सोमवार, 26 नवंबर 2018

कैसी ये मनोवृति- मंदिर, मस्जिद निर्माण की नीति, बिना पत्थर के नींव पत्थर



हम जैसे सोचते हैं हमारा आचार - व्यवहार भी वैसा ही होता है, कभी रात के अंधेरे में किसी वस्तु को एक टक देखें तब उसे भी अपने मनोविचार जैसा आकार दे सकते हैं, दिन में करना संभव नहीं. क्योंकि दिन में शायद ही कोई होगा जिसे डर लगता हो. पर सत्य है डरता वो है जो गलत नीति या नीयत से काम करता है. सब हमारी मनोवृति पर तय है, अब यही पेंच फंस गया है कि 2019 में मोदी की सरकार नहीं बनेगी. भाजपा को लोकसभा में कम सीटें मिलेंगे, ये विचार अब शायद कुछेक भाजपा के नुमाइंदो के दिल में भी आने लगा होगा, भाजपा से गठबंधन किए हुए दलों को भी सताने लगा होगा. लेकिन अभी सुर्खियां आईं नहीं कहीं कांग्रेस का हाथ किसी दल को छोड़ कर किसी बड़े नेता ने थाम लिया है.
चलिए अभी 5 महीने बाकि है जो पांच सालों में नहीं हुआ केंद्र की भाजपा सरकार उसे पूरा करने में जुटी हुई है, और विरोधी दलों का काम ही है टांग खींचना वो भी बखूबी अपनी भूमिका निभा रहे हैं. कश्मीर से कन्याकुमारी तक जारी सियासत का सिलसिला अब सीमा लांघ गया है और पाकिस्तान में श्रीकरतारपुर कोरिडोर के नींव पत्थर रखने की तैयारी हो रही है. पाकिस्तान प्रधानमंत्री इमरान खान की तरफ से 28 नवंबर को नींव पत्थर रखने की तैयारी है, और भारत में भी ऐसा ही मुहुर्त 26 नंवबर को तय हुआ था. पंजाब सीएम और भारत के उप राष्ट्रपति करतारपुर कोरिडोर का नींव पत्थर रखी.
अब भाजपा सरकार ने करतारपुर कोरिडोर की शुरुआत कर दी. पाकिस्तान की तरफ से भी मसला सुलझता हुआ नजर आ रहा है. लेकिन घर के अंदर का मसला भाजपा कैसे सुलझाना भूल गई और कब सुलझाएगी, राम मंदिर और बाबरी मस्जिद निर्माण कब होगा. क्योंकि इतनी सी बात हमारी समझ में तो आ रही है कि जनता की भावनाओं के आधार पर एकतरफा फैसला किसी भी सरकार के लिए हानिकाकरक हो सकता है. अब सरकार की सिरत नहीं सुरत भी बिगड़ने वाली स्थिति में आ जाएगी अगर एकतरफा फैसला किया तो हानि हो सकती है, वैसे भी अब शायद भाजपा सरकार कारगुजारी अमली जामे में ऐसी पहनाई जा रही है कि सूरत अच्छी लगती है लेकिन सिरत नहीं भाती.
वैसे भी केंद्र सरकार का करतारपुर कोरिडोर को लेकर किया गया समागम इतिहास में पहला ऐसा शिलान्यास होगा जो बिना शिला के हुआ है. यानि कैबिनेट मंत्री सुखजिंदर सिंह रंधावा ने शिलान्यास से पहले ही शिलापट को उठवा दिया था. कहने का भाव बिना पत्थर के नींव पत्थर रखा गय़ा.
चलिए अब इतना तय है कि एसजीपीसी का भविष्य अंतराष्ट्रीय नजर आ रहा है. क्योंकि पाकिस्तान की तरफ से कोरिडोर के समागम पर भारत से एसजीपीसी के जत्थेदारों को भी बुलावा भेजा गया है. अगर दोनों देशों में बातचीत सही रहती है तब अंतराष्ट्रीय एसजीपीसी बनाने पर भी चर्चा हो सकती है. और यह बात मुकाम भी हासिल कर सकती है.
पर जग घुमया थारे जैसा न कोई- भाजपा पर बात सही बैठती है क्योंकि मंदिर निर्माण की बात जारी है. देखते हैं अब पांच राज्यों में किसके हक में जनता अभारी है. और 5 महीने में 5 साल की से गोते लगा रही नईया क्या किनारे पर पहुंच पानी है. राहुल गांधी में मझदार में धारा बदल कर, रुख की हवा मनमोहन की तरफ धकेल लानी है.



गुरुवार, 22 नवंबर 2018

2019 चुनाव: धर्म के आधार पर राज की नीति


सत्ता के लिए सरकार कुछ भी करेंगे, और वोटबैंक को बढ़ाने के लिए अपनी जेब से पैसा खर्च हो या किसी और की जेब से फर्क जनता की ही पढ़ेगा. ये बात छुपी किसी से नहीं लेकिन कबूल भी कोई नहीं करता. सच में हमारे समाज की कैसी बिडंबना है, अब जो खर्चा सरकार की और से किए जाता है  वो टैक्स या किसी न किसी रुप में बसूल कर ही लिया जाता है. इसमें कोई हानि भी नहीं क्योंकि समाज के विकास के लिए हम सब भागीदार हैं, हमारा पैसा जो भी वसूला जाता है हमारे और समाज की भलाई के कामों में लगया जाता है, लेकिन ये बात भी सही है कि - बाप बड़ा भाई न भईया सबसे बढ़ा रुपईया- चलिए अब पैसे के बिना वर्तमान में कोई काम वैसे होता नहीं लेकिन ये भी झूठ है किसी को दिलासा देना हो या कोई सपना दिखाना हो तब उसके लिए पैसों की जरुरत नहीं पड़ती, आप बोली जाओ और सामने वाला अगर समझदार होगा तब वो लपेटता जाएगा.
बहरहाल यही अब भारत की रातनीति में चरम पर है वर्तमान में यही कह सकता हूं. यानि सत्ता हासिल करने के लिए सियासत दान कुछ भी कहेंगे. और हम सुनेंगे
चलो कोई बात नहीं खूबसूरत रन और बड़ी पंड दोनों को संभालना काफी मुश्किल है,  हर किसी की नजर इसपर रहती है और हर किसी को आसानी से याद भी. हां- अब यही देश के राजनीतिक गलियारे में हो रहा है. केंद्र की भाजपा सरकार का कभी मैनिफैस्टो उठा कर देखिए- पंड काफी बढ़ी थी और तभी आज शायद जनता को सब याद है, भई पब्लिक है अब सब जानती है. लेकिन ये मानती कैसे है ये हमारे सियासतदान काफी गहराई से जानते हैं. इसमें कोई दोराय नहीं कि जनसेवक जहन में यही सोचते होंगे कि सारा दिन तो जनता के बीच रहते हैं, जनता की रग-रग से बाकिफ हैं, और शायद इसलिए अब रग को पकड़ कर 2019 को लिए राजनीतिक दल पैमाना सैट कर रहे हैं.

हर पार्टी हर किस्म का मशाला डाल रही है ताकि 2019 के राजभोग में कोई कमी न रहे. राजनीति के अखाड़े में जब भी जोर की बात चलती है तब मूल कांग्रेस और भाजपा पर आकर खड़ा हो जाता है, हां भारत के कुछेक राज्यों में क्षेत्रिय पार्टियों का दबदबा है, पर वर्तमान में जिन राज्यों में कांग्रेस या भाजपा की सरकार है उनके मैनिफैस्टो की लाइने जनता के दरबार तक नहीं पहुंची. यानि जो कभी नेताओं की जुवान से सुनी थी वो सेवाएं प्रदान अभी भी हो नहीं सकी कुछेक पर काम चल रहा है, कुछेक हुई है लेकिन अजाम अभी पहुंची नहीं, और कुछेक बातों पर काम आने वाले दिनों में शुरु हो ही जाएगा,. चलिए कोई न - कभी कभी खुद का काम बीच में छोड़ कर भी उठना पड़ता है, इतना ही नहीं कभी-कभी रीज से किया काम भी राज बनकर रह जाता है. पर अब राजनीति में कुछ राज नहीं आज नहीं तो कल आंकड़ों के साथ हिसाब हर बात का हो जाता है. लेकिन धर्म के आधार पर 2019 का चुनाव अधर में लटका हुआ नजर सा आ रहा है. राम जन्म भूमि पर राम मंदिर निर्माण कब होगा तय नहीं, भाजपा फिर से इसी रेखा पर चल रही है. कि मंजिल शायद अब राम मंदिर निर्माण के नाम पर मिल जाए. हम नहीं कह रहे वर्तमान की राजनीति का परिवेश यही दिखा रहा है.  दुनिया के सबसे पुराने धर्म में धार्मिक विचारों के आधार पर राजनीति का खेल लेकिन अब यही खेल सिख धर्म में भी दिखने लग पड़ा है. श्री करतारपुर साहिब कोरिडोर को लेकर अब राजनीति इसपर भी चरम पर होने लगी थी, कुछ दिन पहले तक सियासी हुक्मरान नवजोत सिंह सिद्धू को खरी-खरी सुना रहे थे, लेकिन अब जब केंद्रीय कैबिनेट ने फैसला सुनाया है तो काम की तारीफ हो रही है, लेकिन कुछ दिन बाद अब इस नाम से सियासी दलों में डिबेट भी शुरु हो जाएगी. क्योंकि राजनीतिक दल अब सिद्धू के हाथ और भाजपा के साथ की बात कहेंगे, कि भई हमने इसे अंजाम दिया, पर इसी बीच अकाली दल कोरिडोर को लेकर विसात बिछाने की बात कहेगा, इसमें कोई दोराय नहीं, बात दिल्ली में दिख ही चुकी है, जब केंद्र के फैसले के बाद अकाली प्रधान और केंद्रीय मंत्री ने प्रैस कान्फ्रैंस की. हिंद के चक्कर में लेकिन इस दौरान भाषण में बादल साहब की जुवान फिर गोते खा गई, लेकिन 2019 के में गोते लगा रहे राजनीतिक दलों में से अब किसकी नैया जनता पार लगाती है यह सब धर्मों से उपर इंसानियत के धर्म पर निर्भर करता है. चलिए देखते हैं देश की राजनीति किस दिशा में चलती है और क्या नया रंग दिखाती है.

सोमवार, 19 नवंबर 2018

Hello : नमस्कार, कितने दिन पहले बोला था, शायद हमें याद भी नहीं ?



Are u ashamed to say greetings #Namaste 

नमस्कार, कितने दिन पहले बोला था शायद हमें याद भी नहीं ? Hello _ Good Morning  या किसी और भाषा विस करने का शब्द अलग होगा, लेकिन सलीके में अब घूटन सी देखी है. किसी को इतना संकोच क्यों, प्रत्यक्ष है लेकिन इस संकोच का प्रमाण नहीं, वैसे अब छोटों और बढ़ो को गुडमोर्निंग और हैलो के अलावा किसी शब्द का ज्ञान नहीं, हैलो के इंग्लिश में ट्रांसलेट करने के जरुरत नहीं, आप खुद भी कर सकते हो, ताकि व्यक्तिगत तौरे इसका मतलब समझ आए .
अच्छा एक बात ये भी है चैटिंग या फोन कॉल के अलावा हैलो हम बोलते ही नहीं, लेकिन अब हैलो के पीछे भी हर किसी का अपना एक हित छिपा हुआ. मेरा या आपका भी शायद, और सच यही है कि हम जिंदगी की मशरुफियत में अपने साथ ही मजाक कर रहे हैं. अपने बंधू ( छोटा-बड़ा करीबी ) को विस तो कर रहे हैं. लेकिन बस काम के लिए, या फिर बोरियत को खत्म करने के लिए. क्योंकि हैलो तो हमने अपना लिया निंकोच बोल भी दिया, लेकिन इसके मतलब को हमने ताक पर ऱख दिया.
अब इस बात में भी कोई दोराय नहीं और न ही इसपर कोई पर्दा की हमें नमस्कार या नमस्कारम बोले कितना वक्त हो गया होगा. सच में ना- हैलो साधारण है, कभी कबार किसी से मिलने पर बोल ही देते हैं, लेकिन नमस्कार, प्रमाण, जैसे शब्दों को हमने शमसान में ही रख दिया है, बस चिता ही सेज सजाना बाकि है. अब चिंता नहीं चिंतन है कि हाथ जोड़ने पर भी हम अपने अंदर एक अजीब सी घुटन महसूस करते हैं.
ये घुटन कैसी, हाथ जोड़ कर देखिए तो सही, अजीब सा लगेगा, फालतू का ड्रामा ये भी नहीं कह सकते कि ये ड्रामा अब स्क्रीन पर सही लगता है क्योंकि कुछेक न्यूज एंकर या रीडर ही होंगे जो आदर सहित हाथ जोड़ कर कहते हैं  ' नमस्कार '
      No Indian has ever explained the meaning of #NAMASTE in such a beautiful way !!

'नम:' धातु से बना है 'नमस्कार'। नम: का अर्थ है नमन करना या झुकना। नमस्कार का मतलब पैर छूना नहीं होता। नमस्कार शब्द हिन्दी, गुजराती, मराठी, तमिल, बंगाली आदि वर्तमान में प्रचलित भाषाओं का शब्द नहीं है। यह हिन्दू धर्म की भाषा संस्कृत का शब्द है। संस्कृत से ही सभी भाषाओं का जन्म हुआ।
हिन्दू और भारतीय संस्कृति के अनुसार मंदिर में दर्शन करते समय या किसी सम्माननीय व्यक्ति से मिलने पर हमारे हाथ स्वत: ही नमस्कार मुद्रा में जुड़ जाते हैं। नमस्कार करते समय व्यक्ति क्या करें और क्या न करें इसके भी शास्त्रों में नियम हैं। नियम से ही समाज चलता है।

1 सामान्य नमस्कार : किसी से मिलते वक्त सामान्य तौर पर दोनों हाथों की हथेलियों को जोड़कर नमस्कार किया जाता है। प्रतिदिन हमसे कोई न कोई मिलता ही है, जो हमें नमस्कार करता है या हम उसे नमस्कार करते हैं।

2 पद नमस्कार : इस नमस्कार के अंतर्गत हम अपने परिवार और कुटुम्ब के बुजुर्गों, माता-पिता आदि के पैर छूकर नमस्कार करते हैं। परिवार के अलावा हम अपने गुरु और आध्यात्मिक ज्ञान से संपन्न व्यक्ति के पैर छूते हैं।

3  साष्टांग नमस्कार : यह नमस्कार सिर्फ मंदिर में ही किया जाता है। षड्रिपु, मन और बुद्धि, इन आठों अंगों से ईश्वर की शरण में जाना अर्थात साष्टांग नमन करना ही साष्टांग नमस्कार है।

नमस्कार के लाभ : अच्छी भावना और तरीके से किए गए नमस्कार का प्रथम लाभ यह है कि इससे मन में निर्मलता बढ़ती है। निर्मलता से सकारात्मकता का विकास होता है। अच्छे से नमस्कार करने से दूसरे के मन में आपके प्रति अच्छे भावों का विकास होता है।इस तरह नस्कार का आध्यात्मिक और व्यावहारिक दोनों ही तरह का लाभ मिलता है। इससे जहां दूसरों के प्रति मन में नम्रता बढ़ती है वहीं मंदिर में नमस्कार करने से व्यक्ति के भीतर शरणागत और कृतज्ञता के भाव का विकास होता है। इससे मन और मस्तिष्क शांत होता है और शीघ्र ही आध्यात्मिक सफलता मिलती है।

अब इतना ज्ञान हासिल करने के बाद भी हैलो में वो मजा नहीं शायद जो नमस्कार में है. 

#Namaste!!! Please be proud about it !!!!!! It’s a profound statement to greet someone !!! Please get educated

नमस्कार

शुक्रवार, 2 नवंबर 2018

चांद झोल न कर, प्यार में मखौल न कर

किसी को इच्छा है चांद छूने की 
किसी को चांद पाने की
किसी के लिए कोई चांद
किसी को इंतजार दिदार हो जाने की

गर्दिश- ए- चांद ठहरा कहां
दिल-ए-दिमाग अब पहरा कहां
चांद सी चमक किसे नहीं चाहिए
सूरज की दमक सा चेहरा वहां


उमड़-घुमड़ कर आते विचार
कब लगेगी नइया पार
लहरों में गोते खाता इज़हार
डूब ही जाएगा गहरा ये प्यार

पटल पर देखा है पानी के
दिखती है छवि चांद साथ चांदनी के
सूरत के बाद सीरत ही दिखी
अब क्या बदलने पन्ने ज़िंदगानी के

चल अब मोल न कर
वजन का क्या झोल न कर
तरुप का पत्ता नहीं हूं
चंद सांसे हैं बाकि मखौल न कर

जो कहा, सुना है
चांदनी के बीच एक तारा चुना है
कल जो भरी आंखों से दिखेगा जमीं से
अब यही सुनील किनारा चुना है