खोलने वाले हैं। रोजगार देने के उसके वादों का क्या हुआ। चपरासी पद पर इतने पढ़े लिखे युवकों का आवेदन यह बताने के लिए पर्याप्त है कि बेरोजगारी का आलम क्या है।
45 फीसदी से कम अंक पाने वाले नहीं बन सकेंगे टीचर: HC
वहीँ अब इलाहाबाद हाईकोर्ट के दो जजों की खंडपीठ ने नेशनल काउंसिल फॉर टीचर एजुकेशन (एनसीटीई) के उस प्रावधान को वैध और सही ठहराया है, जिसमें कहा गया है कि प्राथमिक विद्यालयों में सहायक अध्यापकों के 72,825 पदों को भरने के लिए आरक्षित वर्ग के उन अभ्यर्थियों को न लिया जाए, जिनके प्राप्तांक ग्रेजुएशन में 45 फीसदी से कम हैं।
कोर्ट ने कहा है कि एनसीटीई द्वारा इस प्रकार का प्रतिबंध लगाना सही है, क्योंकि प्राथमिक विद्यालयों में अच्छे अध्यापकों कि नियुक्ति हो, इसके लिए इस प्रकार का प्रतिबंध जरूरी है। एनसीटीई ने 29 जुलाई 2011 को अधिसूचना जारी कर कहा कि प्राथमिक विद्यालयों में टीचर्स कि नियुक्ति के लिए उन्हीं को योग्य माना जाए, जिनके ग्रेजुएशन के प्राप्तांक यदि वह अनारक्षित वर्ग के है तो 50 फीसदी और आरक्षित वर्ग के हैं तो 45 फीसदी हो।
याचिकाएं हुई खारिज
हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस यशवंत वर्मा ने आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों संतोष कुमार व कई अन्य द्वारा दायर याचिकाओं को खारिज कर दी, जिसमें एनसीटीई द्वारा 45 फीसदी अंक की अनिवार्यता को यह कहते हुए चुनौती दी गई थी कि यह नियम गैरकानूनी व असंवैधानिक है। वकील अभिषेक श्रीवास्तव का कहना था कि प्रदेश सरकार ने भी एनसीटीई के इस प्रावधान के अनुसार शासनादेश जारी कर ग्रेजुएशन में 45 व 50 फीसदी अंक पाने को अनिवार्य कर दिया है, जो गलत है।
याचिकाओं में एनसीटीई कि अधिसूचना के अलावा प्रदेश सरकार के शासनादेश को भी चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता के वकील का तर्क था कि जब सहायक अध्यापक के पदों पर नियुक्ति का आधार टीईटी में प्राप्त अंक ही है तो ग्रेजुएशन में प्राप्त अंक को आधार बनाकर सहायक अध्यापक पदों पर नियुक्ति से वंचित करना गलत है। वकील ने अपने तर्क के समर्थन में उत्तराखंड हाईकोर्ट के फैसले को भी आधार बनाया था, जिसमें एनसीटीई के इस प्रावधान को गलत बताया गया है।
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